कभी सोचा नहीं था ऐसा कि जो,
अति सक्रिय थे समाज मे कलतक,
जरूरत आने पर, आज छुपे हुए होंगे,
कबुतर का चेहरा ओढे घर खलिहानों मे,
अहिंसा के दुश्मन, बाज छुपे हुए होंगे।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अगर शिकारी बाज़ दो अक्टूबर को छुप गए हैं तो इसके लिए उनकी तारीफ़ करनी चाहिए.
ReplyDeleteकम से कम उन्होंने बापू को और उनके अहिंसा के सन्देश को, एक दिन के लिए तो महत्व दिया.
बेहतरीन रचना आदरणीय
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