Wednesday, February 28, 2024

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे,

दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था,

वंशानुगत न आए तो क्या हुआ,

चिर-परिचितों का सैलाब था।

है निन्यानबे के फेर मे चेतना, 

किंतु अलंकृत सभी अचेत हैं,

रही बात हमारी नागवारी की,

तभी तो हम 'परचेत' हैं।



Saturday, February 24, 2024

यकीं !

 तु ये यकीं रख, उस दिन 

सब कुछ ठीक हो जायेगा,

जिस दिन, जिंदगी का 

परीक्षा-पत्र 'लीक' हो जायेगा।

Friday, February 23, 2024

द्वंद्व !

 











निरुपम अनंत यह संसार इतना, क्या लिखूं,

ऐतबार हुआ है तार-तार इतना, क्या लिखूं ।


सर पर इनायतों का दस्तार इतना, क्या लिखूं 

है मुझपर आपका उपकार इतना, क्या लिखूं ।


और न सह पायेगा मन भार इतना, क्या लिखूं,

दिल व्यक्त करे तेरा आभार इतना, क्या लिखूं। 


सरेआम डाका व्यवहार पर इतना, क्या लिखूं,

दिनचर्या में लाजमी आधार इतना, क्या लिखूं।


इस दमघोटू परिवेश में भी दम ले रहा 'परचेत',        

है इस ग़ज़ल का दुरुह सार इतना, क्या लिखूं ।

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।