जी, सही पढ़ा आपने ! सकारात्मकता की बातें तो बहुत होती है, हर पल हर घड़ी, हर नुक्कड़, गली-चौराहे पर ! जिसे देखिये वो सकारात्मकता के ही उपदेश देता फिरता है ! और कहने को तो हमारा मीडिया भी इन्ही उपदेशकों में से एक है, किन्तु व्यावहारिकता में कथनी और करनी में फर्क ज्यादा मुश्किल काम नहीं होता, ये भी वे लोग बखूबी जानते है! सकारात्मकता से वो तात्कालिक फायदे नहीं मिलते जो नकारात्मकता से प्राप्त होते है, और भला दीर्घकालिक फायदे की किसे पडी है यहाँ, जब प्रलय का ख़तरा ठीक सिर के ऊपर हो! अब देखिये न, बीना मलिक अगर बुर्के में पोज देना चाहती तो क्या कोई मैगजीन वाला तैयार होता? या फिर उसने हाइनेक वाली स्वेटर और ढीले-ढाले सलवार को पहनकर पोज दी होती तो क्या कोई उस मैगजीन को खरीदता या फिर उसकी इतनी पब्लिसिटी होती', आप उससे सम्बंधित कोई खबर उतने चाव से पढ़ते, जिस चाव से अब पढ़ा आपने ? कवर पेज पर नग्न मॉडल के चित्र के एक तरफ आई एस आई का टेटो चिपका दिया और दूसरी तरफ लिख दिया; पाकिस्तानी वीपन ऑफ मॉस डिसट्रकशन (WMD ) , और मेरे जैसे अनेकों बेवकूफ ढूढ़ते रह गए कवर पेज को इधर से उधर पलटकर, न कहीं आईएसआई ही नजर आई और न पाकिस्तानी डब्ल्यूएम्डी ! पुराने माल को एकदम ताजा बताकर बेचने की महारत तो वैसे भी यहाँ हरएक को खूब हासिल है, वरना बनिए की दूकान के सवाल पर बिफरने का तुक ? वह भी तब जब मार्केटिंग का सारा जिम्मा दिग्गज सेल्समैनो के कन्धों पर हो ! ये दिग्गज भी नकारात्मकता के महत्व को जानने-परखने वाले बड़े काइंया किस्म के खिलाड़ी हैं, इसीलिये इन्होने भी इसी अचूक हथियार को अपना अस्त्र बनाया है, वरना तो इन्हें आज कोई कुता भी नहीं जानता ! मगर इस अस्त्र के उपयोग से आज ये इतने प्रसिद्द हो गए है कि कोई असली कुत्ता भी कहीं भौंकता है तो यही लगता है कि क्या पता शायद यही महाशय हों !
और इसी नाकारात्मक्ता के महत्व को हमारे खबरिया माध्यम भी खूब समझने लगे है ! और शायद यही वजह है कि ये लोग श्री अन्ना हजारे की एक सार्थक मुहीम को अपनी खबरों में उस सकारात्मकता से तबज्जो नहीं देते, जितनी उनके विरोध में आई ख़बरों को देते है! अगर सकारात्मकता इतनी ही मूल्यवान होती तो ये लोग नकारात्मकता को इतना महत्व देने की क्यों सोचते भला ? नहीं समझे ? आइये एक उदाहारण देकर समझाता हूँ ; कुछ समय पूर्व दिल्ली से सटे फरीदाबाद के तत्कालीन डीसी आइएएस श्री प्रवीण कुमार से सम्बंधित खबर उस फुटेज के साथ हमारे खबरिया चैनलों पर शायद आपने भी देखी होगी, जिसमे उन्हें खुद को जूते मारते हुए दिखाया गया था ! और जिस अंदाज में वह पूरा वाकया टीवी पर पेश किया गया था, खबर को सुनने, देखने वाला एक साधारण इंसान तुरंत यही निष्कर्ष निकालेगा कि खुद को जूते मारने वाला व्यक्ति या तो पागल किस्म का है या फिर सस्ती पब्लिसिटी के लिए ऐसा कर रहा है! क्षमा चाहूँगा और यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि मैं उनके बारे में कुछ भी नहीं जानता और सच्चाई का अंदाज मुझे भी नहीं है, मगर अभी हाल में अपने कुछ फरीदाबाद के परिचितों से जो कुछ जानकारी हासिल हुई उस आधार पर यहाँ लिख रहा हूँ ! श्री प्रवीण कुमार सरकारी जमीन के अतिक्रमण के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने फरीदाबाद में ऐसे अनेक अतिक्रमण हटाये सरकारी प्लोटों और सड़क-चौराहों से ! ऐसे ही जब एक सरकारी प्लाट के अतिक्रमण को हटाने वे उस रोज उस ख़ास जगह पर पहुंचे थे तो स्थानीय ग्रामीणों और दबंगों ने उनका न सिर्फ विरोध किया बल्कि अपशब्दों में उन्हें यहाँ तक कहा कि इनको जूते मारो, तो उन ग्रामीणों की इस बेहूदी हरकत से गुस्साए डी सी ने अपना खुद का जूता निकाल यह कहते हुए अपने सिर पर दे मारा कि तुम क्या मुझे जूते मारोगे, मैं खुद ही मार लेता हूँ मगर मैं इस प्लाट से अतिक्रमण हटा के रहूंगा! उसके बाद उनका तबादला कर दिया गया! जैसा कि मैंने पहले कहा कि इसमें सच्चाई कितनी है नहीं मालूम, मगर थोड़ी देर के लिए अगर मान लें कि उपरोक्त बात सत्य है तो आप याद करने की कोशिश कीजिये जिस ढंग से खबरिया चैनलों से वह खबर प्रकाशित की थी, वह उनका एक सकारात्मक तरीका था अथवा नकारात्मक ? खुद ही फैसला लीजिये और चलिए आप भी ढूंढना शुरू कीजिये नकारात्मकता के गुण ! इसे कहने का यहाँ मेरा आशय यह भी था कि हम और हमारा समाज क्या एक ईमानदार इंसान को ईमानदारी से उसका काम करने देते है ?
चलिए... इस लेख को पढ़कर नकारात्मकता को फिर एक बार नकार देते हैं भले ही उसे लघु-लाभ हों :)
ReplyDeleteनकारात्मकता ही खबर बनती है .खबर की परिभाषा ही यही है .जो मानव सरोकारों से हटके है नकारात्मक है वह खबर है .अच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteइन चैनलों का हाल तो रहने ही दें तो बेहतर... बंदर के हाथ उस्तरा है
ReplyDeleteमीडिया का हाल तो भगवान भी नहीं बदल सकता.
ReplyDeleteसर जी उन्हें तो बस मसाला मिलना चाहिए. फिर देखिये उनकी करतूत.
ReplyDeleteजिसका जोर चले, वही चलाये।
ReplyDeleteलोगों को नकारात्मकता में सनसनी दिखाई देती है ।
ReplyDeleteसब टी आर पी का कमाल है ।
सब टी आर पी का खेला है बस!!
ReplyDeleteजो सबका कहना है वही मेरा भी है। आपकी बातों से काफी हद तक सहमत हूँ मगर टीवी चेनल्स पर सब trp का ही खेल है राई का पहाड़ बनाना ही उनका मुख्य उदेश्य रहा है और रहेगा। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ReplyDeleteअओकी बात से सहमत हूँ ... मीडिया अक्सर तोड़ मरोड़ के पेश करता है ख़बरों को ... और सच्चाई कभी सामं ही नहीं आ पाती ... पर क्या किया जाए ... असल मुद्दा तो यही है ...
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