Friday, December 16, 2011

एक स्वतंत्र बलूचिस्तान में पूरी मानवता का हित छिपा है!


आज १६ दिसम्बर है, यानि विजय दिवस! आज ही के दिन हमारी सेनाओ ने बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ एक निर्णायक विजय हासिल की थी, और बांग्लादेश (तब का पूर्वी पाकिस्तान) उससे अलग होकर एक स्वतंत्र सार्वभौम राष्ट्र के रूप अग्रसर हुआ था! इसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश ने क्या खोया, क्या पाया, उस विषय में न जाते हुए बस इतना कहुगा कि भारत को इससे जरूर तीन उपलब्धिया हासिल हुई थी; एक सामरिक उपलब्धि थी, दूसरी कूटनीतिक और तीसरी जो सबसे बड़ी उपलब्धि थी, वह थी आत्मसंतोष ! १९४७ में जो पंजाब का सेंधा नमक पाकिस्तान ने भारत के सीने पर छिडककर आग सुलगाई थी, उसे हमारे वीर जवानों ने १९७१ में बंगाल की खाड़ी का समुद्री नमक उसके सीने पर छिड़ककर बुझाया !

जहां तक भारत और पाकिस्तान के रिश्तों का सवाल है, आज जब ४० साल बाद हम पीछे मुड़कर देखते है तो १९७१ और २०११ में ख़ास फर्क नजर नहीं आता है, और यूं कहें कि पाकिस्तान की स्थित आज १९७१ से भी बदत्तर है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी! खैर, पाकिस्तान को तो अपनी करनी का फल  एक न एक दिन भुगतना ही था मगर अफ़सोस इस बात का है कि हम हिन्दुस्तानियों ने भी अतीत से ख़ास सबक नहीं लिया! अपने स्वार्थों के दायरों में सिमटकर हमने अपने गौरवशाली इतिहास को भुलाकर सिर्फ उस निम्नस्तरीय कलंकित इतिहास को ही बार-बार किताबों में रटा जो हमें सुगम लगता है, और कुछ निहित हितों की पूर्ति करता है!

ज्यादा दूर न जाकर अब कल ही की बात का जिक्र करूंगा, आज की पीढी को तो दरकिनार कीजिए, मगर हममे से ही कितने लोगो को यह मालूम है कि जिस इंसान ने देशभक्ति और दृडता का परिचय देकर इस देश को एक सूत्र में पिरोया था, कल यानि पंद्रह दिसंबर को उस लौह पुरुष सरदार पटेल की पुण्य तिथि थी? या फिर हममे से कितनो ने ३१ अक्तूबर को उनका जन्म दिन मनाया ? राजनैतिक स्वार्थों के लिए कुछ ख़ास किस्म के नेतावों के जन्मदिन याद रखने और मनाने के सिवा बाकी तो सिर्फ रस्म अदायगी भर रह गया है हमारे लिए , अब चाहे वो कारगिल दिवस हो या फिर विजय दिवस !

जो हमें भूलना नहीं चाहिए था, अफ़सोस कि सदा की तरह हम खुदगर्ज हिन्दुस्तानी अपने अनेकों वीर सैनिकों की शहादतों के साथ उस शहादत को भी भूल गए, वह थी १९९९ के कारगिल युद्ध में कैप्टन सौरभ कालिया और उनके 4 साथियों की शहादत ! पाकिस्तानियों ने हमारे इन युवा जवानो के साथ क्या सुलूक किया, हम अच्छी तरह से जानते है ;

"He was the first officer to detect and inform Pak intrusion. Pakistan captured him and his patrol party of 5 brave men alive on 15th May, 99 from our side of LOC. They were in their captivity for 3 weeks and subjected to unprecedented brutal torture as evident from their bodies handed over by Pakistan Army on 9th June, 99.They indulged in dastardly acts of burning bodies with cigarettes, piercing ears with hot rods, removing eyes before puncturing them, breaking most of the bones and teeth, chopping off various limbs and private organs of these soldiers besides inflicting unimaginable physical and mental tortures. They were shot dead ultimately. (A detailed postmortem report is with the Indian Army) This continued for about 22 days."और दूसरी तरफ अब ज़रा एक रिटायर्ड पाकिस्तानी मेजर शमशाद अली खां, जिन्होंने १९७१ में बंगलादेश युद्ध में भाग लिया था, भारतीय सैनिकों की उदारता का वर्णन उनकी जुबानी सुने;

"My painful journey to surrenderBy the time we got back, the Pakistan Army’s company strength had crossed over the nullah and taken position. The Sikh major retained all Pakistan Army captains and I was told to accompany a havaldar, who would escort me to Indian Brigade Commander Brig. Sindhu.

