भावुक था विदाई पर
वहाँ पीहर पक्ष का हर बंदा,
किया प्रस्थान ससुराल,
तज मायका निकली नंदा।
हुआ पराया पीहर,
छूटे रिश्तों के सब ताने-बाने,
रूपकुण्ड से आगे पथ पर
साथ चले सिर्फ
"चौसींगा" वही जाने-माने।
Heavy Snowfall at Manali in the month of September |
रूठकर गई थी
ससुराल वालों से,
और पीहर में थी
वह चौदह सालों से,
बिन उसके शिव उदास,
लगता था घर उनको
सूना-सूना,खाली-खाली। अब जब वह
वापस कैलाश लौटी,
इन्द्रदेव भी खुश हुए,
कुछ यूं मदद की शिव की,
सितम्बर में बनाया
दिसम्बर का सा मौसम
और खूब बर्फबारी हुई, कल 'मना'ली।।
वाह क्या बात है...
ReplyDelete--
बहुत खूब जी।
सुन्दर। बहुत अच्छा।
ReplyDeleteकोई शक नहीं
ReplyDeleteआपकी हर रचना लाजवाब होती है :)
स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर रंगरूट
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक मंगलकामना
इन्तजार की घड़ियां बहुत कष्टकारी होती है।
ReplyDeleteअबकी भगवान शिव को दो वर्ष और इन्तजार करना पड़ा।
एक वर्ष (2012 में) ज्योतिषियों की बजह से और एक वर्ष (2013 में) भगवान शिव के ही द्वारा दिखाये गये ताण्डव के कारण।
बहुत ही गहरी रचना है ... प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से प्रतीक्षा के लम्हों का दर्द व्यक्त कर दिया ..
ReplyDeleteलाजवाब ...
बहुत गहरी भावभूमि पर स्थापित है ये रहस्य-कथाएँ .- कभी पुरानी नहीं होतीं ,मन को आन्दोलित कर जाती हैं !
ReplyDeleteवाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