जैसा कि हम सभी जानते है कि आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोष का जन्म दिवस है। २८ अप्रैल १९३९ जिस दिन वे कौंग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उससे अलग हुए थे, उससे पहले के उनके कार्यों और उपलब्धियों और साथ ही इस दरमियां हुई उठापटक को मैं कौंग्रेस की परम्परागत शैली से ख़ास भिन्न नहीं देखता, क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि अगर १९२८ के कोलकता अधिवेशन में गांधीजी अंग्रेज हुकूमत से सिर्फ डोमिनियन स्टेटस की मांग के पक्षधर नहीं बनते और नेताजी के पूर्ण स्वराज्य की मांग का समर्थन करते तो क्या पता शायद भारत द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले ही अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया होता। खैर, ये बात और है की आज के हालातों पर जब नजर डालता हूँ तो सोचता हूँ कि ठीक ही हुआ जो गांधी जी ने उनकी बात नहीं मानी और देश जल्दी आजाद नहीं हुआ।
लेकिन यहाँ पर उसके बाद के उनके देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और कुर्बानियों का संक्षित वर्णन विकिपीडिया और कुछ अन्य स्रोतों के सौजन्य से इस दिवस पर यहाँ अपने युवा शक्ति के लिए प्रस्तुत करना बेहतर समझता हूँ : 3 मई 1939 को नेताजी ने कांग्रेस के अंतर्गत फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। मगर कुछ दिन बाद उनको कांग्रेस से निकाल दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही नेताजी ने स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र करने के लिए जनजागरण शुरू कर दिया। इसलिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जब उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया तो उन्हें उनके घर पर नजरबदं कर दिया गया। उन्होंने नजरबंदी से निकलने की योजना बनाई और एक दिन वे भेष बदलकर पेशावर, काबुल होते हुए इटली और फिर जर्मनी पहुंचे। फिर वे एक दिन समुद्री रास्ते से मेडागास्कर, इंडोनेशिया होते हुए सिंगापुर पहुंचे और वहां से शुरू हुई आजाद हिंद फ़ौज की जंग। 21 अक्तूबर 1943 को नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए। आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकडे़ हुए भारतीय युद्धबंदियोंको भर्ती किया। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतों के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। इसलिए उन्होंने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। 23 अगस्त 1945 को जापान की दोमेई समाचार संस्था ने बताया कि 18 अगस्त को नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस सफर के के बाद से ही उनका कुछ भी पता नहीं चला।
इस महान नायक को शत-शत नमन !
अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद का जयघोष तुम्हारा,
फिर याद करता तुम्हे ऋणी देश, ऐ बोष तुम्हारा,
आज के नेता स्वार्थपरता से न बाहर झाँक पाए,
खेद, हम कद्र तुम्हारी कुर्बानियों की न आंक पाए,
देश लूटा लुन्ठकों ने, अब लगे है कुकृत्य दफ़न पर,
ले जायेंगे संग शायद, जेब स़ी रहे अपने कफ़न पर,
आज फिर जवाँ सीनों में सुलग रहा रोष तुम्हारा !
फिर याद करता तुम्हे ऋणी देश, ऐ बोष तुम्हारा !!
http://nazehindsubhash.blogspot.com/
ReplyDeleteआज 23 जनवरी है, भारत माँ के सपूत, आजादी के संघर्ष के महानायक, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्मदिन!
आईये, इस अवसर पर हम सब उन्हें सलामी दें-
"जय हिन्द!"
महानायक को नमन..
ReplyDeleteनेताजी को नमन ..
ReplyDeleteकविता बहुत सटीक लिखी है .
जय हिंद. जय सुभाष.
ReplyDeleteनमन!
ReplyDeleteश्रद्धा पूर्वक नमन
ReplyDeleteफिर भी इस महान नायक का कोई राजनीतिक नामलेवा नेता नहीं है :( एक ही परिवार ने देश की राजनीति का सर्वाधिकार ले रखा है॥
ReplyDeleteजानकारी पूर्ण सामयिक पोस्ट ।
ReplyDeleteकविता में अच्छे उदगार प्रकट किये हैं ।
नेताजी को शत शत नमन ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!
शत शत नमन ..जय हिंद!!!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
भारत माता के महान सपूत को मेरा भी सलाम.... !
ReplyDeletehamara bhi naman ...
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
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