We descended into the deep nullah and saw Indian engineers building passages. As I passed them by, they saluted me even though they could tell I was a Pakistani due to my uniform. Their conduct left me with a positive impression about the Indian Army. At the nullah’s other end, I saw another Pakistan Army company strength mounted on vehicles, ready to go across."


आजादी के बाद की तीसरी और चौथी पीढी को तो छोडिये, पहली और दूसरी पीढी के ही कितने लोग जानते है कि हमारे देश भारत तथा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को आजादी मिलने से ४ दिन पहले ही ११ अगस्त १९४७ को बलूचिस्तान को अंग्रेजों ने आजादी दे थी, और वह भी पाकिस्तान की सहमती के साथ ? लेकिन २७ मार्च १९४८ को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था, और तब से आज तक वह मुल्क पाकिस्तान की तमाम जिल्लतें उठाने पर मजबूर है, आजादी के लिए छटपटा रहा है ! खनिज और प्राकृतिक साधन संपन्न पाकिस्तान के पश्चिम में स्थित यह क्षेत्र जो बाकी पाकिस्तान को गेंहूं, चांवल, चना, मक्का, कपास और खनिज गैस की आपूर्ति करता है, खुद एक दयनीय स्थित में जी रहा है और दाने-दाने को मोहताज है! मंदबुद्धि, संकीर्ण दृष्ठि वाले दुनियाभर के तमाम स्वार्थी मुल्ला उस कश्मीर, जिसका भारत में विलय १९४८ में पूरे वैधानिक तौर पर हुआ था, उसकी आजादी और वहाँ पर तथाकथित मानव अधिकारों के हनन का रोना तो खूब रोयेंगे, मगर जिस एक सार्वभौम देश पर पाकिस्तान पिछले ६४ सालों से कब्जा किये बैठा है और चुन-चुन का बलूच लोगो का दमन और सफाया कर रहा है, वो इन्हें नजर नहीं आता!

 

अब जो मैं कहना चाहता हूँ वह यह कि अपने अमानवीय कृत्यों और दमन तथा नाकामी को छुपाने के लिए हालांकि समय-समय पर पाकिस्तान बलूचिस्तान में भारत की संलिप्तता का राग आलापता ही रहा है, और भारत इसका खंडन भी करता रहा है! लेकिन एक कटु सच्चाई यह भी है कि जो अमेरिका कभी अपने हितों के लिए अंधा बनकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था, नाटो के हालिया हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा नाटो को आवश्यक सामग्री की जो सफ्लाई पाकिस्तान से होकर अफगानिस्तान जाती है, उसे पाकिस्तान द्वारा बंद किये जाने के बाद आज वह भी कही यह पछतावा करता होगा कि उस वक्त पाकिस्तान की पैरवी न करते हुए बलूचिस्तान को अगर एक अलग राष्ट्र रखने में वह कामयाब हुआ होता तो आज उसे भी यह दिक्कत नहीं झेलनी पड़ती और पाकिस्तान की इसकदर खुशामद भी नहीं करनी पड़ती! बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट जिसे आजकल चीन अपने फायदे के लिए तैयार कर रहा है, वहाँ से अफगानिस्तान आने-जाने में उसे सुगमता होती !

