Thursday, January 19, 2012

स्टेनोग्राफर बनाम....

एक आपात बुलावा आ जाने की वजह से ह्रदय रोग विशेषज्ञ और बाईपास सर्जन डाक्टर जैन एवं उनके असिस्टेंट डाक्टर त्रिवेदी सर्जरी के लिए ऑपरेशन टेबिल पर रखे मरीज से सम्बंधित   कुछ हिदायते, जेनी और जूली को देकर और उसे उनकी देख-रेख में छोड़कर तुरंत बगल वाले ऑपरेशन थियेटर में चले गए थे। इधर टेबिल पर बेहोश पड़े मरीज के सर्जरी के लिए फाड़े गए सीने के उसपार गाढा बैंगनी रंग लिए तह की सी मुद्रा में पड़े दिख रहे दिल में जब भी कोई हल्की सी कम्पन होती तो उसे गौर से देख रही जेनी, उसके बगल में खड़ी जूली की तरफ सिर घुमाकर हल्का सा मुस्कुरा भर देती थी। फिर कभी वह टेबिल पर रखी कास्त्रोविएजो कैंची को हाथ में लेकर उससे मरीज के दिल की उन तहों तो टटोलने लगती और फिर रुआंसी सी शक्ल बनाकर जूली से कहती कि माँ कहती थी कि मेरे लिए प्यार को इस निर्मम, कुकर्मी इंसान ने अपने दिल में छुपाकर रखा है, मैंने तो इसके दिल को सारा टटोल लिया, मुझे तो कहीं भी नजर नहीं आया। जूली ने मास्क से आधे ढके अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए चुटकी लेकर कहा; अरी, तू तो उसके दिल की सिर्फ बाहर की तहें ही टटोल रही है, क्या पता उसने तेरे लिए प्यार को दिल की उस गठरी के अन्दर छुपा रखा हो।

उसका इतना कहना था कि क्रोध और प्रतिशोध की अग्नि में अन्दर ही अन्दर जल रही जेनी ने अपना दस्तानेयुक्त दांया हाथ मरीज के दो-फाड़ हुए पड़े सीने के अन्दर घुसेड दिया और उसके दिल की दोनों तहों को हथेली में लेकर जोर से उसे पिचका दिया। जूली को जेनी से ऐंसे व्यवहार के कदापि भी अपेक्षा न थी, उसने चीखते हुए और यह कहते हुए कि साली तू पागल हो गई है क्या, बांये हाथ से एक जोर का चांटा उसकी गर्दन पर कसा। जेनी ने हौले से अपना हाथ मरीज के सीने से ऊपर उठाया और आंसुओं के समंदर में तैरती अपनी आँखों की कातर नज़रों से जूली को निहारा, मुंह से उसके एक भी शब्द नहीं फूटा। जूली भयभीत नजरों से मरीज के दिल को देख रही थी, जो दबाव पड़ने से सिकुड़ सा गया था और धमनियों से उसके काला गाढा खून निकल आया था। तभी सामने से थियेटर का दरवाजा खुला और डाक्टर जैन और उनके सहायक डाक्टर अन्दर  प्रविष्ट हुए। जेनी और जूली को तो जैंसे सांप सूंघ गया था, जूली थर-थर कांप रही थी।

अगले दिन सुबह करीब ग्यारह बजे बाईपास सर्जन डाक्टर जैन मरीज से बातों में मशगूल थे और उसे ह्रदय से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ और सावधानियां बता रहे थे, कि तभी एक ट्रे लेकर जेनी उधर से गुजरी और  डाक्टर जैन ने उसे कड़कती स्वर-ध्वनी में आवाज दी, सिस्टर...... ! जेनी डरी-डरी सी डाक्टर जैन के समीप पहुँची तो सामने बिस्तर पर लेटा मरीज सकपका कर उठने की कोशिश करने लगा। डाक्टर ने उसे रिलैक्स होकर आराम से लेटे रहने की हिदायत दी और फिर चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान लाकर जेनी को घूरते हुए बोले ;इनसे मिलिए  ये सिस्टर जेनी है , और इन्ही के करामाती इलाज से आप बिना बाईपास सर्जरी के ही ठीक हो गए है, और जहां तक मैं समझता हूँ आपके दिल की धमनियों में अब शायद ही दुबारा कोई रुकावट पैदा हो, क्योंकि धमनियों में जमा हुआ सारा रक्त का थक्का पूरी तरह से साफ़ होकर बाहर निकल चुका है, मेरे लिए यह घटना वाकई किसी  चमत्कार जैसा है, और आपको सिस्टर जेनी का इसके लिए शुक्रिया भी अदा करना चाहिए। मरीज ने एक हल्की मुस्कान चेहरे पर लाते हुए जेनी को निहार उसकी तरफ अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे। जेनी, डाक्टर जैन को 'मैं जाऊ सर' कहकर तेज कदमो से उस वार्ड से बाहर निकल गई थी। आठ साल पुराना मंजर, जब बड़ी बेआबरू होकर वह सुप्रियो के घर से निकली थी, इसवक्त उसकी आँखों के सामने किसी चलचित्र की भांति चल रहा था................................।

