Saturday, October 2, 2010

गांधी जयन्तीपर एक प्रयास !

सर्वप्रथम गांधी जयन्ती  और शास्त्री जयन्ती पर सभी ब्लोगर मित्रों, पाठ्कों और सभी देशवासियों को हार्दिक शुभ-कामनायें और देश के इन सपूतों को श्रद्धांजली ! आज सुबह एक काव्यात्मक पोस्ट लगाई थी, लेकिन बाद मे रियलाईज हुआ कि मैं इस ब्लोगिंग के चक्कर मे पडकर न सिर्फ़ लेखन के क्षेत्र अपितु व्यावहारिक जीवन मे भी जरुरत से ज्यादा नकारात्मकता की ओर झुकता जा रहा हूं! आज इन महान सपूतों का जन्मदिन भी श्राद्ध मास मे आया है तो और कुछ नही तो हम सच्चे मन से कम से कम इन्हे श्रद्धा सुमन तो अर्पित कर ही सकते है ! अत: मैने अपनी वह पोस्ट डीलीट कर दी ! साथ ही इस पुण्य-पावन अवसर पर यह निश्चय करता हूं कि आइन्दा जहां तक हो पायेगा, सकारात्मक लिखने की कोशिश करुंगा अन्यथा कुछ लिखुंगा ही नही !

अब इस पावन-पवित्र अवसर पर सभी से दो बातें कहुंगा या फिर अपील करना चहुंगा;

पहला यह कि मंदिर-मस्जिद को अपने तुच्छ अहम से जोडकर हम हिंदुस्तानियों ने आपस मे ही एक दूसरे का बहुत कत्लेआम कर लिया ! मंदिर और मस्जिद दोनो ही उपरवाले के स्मरण के लिये हम लोग इस्तेमाल करते है, अगर बाबर मूर्ख था, तो इसका यह मतलब कदापि नही निकलना चाहिये कि हम आगे भी वही मूर्खता करते जाये ! अब जब कोर्ट का फैसला आ ही गया है और इस बात के हिंट मिल गये है कि बाबरी मसजिद के नीचे कोई स्ट्रक्चर दबा पडा है, तो मैं दोनो पक्षों से यह अपील करुंगा कि सुप्रिम कोर्ट जाकर विवाद को बढाने की वजाये, मिल बैठकर अब उस जमीन के टुकडे को पुरातत्व विभाग के हवाले किया जाये, और खुदाई के बाद यदि उसके नीचे कोई मंदिर का प्राचीन ढांचा मिले तो उसे तोडकर नया मंदिर बनाने के वजाये राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे रखा जाये ! जो हमारी आने वाली पीडियों को यह दर्शायेगा कि पुरातन काल मे विदेशी आक्रांताओ ने कैसे इस देश की संस्क्रति को मिटाने की कोशिश की! और उस जगह से कुछ हटकर किसी उप्युक्त जगह पर भब्य मंदिर भी बने और मस्जिद भी, और इन दोनो को बनाने का काम हिन्दु संगठन करे, इस बात की घोषणा हिन्दुओं को खुदाई से पहले करनी चाहिये कि वे अयोध्या मे खुद मस्जिद बनायेगे, ताकि आगे चलकर साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता की यह एक मिशाल बन सके ! अगर नही सुधरे तो आने वाली शिक्षित पीढियां कभी हमे माफ नही करेंगी, और जरा सोचिये कि यदि सुप्रिम कोर्ट भी हाई कोर्ट के फैसले को ही कायम रखता है, और उसके बाद सचमुच मे उसके नीचे भगवान राम का प्राचीन मंदिर मिलता है, तो कहीं मुह दिखाने लायक नही रहोगे तब !

दूसरी अपील, कल से हमारे राष्ट्रीय गौरव के लिये कुछ समय पहले तक चुनौती बने कौमनवेल्थ खेलों का कल से दिल्ली मे शुभारम्भ है! भूतकाल मे जो हुआ सो हुआ, लेकिन अब यह संतोष की बात है कि कुछ दिनो से सब कुछ ठीक चल रहा है! किसी विदेशी खिलाडी के किसी तरह की शिकायत के कोई संकेत नही है ! आईये, हम सभी मिलकर इसे एक सफ़ल आयोजन बनने का अपने व्यक्तिगत स्तर पर जो हो सके प्रयास करे ! कल जब उद्धघाटन समारोह हो तो दिल्ली ही नही बल्कि पूरा देश इस जश्न से सरागोश मिले ! घर, सड्क, शहर सभी कौमनवेल्थ के रंग मे रंगा मिले ! और मिलकर हम भारतवासी इस खेल के एक सफ़ल आयोजन बनने की भगवान से प्रार्थना करें !

एक बार पुन: गांधी जयंति की हार्दिक शुभकामनाये !

Friday, October 1, 2010

यूँ तो मसला कुछ भी न था, किन्तु माथुर साहब थे कि.... (व्यंग्य) !

