Wednesday, January 25, 2012

मजबूत लोकतंत्र के मायने !


ज्यों-ज्यों पांच राज्यों उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब, उत्तरप्रदेश और गोवा के विधान सभा चुनावों में मतदान के दिवस नजदीक आ रहे हैं,, ख़ास कुछ न करते हुए भी आप और हम यह तो खूब अवलोकित कर ही सकते हैं कि हमारे समाज में ऐसा क्या ख़ास गलत हो रहा है जो वजहों में भी प्रतिबिंबित होता नजर आता है। और जल्दी ही यह स्पष्ट भी हो जाता है कि यद्यपि हम एक लोकतांत्रिक समाज हैं, मगर वे निर्णय जो सीधे तौर पर हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं, उनमे देश के सभी नागरिकों की समान भागीदारी नहीं होती है।
आज यानि २५ जनवरी, २०१२ को भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना दिवस के अवसर पर इस आयोग द्वारा इसे राष्ट्रीय मतदाता दिवस के तौर पर मनाने की दूसरी पहल की जा रही है,(यह कार्यक्रम इस दिवस पर पिछले साल शुरू किया गया था)  जिसमे जगह-जगह मताधिकार के प्रति जन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन कर युवा मतदाताओ को मतदान करने की शपथ दिलाने और इस वर्ष १८-१९ वर्ष की आयु पूरा कर चुके युवा मतदाताओं को मतदाता पहचान-पत्र बांटे जाने का कार्यक्रम है। और यह कहना गलत न होगा कि निर्वाचन आयोग ने लोकतंत्र की मजबूती के लिए जो कदम उठाया है, वह एक सराहनीय कदम और सही मायने में अक्लमंदी का काम है।



मगर इन सारे प्रयासों के मध्य अब सवाल यह उठ खडा होता है कि आखिर यह मजबूत लोकतंत्र है किस चिड़िया का नाम? एक मजबूत लोकतंत्र के क्या मायने होते है? कल मेरी अपने एक मित्र से फोन पर बात हो रही थी, वे बता रहे थे कि आगामी ३० तारीख को उत्तराखंड में उनके क्षेत्र में चुनाव है, और अभी तक वहां ज्यादातर लोगो को यह मालूम नहीं है कि उनके क्षेत्र से कौंग्रेस और बीजेपी का उम्मीदवार है कौन ? और अगर यही हाल रहा तो वो परम्परागत मतदाता, जिन्हें कौंग्रेस और बीजेपी में से किसी एक पार्टी के उम्मीदवार को वोट देना होगा, वे वगैर यह जाने कि अगले पांच वर्षों तक उनके क्षेत्र का राज्य में प्रतिनिधित्व कौन शख्स करने जा रहा है, सिर्फ पार्टी के नाम पर वोट डाल दिए जायेंगे। सूचना क्रांति के इस भीषण दौर में भी यह कितनी हास्यास्पद और शर्म की बात है हमारे इस लोकतंत्र के लिए। अमेरिका की तर्ज पर मतदातावों के समक्ष दो प्रत्याशियों की बौद्धिक क्षमता और वाकपटुता जानने के लिए उनके बीच सार्वजनिक वाद-विवाद तो इस देश में अभी दूर की कौड़ी है , मगर क्या मजबूत लोकतंत्र के यही मायने है कि राजनैतिक पार्टियों ने भले ही अपने प्रत्याशियों के तौर पर चोर, लुटेरे, देशद्रोही, बलात्कारी, हत्यारे और अराजक तत्वों को खडा किया हो, और हम एक अच्छे नागरिक का फर्ज अदा करते हुए आँख मूंदकर उनमे से किसी एक को वोट डाल आयें?



चुनावों में देश के करदाता की गाडी कमाई का अरबों-खरबों रूपया खर्च किया जाता है, क्या हमारी सरकार और चुनाव आयोग के पास उसे व्यावहारिक तौर पर खर्च करने की इच्छा शक्ति नहीं है? सरकार और चुनाव आयोग द्वारा  चुनावों में धन और बाहुबल के उपयोग और आपराधिक छवि के उम्मीदवारों का चुनावों में प्रत्याशी  बनने का रोना तो खूब रोया जाता है, मगर क्या कभी इसे रोकने के सार्थक और ईमानदार प्रयास किये जाते है? पिछले आम चुनावों में प्रत्याशी का ब्योरा मतदाताओं को उपलब्ध कराने के खूब शिगूफे छोड़े गए थे, मगर ऐसा कुछ आज किसी को चुनाव-सुधार के धरातल पर हुआ नजर आता है ? किसी भी विधानसभा अथवा लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा कितने उम्मीदवार खड़े होते है ? १०,२०,३०,४० और अधिकतम ५०, फिर क्यों नहीं हर मतदाता केंद्र पर, जहाँ वोट देने आये मतदातावों की कतार लगाई जाती है, उस कतार के दायें-बाएं उस क्षेत्र के हर उम्मीदवार का पोस्टरों के जरिये यह ब्योरा मतदाता की जानकारी के लिए उपलब्ध  कराया  जाता है कि अमुक प्रत्याशी ने अपनी  कुल कितनी सम्पति घोषित की है, उसके ऊपर कितने और किस प्रकार के आरोप अब तक लगे है, और कितने और किस प्रकार के आरोपों में उसपर मुक़दमे दायर हैं, उसकी पृष्ठभूमि क्या है? आजादी के ६५ साल बाद भी क्यों नहीं इस प्रकार की तात्कालिक जानकारी देने की व्यवस्था के गई ? क्योंकि सरकार  में बैठे लोगो के खुद के कपड़ों पर ही अनेकों दाग हैं।



