निमंत्रण पर अवश्य आओगे,
दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था,
वंशानुगत न आए तो क्या हुआ,
चिर-परिचितों का सैलाब था।
है निन्यानबे के फेर मे चेतना,
किंतु अलंकृत सभी अचेत हैं,
रही बात हमारी नागवारी की,
तभी तो हम 'परचेत' हैं।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
निमंत्रण पर अवश्य आओगे,
दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था,
वंशानुगत न आए तो क्या हुआ,
चिर-परिचितों का सैलाब था।
है निन्यानबे के फेर मे चेतना,
किंतु अलंकृत सभी अचेत हैं,
रही बात हमारी नागवारी की,
तभी तो हम 'परचेत' हैं।
निरुपम अनंत यह संसार इतना, क्या लिखूं,
ऐतबार हुआ है तार-तार इतना, क्या लिखूं ।
सर पर इनायतों का दस्तार इतना, क्या लिखूं
है मुझपर आपका उपकार इतना, क्या लिखूं ।
और न सह पायेगा मन भार इतना, क्या लिखूं,
दिल व्यक्त करे तेरा आभार इतना, क्या लिखूं।
सरेआम डाका व्यवहार पर इतना, क्या लिखूं,
दिनचर्या में लाजमी आधार इतना, क्या लिखूं।
इस दमघोटू परिवेश में भी दम ले रहा 'परचेत',
है इस ग़ज़ल का दुरुह सार इतना, क्या लिखूं ।
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...