विज्ञापन का एक छोटा सा प्रारूप सुप्रियो ने ज्यों ही केबिन में अपनी मेज के ठीक सामने बैठे अपने कार्मिक प्रबंधक श्री गुप्ता को सौंपा तो वह उस पर नजर डालते ही एकदम सकपका कर बोल पडा.... सर, ये क्या, हमारी कंपनी में हिन्दी स्टेनोग्राफर की क्या जरुरत ? आपको तो एक कंप्यूटर ऑपरेटर की जरुरत थी, और आप विज्ञापन हिंदी आशुलिपिक का निकाल रहे है ? हिन्दी में तो हमारे ऑफिस में कोई काम.... सुप्रियो ने शांत स्वर में उसकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा; गुप्ताजी आप सवाल बहुत ज्यादा करते है, मुझे किस चीज की ज्यादा जरुरत है, इसका ध्यान मुझे आपसे बेहतर है, इस कम्पनी का वाइसप्रेसिडेंट-संचालन मैं हूँ, ना कि आप।..... आप जाइये और ऐड निकलवाइए......प्लीज !

भर्ती की निश्चित प्रक्रिया पूरी होने के बाद आकांक्षा बनर्जी उर्फ़ जेनी (वह खुद को इसी नाम से पुकारना ज्यादा पसंद करती थी) को सुप्रियो के चयनानुसार इस पद के लिए चयनित कर लिया गया था। हालांकि जेनी किसी कोर्ट-कचहरी की आशुलिपिक बनने की ख्वाइशे ज्यादा दिल में संजोये थी, किन्तु उपयुक्त अवसर न मिल पाने की वजह से उसने यह नौकरी सहर्ष स्वीकार कर ली थी। इसकी एक वजह और भी थी कि यह जगह उसके घर से मात्र कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थी, साथ ही वहाँ तक आवागमन के साधनों की भी कोई कमी नहीं थी। शीघ्र ही जेनी ने अपनी कुशलता के बल पर न सिर्फ सुप्रियो के दफ्तर का एक टंकक और वैयक्तिक सचिव का पूरा काम संभाल लिया था, अपितु खाली समय में वह उसके लिए निजी हिन्दी आशुलिपिक और टंकक का काम भी कुशलता पूर्वक करने लगी थी, और कहना गलत न होगा कि उसने अपनी इसी खासियत से सुप्रियो का मन भी जीत लिया था।

एकतीस वर्षीय सुप्रियो एक साहित्यिक, सह्रदय किन्तु अल्पभाषी, अंतर्मुखी नौजवान था। दफ्तर में जेनी के आ जाने से मानो उसे कई मानसिक बोझों से मुक्ति मिल गई थी, साथ ही उसने मन ही मन एक निश्चय भी कर लिया था। समय बीता और जैसा कि अमूमन पत्र-पत्रिकाओं में पढने को अक्सर मिलता रहता है.... एक वह वक्त भी आ ही गया जब सुप्रियो और जेनी प्रणय-बंधन में बंधकर एक दूसरे के हो गए। शादी के दो महीने तक तो सबकुछ सामान्य ही चला, मगर फिर जल्दी ही किसी फ़िल्मी अंदाज में रिश्तों के मध्य खटास पैदा होने लगी। सुप्रियों अति तो नहीं कहेंगे मगर हाँ, एक निश्चित मात्र में नियमित शराब का आदी था और रात को भी जबतब नशे में जेनी से हिंदी की आशुलिपि करवाता रहता था। जेनी को भी जल्दी ही यह महसूस होने लगा था कि सुप्रियो को एक जीवन साथी की कम और एक आशुलिपिक की जरुरत ज्यादा थी, और सुप्रियो का साहित्य-प्रेम उनके निजी जीवन में अनावश्यक दखल दे रहा है। और इसी कशमकश के बीच एक वह दिन भी आ ही गया जब वह रूठकर अपनी माँ के पास अपने मायके चली गई।

