Sunday, October 2, 2022

भौंचक!

 कभी सोचा नहीं था ऐसा कि जो,

अति सक्रिय थे समाज मे कलतक,

जरूरत आने पर, आज छुपे हुए होंगे,

कबुतर का चेहरा ओढे घर खलिहानों मे,

अहिंसा के दुश्मन, बाज छुपे हुए होंगे।

3 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. अगर शिकारी बाज़ दो अक्टूबर को छुप गए हैं तो इसके लिए उनकी तारीफ़ करनी चाहिए.
    कम से कम उन्होंने बापू को और उनके अहिंसा के सन्देश को, एक दिन के लिए तो महत्व दिया.

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  3. बेहतरीन रचना आदरणीय

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।