ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको,
मानों कुछ यूं इस कदर भा गई,
सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,
गरजी, बरसी और बदली छा गई।
मैं तो कर रहा था कबसे तुम्हारा
बेसब्री से आने का इंतजार, किंतु
तुम आई तो मगर, मेरे विरां दिल की
छोटी सी पहाड़ी जमीन दरका गई।।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको,
मानों कुछ यूं इस कदर भा गई,
सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,
गरजी, बरसी और बदली छा गई।
मैं तो कर रहा था कबसे तुम्हारा
बेसब्री से आने का इंतजार, किंतु
तुम आई तो मगर, मेरे विरां दिल की
छोटी सी पहाड़ी जमीन दरका गई।।
मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है,
ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है,
कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान है,
है कहीं पे फुर्सत के लम्हें तो कंही वक्त ही बहुत कम है।
है कहीं तारुण्य जोबन, जामों मे सुरा ज्यादा नीर कम है,
हो गई काया जो उम्रदराज, झर-झर झरता जरठ गम है,
सार यह है कि फलसफा जिंदगी का है अजब 'परचेत',
कहीं दीपोत्सव की जगमगाहट, कहीं रोशनी का भ्रम है।
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...