Friday, November 21, 2025

अनिश्चय!


पिराया न करो सभी सुत्र एक ही सरोकार मे, 

पता नहीं कब  साथ इनके, तार-तार हो जाएं,

यह न चाहो, हसरत भी संग चले, हकीकत भी,

पता नहीं, खेने वाले खुद कब पतवार हो जाएं।

भरोंसे का कतई दौर नहीं, किसको पता है कि

जो नाख़ुशगवार थे कब हमें ख़ुशगवार हो जाएं,

वजूद पे अपने इश्क का ऐसा बुखार मत पालो,

मोसमों के पैंतरों से भी, प्रचण्ड बुखार हो जाएं।

शुन्यवाद के दौर में राहें अंजानी, नैया मझधार मे,

पार पाने की जद्दोजहद, ख्वाहिशें दुश्वार हो जाएं,

हमने कसम खाई थी 'परचेत' तेरे ही होकर रहेंगे,

बेवफ़ाई का दौर है कब दूसरी नाव पे सवार हो जाएं ।






Thursday, November 6, 2025

झूम-झूम !

हमेशा झूमते रहो सुबह से शाम तक,

बोतल के नीचे के आखिरी जाम तक,

खाली हो जाए तो भी जीभ टक-टका,

तब तलक जीभाएं, हलक आराम तक।

झूमती जिंदगी, तुम क्या जान पाओगे?

अरे कमीनों ! पाप जिसे निगल जाएगा

तुम्हारे न चाहते हुए भी, ठग बहराम तक।



अनिश्चय!

पिराया न करो सभी सुत्र एक ही सरोकार मे,  पता नहीं कब  साथ इनके, तार-तार हो जाएं, यह न चाहो, हसरत भी संग चले, हकीकत भी, पता नहीं, खेने वाले ख...