८ नवम्बर, 2016 की देर शाम को जब थका हारा दिल्ली के दमघोटू यातायात से जूझता हुआ दफ्तर से घर पंहुचा तो बैठक मे मेज पर तुडे-मुडे ५०० और १००० रुपये के नोटों का अम्बार देख एक पल को चौंक सा गया। लगा कि दुनियां का सबसे ईमानदार कहा जाने वाला तबका यानि आयकर विभाग के हरीशचन्दों की मंडली आज मेरे घर मे भी आ धमकी है, कि तभी किचन से हाथ मे पानी का गिलास लेकर धर्मपत्नी कुछ बडबडाती हुई मेरी ओर बढी। मैने अंदर से अशान्त होते हुए भी शान्त स्वर मे पूछा, क्या माजरा है ये सब, भाग्यवान ?
मेरा इतना पूछना था कि यूं लगा मानों टिहरी डैम के कर्मचारियों ने डैम के सारे कपाट खोल दिये हों और डैम का सारा रूका पानी अपने पूरे बेग से देवप्रयाग की तरफ निकल पडा हो। बोली, अरे, ये तो सचमुच का फेंकू निकला यार। कहता था, स्विस बैंक से ब्लैकमनी लाऊगा और १५-१५ ,लाख दूंगा सबको । कुछ देना लेना तो दूर, मैने तुम्हारी जेब से टपा-टपाके जो १०-१५ हजार रुपये बटोर कर रखे थे, उन पर भी कम्वक्त ने आज सर्जिकल स्ट्राइक कर दी।
मैं अभी भी दुविधा मे था, अत: मैने अपने धैर्य के बचे खुचे भन्डार का इस्तेमाल करते हुए सहज भाव से पूछा, जानेमन, बहुत नाराज हो क्या ,क्यों इतना अत्याचार कर रही हो मुझपर ? मैने तो परसों रविवार के दिन सिर्फ एक पव्वे के पैसे मांगे थे तुमसे, और तुमने तो आज खजाना ही खोल दिया। वो स्वभाव को नरम करते हुए टीवी पर न्यूज चैनल लगाते हुए बोली, वो देखो और सुन लो , अपने अजीज फेंकू महाराज को, भक्तों को क्या भगवद्गीता का पाठ पढ़कर सुना रहे हैं। खैर , चाय वाले को ....... बोलते, बोलते वह रुक सी गई , फिर बोली, जाओ ,टेबल पर से १००० का नोट ले जाओ और पब्वे की जगह बोतल ही ले आना तुम्हारा हफ्ते भर का गुजारा हो जायेगा। और हाँ, साथ मे तंदूरी चिकन भी ले आना अपने लिए।
पतियों के इससे अच्छे भला क्या दिन आते, मै, हजार का एक नॉट मुट्ठी में दबा ,झटपट मोदी जी की जय बोलकर, नजदीकी मन्दिर के लिए निकल पडा।
मंदिर वालों ने भेंट स्वीकारी का नहीं.. कहीं ऐसा तो नहीं की उधारी ले आये होंगे .... हाहाहाहा
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "'बंगाल के निर्माता' - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहा हा हा !सुन्दर रोचक प्रस्तुति।
ReplyDeleteहा हा अब तो मंदिर वाले भी छुट्टे पैसे मांग रहे
ReplyDeleteहा हा ... पर रात १२ से पहले तो चल जाते ... और पौवे की दुकान पर तो सब जायज है ... रोचक ... मस्त ...
ReplyDelete