उत्तरप्रदेश की मौजूदा सरकार ने भले ही मजबूरियों और चुनावी हथकंडों के तौर पर अपने मंत्रीमंडल के मंत्रियों और विधायकों का एक अच्छा-खासा हिस्सा निकाल बाहर किया हो, या फिर वे जेल की सलाखों के पीछे हों, मगर यह तो साबित हो ही गया कि पिछले पांच सालों से कौन से महापुरुषों के हाथों में उत्तर प्रदेश की सत्ता की बागडोर थी। क्या एक मजबूत लोकतंत्र और दलित-दमित की दुहाई देकर देश-प्रदेशों को ऐंसे लोगो के हवाले कर दिया जाये ? जब मौजूदा सरकार पांच साल पहले सत्ता में आई थी तो जनता ने उसवक्त किसके कुशासन से क्षुब्द होकर इन्हें सता की बागडोर सौंपी थी? क्या पांच साल बाद उस पिछली सरकार (एसपी की सरकार ) के सारे गुनाह और करतूतें माफ़ कर दी जाएँ इस चुनाव में? क्यों नहीं चुनाव आयोग हर उस राजनैतिक दल, जो पहले उस प्रदेश में सता में रहे हो, उनके कार्यकाल के दौरान हुए प्रमुख घपलों और कुशासन को पोस्टरों पर उतार मतदान के समय मतदाता को उपलब्ध करता है? उत्तरप्रदेश की आज जो स्थिति है उसका जिम्मेदार कौन ? और फिर ५ साल पहले जनता ने जिसे इसको सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी थी, उन्होंने जनता के इस विश्वास को कैसे तोडा किसी से छुपा नहीं। अब यदि वह जोड़-तोड़ और अनैतिक हथकंडों एवं भोली-भाली जनता की भावनाओं को हथियार बनाकर दोबारा सत्ता हथिया ले तो क्या उसके पिछले सारे गुनाह माफ समझे जाएँ, यही एक मजबूत लोकतंत्र की परिभाषा है?



राजनैतिक दल जिसतरह वोटरों को लुभाने के लिए सामूहिक रिश्वत की राजनीति अपना रहे है, अनाप-शनाप प्रलोभन दे रहे है, क्या एक मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसे प्रलोभनों की राजनेतावों को छूट दी जा सकती है? कल तो फिर ये वोटरों से यह भी वादा कर आयेंगे कि यदि वे सत्ता में आये तो देश का विभाजन कर उन्हें अलग देश दे देंगे । सत्ता में आकर और उच्च पदों पर आसीन होकर, जनता के ही धन की हेराफेरी कर उसे धन से राजनैतिक दल अथवा नेता वोटरों को लुभाने का काम करते है और अपना घर भरते है, तो क्या वह एक मजबूत लोकतंत्र का द्योतक है? यहाँ एक और मुख्य बात मैं कहना चाहूँगा कि हम हिन्दुस्तानियों ने "ढुलमुल" शब्द को सदियों पहले गले लगा लिया था और उसी की परिणिति थी तीन-तीन गुलामियाँ। इसी  ढुलमुल परिपाटी पर चलते  भ्रष्टता,गुलामी और गद्दारी इस कदर हमारी रगों से चिपक गई कि हम सिर्फ और सिर्फ अपने दुष्कार्यों को सही ठहराने के लिए तर्क ढूढ़ते है।


और अंत में एक सबसे अहम् सवाल वोटर की आजादी का। इस देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के कुछ तथाकथित ठेकेदार जो सही मायनो में सबसे बड़े साम्प्रदायिक प्रवृति के लोग है, वे एक वक्त पर तो अन्ना जी पर यह आरोप लगाते है कि कहने के लिए यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चलाया जा रहा आंदोलन है, लेकिन किसी एक सवाल या मुद्दे पर किसी राजनैतिक दल को वोट नहीं देने की अपील क्या लोकतंत्र की मजबूती के लिए है, और आ वहीं दूसरी तरफ इन चुनावों में किसी एक राजनैतिक दल को वोट देने की अपनी पूरी जमात को फरमान जारी कर रहे है, और इतना ही नहीं उनकी यह भेड़ प्रवृति पिछले ६५ सालों से आँख मूँद इन वोट के ठेकेदारों के निर्देशों का अनुसरण भी कर रही है। क्या यही एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र की परिभाषा है? पिछले ६ दशकों में इस तरह की प्रवृति पर रोक लगाने के कारगर प्रयास क्यों नहीं किये गए ?