खैर, भूतकाल में क्या हुआ वह अब अतीत बन चुका है,किन्तु मेरा मानना है कि पाकिस्तान का एक और विभाजन कर एक स्वायत बलूचिस्तान का निर्माण न सिर्फ बलूच लोगों और अफगानिस्तान के हित में होगा बल्कि अमेरिका, भारत और तमाम मध्य पूर्व के देशों भी हित में होगा! और मैं तो कहूंगा कि खुद पाकिस्तान के भी हित में भी होगा ! आतंकवाद का काफी हद तक इससे इसलिए खात्मा हो जाएगा क्योंकि आतंकवादियों के मुख्य गढ़ कंधार और क्वेटा इसी हिस्से में मौजूद है! सामान्य परिस्थितियों में अपने देश से तो मैं ऐसे दुस्साहस की अपेक्षा कम ही रखता हूँ, मगर आज जिस पोजीशन में अमेरिका अफगानिस्तान में मौजूद है, मैं समझता हूँ कि बलूचिस्तान को आजाद करने में उसे खासा दिक्कत नहीं होगी और वह बलूच लोगो का दिल और विश्वास जीतकर अपने लिए अफगानिस्तान आने जाने के लिए एक सुगम मार्ग प्रशस्त कर सकता है! वैसे भी आज एक बलूच आपको यही कहता फिरता मिलेगा कि "We prefer liberty with danger than peace with slavery ".

चित्र नेट से साभार !






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10 comments:

  1. आँखें खोलने वाला सशक्त लेख ।
    अच्छा विश्लेषण किया है पाकिस्तान की दयनीय स्थिति का ।
    सही कहा , शायद अब तो हम कभी यह कदम न उठा पायें लेकिन अमेरिका को सोचना चाहिए ।

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  2. ओह, यह तो मुझे नहीं पता था कि बलूच पहले से ही स्वतंत्र हैं.

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  3. तभी तो सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ़ार खान ने कहा था कि भारत ने हमे मझदार में छोड़ दिया है :(

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  4. पता नहीं इतिहास ऐसे मोड़ क्यों ले गया, बीज तो उस समय ही बो दिया गया था।

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  5. bahut hi chaukane vala satya....vicharniya post.

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  6. जय हिंद! शहीद होने वाले भारत के सपूतों को सलाम!

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  7. शानदार आलेख के लिए बधाई स्वीकारें। वाकई यह देखकर मैं भी चौक गया था कि लौह पुरुष के जन्म दिन पर अखबारों में न तो विज्ञापन था और न ही उनसे संबंधित सामग्री। जबकि हाल ही में गांधी परिवार के सदस्यों की जन्मतिथि के अवसर पर अखबार व अन्य प्रचार-प्रसार के माध्यम विज्ञापनों से अटे पड़े थे। लेख में उठाए बाकी के सवाल भी वाजिब हैं।

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  8. गोंदियाल साहब, आपके इस लेख से बहुत सी नई जानकारी मिली. मेरी राय में तो पाकिस्तान को एक देश के रूप में पूरी तरह से ख़त्म कर दिया जाना चाहिए पर हमारे रीढ़ विहीन नेता ये शुभ कार्य नहीं कर पाएंगे. कोई बात नहीं. चिंता ना करें. ये पाकिस्तान नामक आतंकियों का स्वर्ग जल्द ही खुद धूल में मिल जायेगा . बस सभी दोनों हाथ उठाकर कहें...आमीन.

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  9. चंद्रमौलेश्वर साहब, पहले तो आप सभी लोगो का शुक्रिया की आपने मेरे लेख को ध्यान से पढ़ा !सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान ने कुछ गलत नहीं कहा था ! नेहरु ने राजबंश चलाना था सो देश कीमत पर चलाया! हिन्दुस्तानी स्वतंत्रता के उल्लास में इतने अंधे हो गए की पास-पढ़ोस का ध्यान भी भूल गए! चीन ने तिब्बत हथियाया और पाकिस्तान ने बलूचिस्तान ! अगर कश्मीर को ही ये जनाब जब संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे तो यह भी तो शर्त राखी जा सकती थी की कश्मीर में तब पेब्लिसाईट होगा जब पाकिस्तान वही बलूचिस्तान में करवाएगा ! मगर देश की किसे पडी थी? इतिहास हम इन कुछ मुट्ठीभर लोगो की मर्जी के मुताविक पढ़ते है ! आने वाले वक्त में हमारी संताने भी किसी चाटुकार इतिहासकार का लिखा वो इतिहास पढने वाले है जिसमे लिखा होगा की ये आज की भ्रष्ट मंडली के लोग बहुत महान राजनीतिग्य थे इन्होने अपने @#$%^&

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।