रूठो न इस तरह कि बात ख़ास से आम हो जाए,
बेकस धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
कुछ इसतरह संभाले हम, बिखरने की ये कवायद,
फजीहत न महफ़िल में,रिश्तों की सरेआम हो जाए।
ढूढ़ते रहें तहेदिल से, नफरतों में तेरी मुहब्बत को,
फासलों को बढ़ाने की हर कोशिश नाकाम हो जाए।
वक्त के दिए जख्मों पर परस्पर मरहम लगा के,
दिलों को यूं मनायें,जान इक-दूजे के नाम हो जाए।
आगाज कर 'परचेत' कुछ ऐंसा,अंजाम सुखद हो,
नाम की फिकर कैसी जब दुनिया बदनाम हो जाए।
बेकस धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
कुछ इसतरह संभाले हम, बिखरने की ये कवायद,
फजीहत न महफ़िल में,रिश्तों की सरेआम हो जाए।
ढूढ़ते रहें तहेदिल से, नफरतों में तेरी मुहब्बत को,
फासलों को बढ़ाने की हर कोशिश नाकाम हो जाए।
वक्त के दिए जख्मों पर परस्पर मरहम लगा के,
दिलों को यूं मनायें,जान इक-दूजे के नाम हो जाए।
आगाज कर 'परचेत' कुछ ऐंसा,अंजाम सुखद हो,
नाम की फिकर कैसी जब दुनिया बदनाम हो जाए।
क्या भाई साहब ऐसे ऐसे मारक पंक्तियाँ !!
ReplyDeleteबहुत खूब गोदियाल जी ! बढ़िया आउटकम निकला है । :)
ReplyDeleteइसी का तो आउटकम होता है झगड़ा :)
ReplyDeleteरूठो न इस तरह कि बात ख़ास से आम हो जाए,
ReplyDeleteअकुलाहट धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
वाह ,गजब का लिखा है
joke aur ghazal dono lajabaab hain.
ReplyDeleteरूठो न इस तरह कि बात ख़ास से आम हो जाए,
ReplyDeleteअकुलाहट धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
...लाज़वाब !...बहुत ख़ूबसूरत गजल..
चुटकुला और ग़ज़ल दोनों अच्छे है। धन्यवाद।
ReplyDeleteघर में यूँ बैठे रहते हो दिन रात,
ReplyDeleteबाहर तनिक निकलो तो कुछ काम हो जाये।
हा हा, क्या खूब कही... दोनों ही बढ़िया रहीं.
ReplyDeletekya baat hai sirji.. waah.. :D
ReplyDeletekabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. apka swaagat hai..
palchhin-aditya.blogspot.com
वाह, वाह!
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन ...
ReplyDeleteभाई परचेत जी ,
ReplyDeleteसही मूड में ...:-))))))
शुभकामनाएँ!
वह क्या बात है गोदियाल जी बहुत खूब
ReplyDelete.............................
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....
ढूंढें फिरे तहेदिल से, नफरतों में तेरी मुहब्बत को,
ReplyDeleteफीके न पड़े ये जलवे, कोशिश न नाकाम हो जाए ..
ढूँढने से तो खुदा भी मिल जाता है ... उनकी मुहाबत तो बस प्यार के दो बोलों से ही मिल जायगी ... लाजवाब लिखा है गौदियाल साहब ..
कुछ इस तरह संभाले हम, बिखरने की ये कवायदें,
ReplyDeleteफजीहत न महफ़िल में,रिश्तों की सरेआम हो जाए।
बहुत खूब .. खूबसूरत गज़ल