वो गर्दिशों के साये जो
सफर-ए-जिंदगी ने पाये,
सिकवा करें भी तो अब
बेफिजूल करें काहे,
सिर्फ़ इतनी सी अपनी
नाकामयाबी थी हाये,
जवानी मे ही अपना
जनाजा न उठा पाये....
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
वो गर्दिशों के साये जो
सफर-ए-जिंदगी ने पाये,
सिकवा करें भी तो अब
बेफिजूल करें काहे,
सिर्फ़ इतनी सी अपनी
नाकामयाबी थी हाये,
जवानी मे ही अपना
जनाजा न उठा पाये....
पहाड़ों की खुशनुमा,
घुमावदार सडक किनारे,
ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का
मसाला मिलाकर,
'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान'
मजदूरों के सहयोग से,
उसने वो जो घर बनाया था कभी,
सुना है कि आज, उस घर पर इंद्रदेव
इतने मुग्ध हुए कि उन्होंने
बादलों से जाकर कहा कि फटो
और उस मकां को बहाकर
मेरे पास ले आओ।
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।