पिरोया न करो सभी धागे एक ही सरोकार मे,
पता नहीं कब तार इनके, तार-तार हो जाएं,
यह न चाहो, हसरत भी संग चले, हकीकत भी,
पता नहीं खेने वाले कब, खुद पतवार हो जाएं।
भरोसे का कतई दौर नहीं, किसको पता है कि
जो नाख़ुशगवार थे हमको,कब ख़ुशगवार हो जाएं,
वजूद पे अपने इश्क का ऐसा खुमार मत पालो,
मौसमों के पैंतरों से भी, प्रचण्ड बुखार हो जाएं।
शुन्यता के दौर में राहें अंजानी, नैया मझधार मे,
पार पाने की जद्दोजहद, ख्वाहिशें दुश्वार हो जाएं,
हमने कसम खाई थी 'परचेत' तुम्हारे ही होकर रहेंगे,
दौर-ए-बेवफ़ाई, क्या पता किस नाव पे सवार हो जाएं ।
सूत्र, भरोसे, मौसमों, शून्यवाद, कर सकते हैं चाहें अगर | अन्यथा लाजवाब उदगार तो हैं ही |
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