Thursday, October 16, 2025

मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको,

मानों कुछ यूं इस कदर भा गई,

सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, 

गरजी, बरसी और बदली छा गई।

मैं तो कर रहा था कबसे तुम्हारा 

बेसब्री से आने का इंतजार, किंतु 

तुम आई तो मगर, मेरे विरां दिल की

छोटी सी पहाड़ी जमीन दरका गई।।

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मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...