Tuesday, December 27, 2011

दीवानगी !

मनसूबे अगर हमारे तनिक भी नापाक होते, 
प्यार की तपिश में न यूं जलकर खाक होते।
गोकि उल्फत न दस्तक देती दिल के द्वार पर,
दर्द के न हररोज अजीब ऐसे इत्तेफाक होते।  








छवि  गूगल  से  साभार ! 

12 comments:

  1. चाचा ग़ालिब के जन्मदिन पर उनके भतीजो को पूरा हक है ... इसलिए इस नज़्म के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

    ReplyDelete
  2. भाई जी , हम तो आपकी दीवानगी के कायल हो गए !
    वरना शायर बनने की शर्तें सुन ,तो घायल हो गए ||

    बधाई आपको!

    ReplyDelete
  3. शबाब पर शे'र लिख दिए , गोदियाल जी १/३ शायर तो आप बन ही गए । :)
    अब ग़ालिब की तो क्या कहें पर आपका खूबसूरत प्रयास है ।

    ReplyDelete
  4. दीवानगी की आपके तनिक भी सुराग मिलते
    हम बेबाक अपनी टिप्पणी यहां जड़ देते :)

    ReplyDelete
  5. वाह वाह हर शेर खुबसूरत शेर दाद को मुहताज नहीं , बहुत खूब

    ReplyDelete
  6. असली ग़ालिब का तखल्लुस तो लगाया ही जा सकता है. जैसे चोटीवाला रेस्टोरेंट और फिर असली चोटीवाला रेस्टोरेंट...

    ReplyDelete
  7. :) गिरती न कभी ओंस यकीं पे बदगुमानी की,
    अगर तुम भी हमारी बात पे इत्तेफाक होते।

    वाह क्या बात है ...

    ReplyDelete
  8. गौदियाल साहब .. आज ग़ालिब साहब जो होते तो दाद दिए बिना न रहते इस पर ... मज़ा आ गया ...

    आपको नव वर्ष २०१२ की मंगल कामनाएं ...

    ReplyDelete
  9. प्रेम की तपिश में जलने का मज़ा वो ही जाने,
    जिस के दिल में ये चिंगारी हरपल सुलगती है |

    बढ़िया प्रस्तुति

    टिप्स हिंदी में

    ReplyDelete
  10. गिरती न कभी ओंस यकीं पे बदगुमानी की,
    अगर तुम भी हमारी बात पे इत्तेफाक होते।
    behtarin prastuti..tuti futi nahi hai jaandaar hai sadar badhayee aaur amantran ke sath

    ReplyDelete
  11. अन्दाज ए शायराना है,
    मर्ज यह पुराना है..

    ReplyDelete
  12. bahut khoobsurat shayari ban padi hai..
    bahut umda prastuti..
    aapko Navvarsh kee managal kamanayen..

    ReplyDelete

संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।