Thursday, September 4, 2014

आस्था और श्रद्धा


भावुक था विदाई पर 
वहाँ पीहर पक्ष  का हर बंदा,
किया  प्रस्थान ससुराल,
तज मायका निकली नंदा।

हुआ पराया  पीहर,
छूटे रिश्तों के सब ताने-बाने,
रूपकुण्ड से आगे पथ पर 
साथ चले सिर्फ 
"चौसींगा" वही जाने-माने।          


Heavy Snowfall at Manali in the month of September

रूठकर गई थी
ससुराल वालों से,  
और पीहर में थी 
वह चौदह सालों से,
बिन उसके शिव उदास, 
लगता था घर उनको  
सूना-सूना,खाली-खाली। 

अब जब वह  
वापस कैलाश लौटी, 
इन्द्रदेव भी खुश हुए,  
कुछ यूं मदद की शिव की, 
सितम्बर में बनाया  
दिसम्बर  का सा मौसम    
और खूब बर्फबारी हुई, कल 'मना'ली।।  


कैलास के लिए विदा हुई नंदा, छह खाडू गए साथ

8 comments:

  1. वाह क्या बात है...
    --
    बहुत खूब जी।

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  2. कोई शक नहीं
    आपकी हर रचना लाजवाब होती है :)

    स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर  रंगरूट

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  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
    शिक्षक दिवस की हार्दिक मंगलकामना

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  4. इन्तजार की घड़ियां बहुत कष्टकारी होती है।
    अबकी भगवान शिव को दो वर्ष और इन्तजार करना पड़ा।
    एक वर्ष (2012 में) ज्योतिषियों की बजह से और एक वर्ष (2013 में) भगवान शिव के ही द्वारा दिखाये गये ताण्डव के कारण।

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  5. बहुत ही गहरी रचना है ... प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से प्रतीक्षा के लम्हों का दर्द व्यक्त कर दिया ..
    लाजवाब ...

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  6. बहुत गहरी भावभूमि पर स्थापित है ये रहस्य-कथाएँ .- कभी पुरानी नहीं होतीं ,मन को आन्दोलित कर जाती हैं !

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  7. वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।