यह तो सभी जानते है कि घोर तकनीकी क्रांति के इस युग में आज अंतर्जाल विचारों के संप्रेषण का एक महत्वपूर्ण और स्वतंत्र द्रुतगामी माध्यम बन गया है! इंटरनेट की प्रसिद्धि से पहले यूँ तो प्रेस और मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में इस देश में बड़ी-बड़ी बातें सुनने को मिल जाती थी, मगर पिछले कुछ सालों में मैंने खुद यह अनुभव किया कि अंतरजाल ही एक ऐंसा माध्यम है जो विचारों को खुलकर प्रेषित करने में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है, क्योंकि भूमण्डलीय दौर में पत्रकारिता मुनाफा कमाने का व्यवसाय और व्यापारिक प्रक्रिया ज्यादा बन गया है !
लेकिन यह बात शायद कम ही लोगो को पता होगी कि अभिव्यक्ति की सवतंत्रता के सार्थक मायने वहां है, जहां अभिव्यंजना करने वाला व्यक्ति स्वतंत्र हो! अपने अधिकारों को न सिर्फ जानता हो बल्कि उनके खुलकर इस्तेमाल की भी बिना द्वेष-भाव उसे पूरी आजादी हो! गुलाम व्यक्ति से स्वतंत्र अभिव्यक्ति की कल्पना करना तो अँधेरे में तीर छोड़ने जैसा है! जहाँ इंसान की खुद की भावनाएं ही तरह-तरह के हथकंडों से दमित करके रख दी गई हों, वहाँ ऐसा कुंठित इन्सान भला स्वतंत्र अभिव्यक्ति क्या ख़ाक करेगा ? इसी परिपेक्ष में मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर भले ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून कहें कि "सरकारें आलोचना और बहस से बचने के लिए सोशल मीडिया तक लोगों की पहुंच रोक नहीं सकतीं", किन्तु सोशल नेटवर्किंग साइट पर आपत्तिजनक बातों को लेकर (के बहाने ) केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल की बात की कम से कम मैं तो हिमाकत करता हूँ ! उल्लेखनीय है कि केंद्रीय दूरसंचार और मानव संसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक और याहू के अधिकारियों की एक बैठक बुलाकर कहा था कि धर्म से जुड़े लोगों, प्रतीकों के अलावा भारत के प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष जैसी राजनीतिक हस्तियों के खिलाफ अपमानजनक सामग्री की निगरानी करें !
ऐंसा नहीं कि पूरे समाज में सिर्फ एक ही किस्म के लोग होते है, अगर सौ में से ९५ गुलाम प्रवृति के है तो ५ ऐसे विद्रोही किस्म के बुद्दू भी निकल ही आते है जिन्हें लाख सिखाने पर भी तलवे चाटना नहीं आता ! और अभी यह देखने में भी आया है कि इन ५ प्रतिशत लोगों, जिन्हें आज की सभ्य सेक्युलर लोकतांत्रिक भाषा में हुडदंग भी कहा जाता है, ने "कपिल जी " के उपरोक्त बयान आने पर अंतरजाल पर आसमान सर पे उठा रखा है ! मोटी बुद्धि और सहज स्वभाव के न होने की वजह से ये लोग अपने को नियंत्रित नहीं रख पाते है, अगर ये ऐसा कर पाते तो प्यार से पूछते कि अंकल जहाँ तक धर्म से जुड़े लोगो और मुद्दों का सवाल है, हम समझ रहे है कि आप किस वजह और मजबूरियों से किस ओर इशारा कर रहे है, मगर जहाँ तक प्रधान मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष जैसी राजनीतिक हस्तियों के खिलाफ अपमानजनक सामग्री का सवाल है, क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की कि ये तथाकथित पढ़े-लिखे लोग क्यों इनके सम्मान के प्रति इसकदर असंम्वेदंशील हो गए ?
ये अगर वाहियात किस्म के नहीं होते तो विपक्ष का डंका भरने वाले उन सत्तापक्ष की ही विरादरी के लोगो से पूछते कि भाई लोगो रॉबर्ट वाड्रा (एकमात्र पहचान प्रियंका गाँधी के पति) को देश में एअरपोर्ट सुरक्षा जाँच से किस वजह से मुक्त रखा गया है ?इस जाँच से देश के 21 महत्वपूर्ण पदों के वीवीआईपी को मुक्त रखा गया है जिसमे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री औ़र कैबिनेट मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद है, श्री वाड्रा कौन से वीवीएआइपी हैं जिनका सिर्फ नाम है इस सूची में, कोई पद नहीं ? रॉबर्ट वाड्रा श्रीमती सोनिया गाँधी के दामाद हैं, देश के दामाद नहीं, दामाद को अपने यहाँ बेहद सम्मान दिया जाता है, सोनिया जी भी करें..अगर उनको जाँच से मुक्त रखने का औचित्य ? यदि ऐसा ही है तो फिर राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती पाटिल के पति का नाम क्यों नहीं है उस सूची में ?
