Monday, December 26, 2011

इस 'अपरस' रोग का क्या कोई इलाज है?


यूं तो 'अपरस' शब्द अपने आप में बहुत व्यापक अर्थ समेटे हुए है, लेकिन इस आलेख की पृष्ठ-भूमि में इस शब्द के आम इस्तेमाल होने वाले और गौर करने लायक जो प्रमुख अर्थ मौजूद है, वे है ; अपने को सर्वोपरि समझने वाला, घमंडी, स्वार्थी, अपने बड़ों का आदर न करने वाला, अकारण भय पैदा करने वाला और नसीहत देने वाला इंसान। आज के परिपेक्ष में जबकि न सिर्फ हमारा देश अपितु पूरी दुनिया विभिन्न स्तरों पर एक वर्ग विशेष द्वारा स्थापित भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर सामाजिक उथल-पुथल, असहजता और वैचारिक समुद्रमंथन के दौर से गुजर रही है, तब ये शब्द हमारे समाज के किस ख़ास वर्ग अथवा चरित्र पर सटीक बैठते है, मैं समझता हूँ कि उसे यहाँ खुलकर बताने की आवश्यकता नहीं है।



भिन्न अर्थों में, या यूँ कहें कि जीव विज्ञानं की भाषा में इस शब्द का अर्थ इस तरह से समझा जा सकता है कि इसका इस्तेमाल त्वचा से सम्बंधित एक ख़ास किस्म के चर्म रोग, जिसे अंगरेजी में सोरियासिस (PSORIASIS) के नाम से जाना जाता है, के लिए होता है। यह एक प्रकार का असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार (चर्मरोग) है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। इस रोग से ग्रस्त प्राणी की शारीरिक त्वचा मोटी होकर एक समस्या का रूप धारण कर लेती है, विशुद्ध भाषा में इसे कुष्ठ रोग भी कहा जाता है।यह रोग सामान्यतया बहुत ही मंद स्थिति का होता है, धीरे-धीरे कब किसी को पूरी तरह अपनी चपेट में ले ले, अंदाज लगाना बहुत मुश्किल काम है।... "यह ऐसा दीर्घकालिक विकार है जिसका यह अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। इसके सही कारणों की जानकारी नहीं है। अद्यतन सूचना से यह मालूम होता है कि सारिआसिस (अपरस) मुख्यत: इन दो कारणों से होता हैः एक वंशानुगत पूर्ववृत्ति और दूसरा स्वतः असंक्राम्य प्रतिक्रिया से।"
(उपरोक्त चंद लाइने विकिपीडिया से साभार)



उपरोक्त विवरण से आप लोग इतना तो समझ ही गए होंगे कि चमड़ी मोटी हो जाना, न सिर्फ एक व्यक्ति अपितु पूरे देश और समाज के लिए अशुभ संकेत है। एक स्वस्थ देश और समाज के लिए यह जरूरी है कि उसके प्रतिनिधि, उसके लोग इस रोग से ग्रस्त न हों। मगर दुर्भाग्यबश, स्थिति इसके ठीक विपरीत एक गंभीर दौर से गुजर रही है, एक दो नहीं बल्कि समाज के कथित ख़ास वर्ग को आज इस अपरस रोग ने पूरी तरह से अपनी चपेट में ले लिया है। ज़रा सोचिये कि अपरस गर्सित यह तबका जब सिर्फ एक नेक कार्य को पटरी पर से उतारने के लिए इतने सारे प्रपंच, गंदी चालें, और दोयम दर्जे की हरकतें कर सकते है तो पिछले ६५ सालों में इन्होने क्या-क्या खेल नहीं रचाए होंगे? यह असाध्य रोग निरंतर विकराल रूप धारण करते जा रहा है। सवाल यह है कि क्या इसका कोई उपचार संभव रह गया है या फिर रोग ग्रसित वीभत्स अंग विच्छेदन ही अंतिम उपाय के तौर पर रह जाएगा ?







नोट: मेरी पिछली तीन पोस्टो पर चस्पा किये गए चित्र एक काले परदे पर संबोधन मार्क के रूप में दिख रहे है, इसे सोसल मीडिया पर लगाम के एक हिस्से के रूप में देखा जाये या फिर यह दिक्कत सिर्फ मेरे ही ब्लॉग पर है, नहीं मालूम !

छवि गूगल से साभार ! 

10 comments:

  1. देश इस रोग से गरसित हो गया है ... और यह लाइलाज होता जा रहा है

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  2. bilkul sateek v sahee baaten...

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  3. प्रणाम गोदलिया भाई... भई हम तो नम्र है ‘अपरस’ तो नहीं भये :)

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  4. @चंद्रमौलेश्वर प्रसाद;
    सर जी, मैं गोद लिया नहीं हूँ गोद दिया हूँ ! :)

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  5. यहाँ तो मरीज का बचना ही मुश्किल लग रहा है. अंग भंग तो पहले ही हो चुका.

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  6. ये ही अप -रसिये योजनाकार बने हुए हैं देश के समाज के राजनीति के .हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तान क्या होगा .

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  7. सोरियासिस( अपरस) का इलाज संभव है लेकिन फिर भी जिंदगी भर खतरा बना रहता है । जड़ से जाने वाला नहीं । :)

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  8. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  9. मोटी चमड़ी का तो कोई इलाज नहीं..

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।