आजादी के बाद देश की करीब ५६५ रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने हेतु हमारे देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, लोह पुरुष सरदार पटेल ने जी-जान से अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी ! हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब को छोड़, जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी रियासत रह गई थी , जहां माथुर साहब की अपनी निजी उच्च आकांक्षाओं के चलते पटेल साहब के सारे प्रयास विफल गए ! २० अक्तूबर १९४७ को जब उत्तरी कश्मीर की तरफ से अनेक पठानी आताताइयों (कबालियों ) की मदद से पाकिस्तानी सेनायें कश्मीर में घुसी और माथुर साहब के पिछवाड़े पर जब जोर की पडी, तब जाकर माथुर साहब मदद को चिल्लाए ; परिणामत: करीब ३००० से अधिक भारतीय सैनिकों को अपने प्राणों की तत्काल आहुती देनी पडी, और तब से आज तक हर साल सेकड़ों की तादात में देते आ रहे है !

अब आ गया १९४९, बताते हैं कि मेरे ही जैसे कुछ सिरफिरे हिन्दुओं ने अपने हक़ के लिए लड़ते हुए उस खंडहर में भगवन राम और सीता की मूर्तियाँ रख दी थी, जो सदियों से वीरान पड़ा था, जहां कोई नमाज अता नहीं की जाती थी, और जिसे बाबर ने भगवान् राम के मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर बनाया था! यूँ तो मसला कुछ भी न था, क्योंकि दुनिया जानती थी कि अयोध्या भगवन राम की जन्मस्थली है, उसी वक्त आपस में मिल बैठकर विवाद को सुलझाया जा सकता था, किन्तु माथुर साहब थे कि उन्हें तो अपनी दूकान चलानी थी ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि जो निर्माण सामग्री वे बेच रहे है, वह हिन्दू ने खरीदी या फिर मुसलमान ने ! अगर हम होते और हमें यह मालूम पड़ जाता कि ग्राहक जो सामग्री खरीदकर ले जा रहा है, उससे वह किसी के प्लाट पर जबरन कब्जा करके अपना ढांचा बनाएगा तो शायद उसे हम वह सामग्री कभी नहीं बेचते , ताकि वह निर्माण आगे चलकर किसी पर कहर न ढाए ! साथ ही उन्हें यह भी समझाते कि भाईसहाब जिस जमीन पर आप कब्जा कर यह निर्माण कर रहे है, एक दिन उसका मालिक अगर अपनी जमीन वापस मांगेगा तो आप क्या करेंगे ? लेकिन माथुर साहब को तो बिना यह सब देखे सिर्फ और सिर्फ अपनी दुकानदारी की चिंता थी; अत: वे सेक्युलर बनकर दुकान चलाते रहे ! नतीजन, देश को कई दंगे झेलने पड़े ! १९९२ हुआ, मुंबई के बम विस्फोट हुए, हजारों लोग मारे गए, देश की प्रगति अवरुद्ध हुई और अब घूम फिरकर १९४९ पर ही आ गए! इसे कहते है लौट के बुद्धू घर को आए, तभी प्यार से निपटा लिया होता तो...........किन्तु माथुर साहब थे कि ...... !

अब आया १९५५, श्री लक्ष्मण सिंह जंगपांगी चीन की सामरिक गतिविधियों पर गहरी पैनी नजर जमाये हुए थे, वे पहले भारतीय व्यापार अधिकारी थे, जिन्होंने चीन के इरादों की जानकारियाँ 1955 में भारत सरकार को भेजकर बता दिया था कि चीन अक्साइचिन से होकर सड़क बना रहा है, और उसके इरादे नेक नहीं लगते ! दिल्ली में बैठे माथुर साहब ने उनकी रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कि यह रिपोर्ट निहायत बेहूदा है ! इस अनदेखी से चीन ने अक्टूबर 1962 में भारत पर आक्रमण कर लद्दाख-नेफा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया ! इस युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 3968 बंदी बनाये गये, 1696 लापता रहे!(वो भी फिर कभी नहीं लौटे, अभी हाल में हिमांचल के रहने वाले ऐसे ही एक लापता सैनिक का शव ४८ साल बाद मिला ) युद्ध के बाद लक्ष्मण सिंह जंगपांगी की रिपोर्ट पर भारत सरकार का ध्यान जाना स्वाभाविक था, फिर उस रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा के उपाय सुदृढ़ किये गये, और श्री जंगपांगी को ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया! यानि माथुर साहब के पिछवाड़े पर एक और.... उसकी वजह यह थी कि जब सीमा पर तैनात कमांडर ने वहां से माथुर साहब को दिल्ली फोन कर बताया था कि साहब वे (चीनी सैनिक) हमसे करीब १००० मीटर की दूरी पर आ गए है, क्या हम फायर खोल दे ! माथुर साहब इधर से बोले 'नो फायर, हिन्दी चीनी भाई-भाई ' आदत से मजबूर जो ठहरे , साथ ही उनका अपना लक्ष्य तो सिर्फ अपनी दूकान चलाना था, यही सोच रहे थे कि अगर चीनी सैनिक सामने आकर भारतीय सैनकों को मार भी देंगे तो इनका क्या बिगड़ेगा, वो तो दिल्ली में बैठे थे ! कमांडर ने फिर फोन किया, सर, वे हमारे बिलकुल करीब आ गए है, फायर खोल दे ! माथुर साहब फिर बोले, नो फायर, हिन्दी चीनी भाई भाई .... और फिर क्या हुआ, सभी जानते है!