मगर पूछेगा कौन? गुल------आमों को क्या यह हक़ किसी ने प्रदान किया है कभी ? डेमोक्रेसी का नाटक खेलते हुए ६५ साल हो गए और चंद मुट्ठीभर लोग लोकतंत्र के नाम पर सवा अरब की जनसंख्या को सफलतापूर्वक बेवकूफ बनाने में सक्षम है, क्या यह बात गले उतरती है ? मेरे तो हरगिज नहीं उतरती ! यदि कोई जन्मजात बेवकूफ न हो तो उसे भला कोई बेवकूफ कैसे बना सकता है? अमेरिका की देखादेखी करते है, मगर उन्होंने तो अपने इस अनुभव के आधार पर कि चूँकि राष्ट्रपति के पद पर रहे व्यक्ति की सरकारी धन से ताउम्र खूब आतिर-खातिर होती है, इसलिए वे आम लोगो से ज्यादा जीते है, का निष्कर्ष निकाला और उसे दुनिया के समक्ष पेश भी कर दिया ! क्या इस देश कि किसी गुल..आम में इतनी हिम्मत है जो ये कहे कि जनता के टैक्स के पैसों पर यहाँ का हर वह नेता जो फ्री फंड का खाता है, भ्रष्ट है, चोरी करता है वह भी ...............................................अब और कितना इस फटे मुहं से सच बुलवाओगे... गुल------आमों ?
bharat ki janta ko sirf isi liye nahi padhne diya gaya..
ReplyDeleteसरकार की समस्या यह है की कहीं आम जनता उनकी सच्चाई ना जान जाये
ReplyDeleteभारत में तो फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, भाग्य ही है कि किसी और देश में पैदा नहीं हुये।
ReplyDeleteयद्यपि हमारा प्रयास बेकार है। मगर कल्पना तो कर ही सकते हैं!
ReplyDeleteगोदियाल साहब , इस ब्लाग पर कहीं कपिल पाजी की नज़र न लग जाये.....
ReplyDeleteसच सुनने की ताकत हर किसी में नहीं होती..... सरकारों में तो बिल्कुल भी नहीं, चाहे वह किसी की भी सरकार हो.....
ReplyDeleteबहुत ही शानदार एवं सटीक प्रस्तुति। बहुत बढ़िया लिखा है आपने शुभकामनायें ...
ReplyDeleteसमय मिले तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_08.html
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
Bahut hi sarthak vishay ko aapne uthaya hai
ReplyDelete‘कपिल सिब्बल की बात की कम से कम मैं तो हिमाकत करता हूँ !’
ReplyDeleteभैया हिमाकत करते हो या हिमायत :)
आदरणीय चन्द्र मौलेश्वर साहब ! सर्वप्रथम आपकी टिपण्णी के लिए आभार व्यक्त करता हूँ ! शायद आपने उसे ठीक से नहीं लिया मैंने जहां तक मैं समझता हूँ , हिमाकत शब्द (पूरे होशोहबाश के साथ :)) प्रयुक्त किया था ! गलती यह हुई कि बीच से "समर्थन" शब्द गुल हो गया ! हिमाकत का जैसा कि आप जानते ही होंगे कि अर्थ होता है ; मूर्खता करना या बेवकूफी करना ! और इस लेख में मैंने उनके विचारों के समर्थन की हिमाकत की थी :) खैर, उम्मीद है अब आपका संदेह दूर हो गया होगा ! :)
ReplyDeleteआज के सवालों से रु -बा -रु है यह पोस्ट .जो जैसा है उसे वैसा ही बताया दिखाया जाएगा जब आप बिजूके को काग भगोड़े को देश का मुखिया बनायेंगे चर्च द्वरा भारत की राजनीतिक काया पर बैठाई महिला को सबसे ऊपर दिखाएंगे तो पब्लिक तो भड़केगी ही .
ReplyDeleteऐसे प्रश्न कोई नहीं पूछेगा ... विरोधी भी नहीं ... मीडिया भी नहीं ... फिर कपिल जी की असलियत ही कौन सी किसी ने पूछी है आज तक ...
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