फिर से देहरी पे
क्रिसमस और नवबर्ष
दस्तक देने को है और
मैं जानता हूँ कि मेरी
आरजुओं की थमी झील में
तुम फिर एक बार
ख्वाइशों की तैरती कश्ती से अपनी
फरमाइशों का लंबा जाल फेंकोगी।
तुम्हारी फरमाइशें भी क्या कहने,
मासा अल्लाह !
अभी, गुजरे साल की ही तो बात है,
क्रिसमस पर तुम्हे
ताजमहल दिखाने ले गया था,
और तुम अड़ गई थी,
खुद की अकेली एक
फोटो खिंचवाने की जिद पर,
और मैंने भी बड़ी कुशलता से
तारे जमीं पर उतारे बिना ही
तुम्हारी वह ख्वाइश भी पूरी की थी।
मगर तुम हो कि
मेरी अक्लमंदी की दाद देने के बजाये,
पड़ोसनो के शौहरों का ही
गुणगान करते नहीं थकती,
खैर, तुम खुश रहो,
इसी में समूचे जगत का
सुख निहितार्थ है,
मेरा क्या,
पैदाइशी चार आँखे लेकर आया था,
दो तुम्हें तकते फूटी, दो इंटरनेट पर !!
छवि नेट से साभार !
क्रिसमस और नवबर्ष
दस्तक देने को है और
मैं जानता हूँ कि मेरी
आरजुओं की थमी झील में
तुम फिर एक बार
ख्वाइशों की तैरती कश्ती से अपनी
फरमाइशों का लंबा जाल फेंकोगी।
तुम्हारी फरमाइशें भी क्या कहने,
मासा अल्लाह !
अभी, गुजरे साल की ही तो बात है,
क्रिसमस पर तुम्हे
ताजमहल दिखाने ले गया था,
और तुम अड़ गई थी,
खुद की अकेली एक
फोटो खिंचवाने की जिद पर,
और मैंने भी बड़ी कुशलता से
तारे जमीं पर उतारे बिना ही
तुम्हारी वह ख्वाइश भी पूरी की थी।
मगर तुम हो कि
मेरी अक्लमंदी की दाद देने के बजाये,
पड़ोसनो के शौहरों का ही
गुणगान करते नहीं थकती,
खैर, तुम खुश रहो,
इसी में समूचे जगत का
सुख निहितार्थ है,
मेरा क्या,
पैदाइशी चार आँखे लेकर आया था,
दो तुम्हें तकते फूटी, दो इंटरनेट पर !!
छवि नेट से साभार !
तारे न जमीं पर न ही आसमां पर..
ReplyDeleteसुन्दर रचना, मुग्ध करते भाव, सादर.
ReplyDeleteहा हा हा ! फोटोग्राफर हो तो ऐसा !
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।
Very funny .
ReplyDeleteenjoy this bite
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=vUC__Xm-MBQ
हा हा हा……………जय हो।
ReplyDeleteहज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि..... :)
ReplyDeleteदो तुम्हें तकते फूटी, दो अंतर्जाल पे !!
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा भाई वाह वाह वाह...बेजोड़ रचना...दिन भर की थकन इसे पढ़ते ही उड़न छू हो गयी...बधाई स्वीकारें.
नीरज
पैदाइशी चार आँखे लेकर आया था,
ReplyDeleteदो तुम्हें तकते फूटी, दो अंतर्जाल पे !!
एक बेहतरीन कविता.
:) हा हा हा...
ReplyDeleteमेरी अक्लमंदी की दाद देने के बजाये,
ReplyDeleteपड़ोसनो के शौहरों का ही
गुणगान करते नहीं थकती !
बहुत बढ़िया साहब.
पैदाइशी चार आँखे लेकर आया था,
ReplyDeleteदो तुम्हें तकते फूटी, दो अंतर्जाल पे !!
:-)
वाह वाह ... क्या इस्तेमाल है चार आँखों का ... मज़ा आ गया गौदियाल साहब ...
ReplyDeletebahut mazedaar...
ReplyDeleteपैदाइशी चार आँखे लेकर आया था,
दो तुम्हें तकते फूटी, दो अंतर्जाल पे !!
shubhkaamnaayen.