फिर १९६५ आया ,७१ हुआ, उधर से कमांडर ने पूछा साहब, हम लाहौर से आगे बढ़ गए है, अदला-बदली में पाक अधिकृत कश्मीर ले ले वापस ? माथुर साहब ठहरे भले किस्म के इन्सान, उन्हें तो अपनी दुकानदारी चलानी थी और ग्राहक बनाए रखने थे ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह हिन्दुस्तानी है या फिर पाकिस्तानी ! बोल दिया , नहीं हम शान्ति के दूत है, वापस आ जाओ ! उनके ९१००० कैदियों को भी लौटा दो, वे अगर हमारे देश के बंदी सैनिकों को न लौटाएं तो कोई बात नहीं, देश में वैसे भी आवादी बहुत है !

अब आ गया १९९९, कारगिल में एक कश्मीरी गड़रिये बालक द्वारा पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी दिये जाने तक पाकिस्तान की सात बटालियनें वहाँ की चोटियों पर मोर्चा संभाल चुकी थी ! माथुर साहब दिल्ली में बैठे यही कहते रहे कि वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है, सब ठीक-ठाक है, परिणामस्वरूप देश ने अपने करीब ६०० जांबाज खोये, युद्ध से पहले कई कमांडरों ने माथुर साहब को यह उदाहरण देकर सचेत भी किया था, कि एक पिद्दी सा पाकिस्तान हमारी तरफ आंखे तरेर रहा है ! ठीक है हमें शांति का पथ नहीं छोडना चाहिए, लेकिन पड़ोसी को हमेशा यह अहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम भी काफी दमखम रखते है , और मुहतोड़ जबाब दे सकते है! अगर ऐसा नहीं करोगे तो दूसरा आपको कमजोर समझता है , और तो और मोहल्ले का कबाड़ी भी घर के आगे से गुजरते हुए नसीहत दे जाता है कि माथुर साहब, सड़क में पानी फेंककर उसे गीला मत किया करो ! लेकिन माथुर साहब ठहरे पक्के बनिया, उन्हें तो अपनी दुकानदारी से मतलब था और इस बात से उन्हें क्या फर्क पड़ने वाला था, उनकी बला से भले ही कबाड़ी भी धमकी दे जाए, मगर उनकी दुकान से कभी-कभार सामान खरीद ले, बस ! आत्मसम्मान गया भाड़ में !

इस बीच संसद और मुंबई पर भी हमला हुआ, लेकिन माथुर साहब मस्त होकर अपनी दुकानदारी चलाते रहे ! मुझे याद है कि बहुत साल पहले जब पूर्व रक्षामंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडेज ने चेतावनी दी थी कि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है, तो माथुर साहब, उनकी बात पर जोर से हँसे थे और उनके बयान को बेहूदा बताकर यह कहा था कि वे हमारे पड़ोसियों से देश के रिश्ते बिगाड़ना चाहते है ! मगर अब वही माथुर साहब चिलपों मचाने लगे है जब चीन ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है ! उन्हें भी अपनी दुकानदारी खतरे में नजर आती है ! शांति किसे नहीं अच्छी लगती, मगर चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की हकीकत को आखिर कब तक नजरअंदाज करोगे ? अबके तो माथुर साहब यह भी पक्का माने कि भले ही वो दिल्ली में बैठे हो लेकिन जिस दिन होगा तो माथुर साहब का भी नंबर लगेगा ! और अगर ऊपर वाले की कृपा हुई तो बौडर पर तैनात हमारे सैनिकों का नंबर तो बाद में आयेगा, दिल्ली के वातानुकूलित कमरे में बैठे माथुर साहब का नंबर पहले लगेगा ! भाटिया साहब , पूछ रहे थे कि आपके कल के लेख का क्या हुआ ? तो भाटिया साहब, मैंने वह बेहूदा लेख ब्लॉग से निकाल कर सुरक्षित रख दिया, कभी जरुरत पडी तो फिर पोस्ट करूंगा, क्योंकि मुझे भी लगा कि कोर्ट के फैसले से कुछ अति उत्साहित होकर मैंने हडबडी में वह लिख दिया है , इतनी जल्दी नहीं मचानी चाहिए थी, क्योंकि शांति बनाए रखने का ठेका माथुर साहब के पास था! मुझे, एक और सम्मानित माथुर साहब की बात अच्छी लग गयी थी ! अब तो यही दुआ करूंगा कि देश में अमन चैन बना रहे, देश खूब प्रगति करे बस, अदालती फैसलों में तो फेर बदल होता ही रहता है!

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...