Saturday, November 29, 2025

जस दृष्टि, तस सृष्टि !

धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो,

नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो,

ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के, 

क्या फायदा, चिंतन खुद का ही निकृष्ट हो।


रहे बरकरार हमेशा, हमारा बाहुमुल्य मुल्य,

ठेस रहित रहे भावना, आकुण्ठित न कृष्टि हो,

विगत बरसात, किसने न‌ देखा वृष्टि-उत्पात, 

दुआ करें, अगली बरसात सिर्फ पुष्प-वृष्टि हो।

Thursday, November 27, 2025

हद पार

बस भी करो अब ये सितम,

हम और न सह पाएंगे,

बदकिस्मती पे अपनी, 

बल खाए न रह पाएंगे।

किस-किस को बताएं अब,

अपनी इस जुदाई का सबब,

क्या मालूम था,फैसले तुम्हारे,

हमें इस कदर तड़पाएंगे।।

Friday, November 21, 2025

अनिश्चय!


पिरोया न करो सभी धागे एक ही सरोकार मे, 

पता नहीं कब  तार इनके, तार-तार हो जाएं,

यह न चाहो, हसरत भी संग चले, हकीकत भी,

पता नहीं खेने वाले कब, खुद पतवार हो जाएं।

भरोसे का कतई दौर नहीं, किसको पता है कि

जो नाख़ुशगवार थे हमको,कब ख़ुशगवार हो जाएं,

वजूद पे अपने इश्क का ऐसा खुमार मत पालो,

मौसमों के पैंतरों से भी, प्रचण्ड बुखार हो जाएं।

शुन्यता के दौर में राहें अंजानी, नैया मझधार मे,

पार पाने की जद्दोजहद, ख्वाहिशें दुश्वार हो जाएं,

हमने कसम खाई थी 'परचेत' तुम्हारे ही होकर रहेंगे,

दौर-ए-बेवफ़ाई, क्या पता किस नाव पे सवार हो जाएं ।






Thursday, November 6, 2025

झूम-झूम !

हमेशा झूमते रहो सुबह से शाम तक,

बोतल के नीचे के आखिरी जाम तक,

खाली हो जाए तो भी जीभ टक-टका,

तब तलक जीभाएं, हलक आराम तक।

झूमती जिंदगी, तुम क्या जान पाओगे?

अरे कमीनों ! पाप जिसे निगल जाएगा

तुम्हारे न चाहते हुए भी, ठग बहराम तक।



व्यथा

  तुझको नम न मिला और तू खिली नहीं, ऐ जिन्दगी ! मुझसे रूबरू होकर भी तू मिली नहीं।