क्यों स्व:कृत्यों पर
तुम गुमसुम हो,
तुम गुमसुम हो,
चेहरा तो तुम्हारा
कुदरती रोदन है,
कुदरती रोदन है,
उस पर नूर न सही,
मगर तबस्सुम हो।
मगर तबस्सुम हो।
प्रजाशाही की गर्दिश में,
अब और न तसव्वुर ढूढो,
अब और न तसव्वुर ढूढो,
फिर कोई ये न कहे कि
तुम्हारे हाथों में चूड़ी,
माथे पर कुमकुम हो।
माथे पर कुमकुम हो।
बदला न करों यूँ अचानक,
कथा कथ्य और कथानक !
तर्कशास्त्र व अर्थशास्त्र
परिलक्षित हो कृत्य में,
परिलक्षित हो कृत्य में,
न ही ये चमन
अभद्र की जन्नत बने,
अभद्र की जन्नत बने,
और न ही
भद्र के लिए जहन्नुम हो।
भद्र के लिए जहन्नुम हो।
कितने और युवाओं को
बेकार संहारोगे,
बेकार संहारोगे,
और कितने हर्मिन्दरों को,
बेअक्ल करारोगे,
बेअक्ल करारोगे,
स्मरण रहे,
कोप की ज्वाला दहक रही है,
कोप की ज्वाला दहक रही है,
किसी और का
न फिर कभी,
न फिर कभी,
भरी महफ़िल में सबर गुम हो।
भ्रष्टाचार का ऐंसा
मंच सजाया क्यों,
मंच सजाया क्यों,
जनयुद्ध का ये बिगुल
किसने बजा क्यों ?
किसने बजा क्यों ?
अब नसीहतों से
कुछ भी हासिल न होगा ,
कुछ भी हासिल न होगा ,
ये पब्लिक है, ये सब जानती है,
बेखबर ये नहीं, बेखबर तुम हो।
ये पब्लिक है, ये सब जानती है,
ReplyDeleteबेखबर ये नहीं, बेखबर तुम हो !!
....बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति...
वाह!! बहुत खूब लिखा है आपने!! सटीक एवं सशक्त अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है :)
ReplyDeleteबहुत खूब !!!
ReplyDeleteसही खबर ली है ।
ReplyDeleteबेखबर ये नहीं, बेखबर तुम हो !!
ReplyDeleteआजकल के हालात पर सार्थक पोस्ट .
सभी एक दूसरे से बेखबर दिख रहे हैं।
ReplyDeleteBehtreen!!!
ReplyDeleteव्यवस्था के खिलाफ आग दिख रही है....
ReplyDeleteकाश ये सच हो ,... पब्लिक जागी हुयी हो ... बे खबर न हो ..
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