हालांकि, देश में आज जिस तरह का राजनैतिक माहौल है, जिस तरह के लोग सता पर काबिज हो रहे है, एक सही मायने में परिपक्व और मजबूत लोकतंत्र को पाने के लिए अभी हमें बहुत लंबा सफ़र तय करना है, मगर मैं यह उम्मीद करता हूँ कि आने वाले समय में हम लोकतंत्र की खामियों को दूर करने और एक विकसित तथा लोकतांत्रिक आदर्श को स्थापित करने की ओर अपने चुनाव संबंधी सुधारात्मक ईमानदार प्रयास निरंतर जारी रखेंगे। मुझे विश्वास है कि हमारे लोकतंत्र में अभी ऐसे बहुत से परिवर्तनों की गुंजाईश है, जो हमें एक मजबूत लोकतंत्र और बेहतर भारत की ओर अग्रसर कर सकते है।



क्षुब्द मन से आप सभी को अपनी एक पुरानी कविता की इन दो लाइनों के साथ कि;

लूंठक, बटमारों के हाथ में आज  अपना देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है।

गणतंत्र दिवस और मतदाता दिवस की हार्दिक वधाई देता हूँ !


UP 1st phase poll candidates: 38% criminals, 51% millionaires

Almost all major political parties have fielded candidates who have criminal cases registered against them. Samajwadi Party has 28 out of 55 (51 %), Bahujan Samaj Party 24 out of 55 (44 %), Bhartiya Janta Party 24 out of 55 (44 %), Indian National Congress 15 out of 54 (28 %), Peace Party 12 out of 42 (29 %), Janta Dal(U) 5 out of 20 (25 %), Rashtriya Lok Dal 1 out of 1 (100 %) candidates with declared criminal cases.Out of these 109 candidates with declared criminal cases, 46 (16 %) have been charged with serious criminal cases like murder, attempt to murder, kidnapping, robbery, extortion etc. BJP has 12, BSP 11 , SP 11 , Peace Party 6 , INC 5 , JD(U) 1 such candidates.




जय हिंद !


इस विषय पर आप मेरे इस पुराने लेख " ये वोटर कब सुधरेंगे " पर भी नजर डाल सकते है !

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15 comments:

  1. लूंठक, बटमारों के हाथ में आज अपना देश है,
    गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है।..
    बिलकुल सही..आज स्वतंत्रता के या गणतंत्र के कोई मायने नहीं हैं.
    kalamdaan.blogspot.com

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  2. स्वतंत्र होना शेष है... yahi sach hai

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  3. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

    ।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

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  4. लूंठक, बटमारों के हाथ में आज अपना देश है,
    गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है ...

    सहमत हूँ आपकी बात से ... लोकतंत्र अभी बस नाम का आया है अपने देश में ... आशा है कभी तो पूर्ण रूप से आएगा ...

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  5. इन छः दशकों में लोक और तंत्र के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है॥

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  6. अभी तो लोकतन्त्र के दुर्गुण ही मजबूत हो रहे हैं..

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  7. मुझे विश्वास है कि हमारे लोकतंत्र में अभी ऐसे बहुत से परिवर्तनों की गुंजाईश है, जो हमें एक मजबूत लोकतंत्र और बेहतर भारत की ओर अग्रसर कर सकते है।

    सहमत हूँ आपकी बात से परिवर्तन समय की मांग है ... गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें...

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  8. विचारणीय पोस्‍ट।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

    जय हिंद... वंदे मातरम्।

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  9. लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब जनता जागरूक होगी। वंदे मातरम

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  10. एक एक शब्द सही लिखा है. लेकिन फिर एक लेकिन उठ खड़ा होता है अपने साथ अनंत प्रश्न लिए, जिनका कोई जवाब नहीं.

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  11. गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है।

    जी हाँ ..... विचारणीय पोस्ट के लिए आभार

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  12. 63वें गणतंत्र दिवस की बधाई।

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  13. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  14. जाने आम आदमी के इन सवालों का जवाब कभी इस सियासत के पास होगा भी या नहीं ।स्थिति विकट है लेकिन जनचेतना ही इसका ईलाज़ है

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  15. हौसला रखिये

    इलाही वो भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे
    जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।