जेनी के मायके में सिर्फ उसकी माँ और छोटी बहन अभिलाषा थी, पिता का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो गया था। चूँकि उसके पिता जल निगम में कार्यरत थे, और उनकी ड्यूटी के दौरान ही आकस्मिक मृत्यु हुई थी, अत: मृत्यु पश्चात जेनी की माँ को उसके पिता के स्थान पर निगम में ही नौकरी मिल गई थी। फलस्वरूप जेनी और उसकी बहन के लालन-पालन में माँ को ख़ास दिक्कतों का सामना नहीं करना पडा था। जेनी के इस तरह अचानक मायके आ जाने से माँ के माथे पर बल पड़ गए थे, चिंतित माँ ने उसकी कुशलक्षेम पूछी तो वह फफककर माँ के सीने से जा लगी। जिस माँ ने परिपक्व बसंत की फागुनी बयार देखने से पहले ही पतझड़ को गले लगा लिया था और अपनी तमाम उम्र, अपनी दोनों बेटियों के सुखद भविष्य के लिए समर्पित कर दी थी, उसका मन इसवक्त दुविधा और उलझन की दो नावों पर सवार था। एक तरफ वह सोच रही थी कि शायद इसे मेरी और अपनी बहन की याद सता रही होगी, इसलिए यह इसतरह यहाँ चली आई , दूसरी तरफ मन के किसी कोने में यह आशंका भी उठ रही थी कि कहीं इसके और सुप्रियो के बीच में कोई खटपट तो.....! ढाढस बंधाने और कुछ पल बीतने के बाद उसकी माँ ने जेनी के सिर पर हाथ फेरते हुए उससे सुप्रियो का हालचाल पूछा तो जेनी की आँखे एकबार पुन: छलछला आई। सुबकते हुए अपना सिर माँ के सीने पर टिकाते हुए वह बोली, मम्मी, मैंने गलत साथी चुन लिया, वह मुझसे नहीं मेरी आशुलिपि से प्रेम करता है, उसका मेरे प्रति ज़रा भी लगाव नहीं है। स्थिति को समझते हुए उसकी माँ ने एक बार फिर से उसके सिर पर हाथ फेरा, और कहा कि तू तो पगली है, सुप्रियो एक समझदार लड़का है, प्यार कोई दिखाने की वस्तु थोड़े ही है, जो वो तुझे दिखाता फिरे। तेरे लिए उसका प्यार उसके दिल में छुपा हुआ है, जा अभी तू अपने कमरे में आराम कर, हम फिर बाद में बात करेंगे।

अगली सुबह उसकी माँ ने पहले सुप्रियो को फोन किया और उसे अपने यहाँ दिन के भोजन पर आमंत्रित किया और फिर बहुत देर तक जेनी को समझाती रही, अपने घर की परिस्थितियाँ उसे याद दिलाई और कहा कि बेटी, नए घर, नई जगह पर सामंजस्य बिठाने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है, तुझे इतनी जल्दी इन निष्कर्षों पर नहीं पहुंचना चाहिए। देख लेना सुप्रियो के दिल में तेरे लिए बहुत प्यार छुपा है, मैंने अभी उससे फोन पर बात भी की थी और उसे लंच पर बुलाया है,.... तू फ़िक्र मत कर सब ठीक हो जाएगा। दोपहर में ठीक वक्त पर सुप्रियो अपनी ससुराल पहुँच गया था, माँ की दिलाशाओं और सुप्रियो की बातों में आकर जेनी एक बार पुन: उसके साथ हो ली थी। किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी उनके गृहस्थ की गाडी ठीक से पटरी पर आने को तैयार न थी, सांझ ढलते ही सुप्रियो रोज की भांति अपनी औकात पर आ जाता था। आखिरकार वह दिन भी आ ही गया, जिसकी जेनी को आशंका थी। सुप्रियो ने आज कुछ ज्यादा ही पी ली थी, और जब थोड़ी देर की तू-तू..मैं..मैं के बाद जेनी ने यह कहा कि तुम्हे मैं नहीं, मेरी आशुलिपि चाहिए तो सुप्रियो भड़क गया और वह सब कह गया जिसकी जेनी ने सपने में भी आश नहीं की थी। उसने कहा, तुम इसे आज के बाद मेरी मूक गर्जन समझ लो या फिर गगनभेदी चुप्पी, लेकिन अगर तुम्हे मेरे साथ रहना है तो मेरी शर्तों पर चलना होगा,अन्यथा ...... !

सुप्रियो के शब्द मानो जेनी पर बिजली गिरा रहे थे, उसने झटपट अपना सामान समेटा और सुप्रियो को हमेशा के लिए विदा कहकर अपने मायके चली आई थी। स्टेनोग्राफी से उसे अब नफरत सी हो गई थी. अत: अपनी माँ की सलाह पर उसने नर्स का कोर्स ज्वाइन कर लिया था। साथ ही वह अब सुप्रियो संग बिठाये पलो को एक दु:स्वप्न मानकर उसे हमेशा के लिए भुला देना चाहती थी। समय पंख लगाकर उड़ता चला गया। इसबीच नर्स की ट्रेनिंग पूरी कर उसने दूसरे शहर के ह्रदय रोग से सम्बंधित एक बड़े हॉस्पीटल में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। उसकी छोटी बहन अभिलाषा की भी शादी हो चुकी थी, और उसकी माँ भी नौकरी से सेवानिवृत हो गई थी,इसलिए वह अपनी माँ को भी अपने साथ ही ले आई थी।

करते-करते यूँ ही कुछ साल और गुजर गए। नर्स के पेशे में आने के बाद जेनी को अपनी घनिष्ठ मित्र के रूप में एक अन्य नर्स केरल की जूली भी मिल गई थी, जिससे वह अपना सारा दुखदर्द और खुशियाँ बांटती थी। जेनी की रोजमर्रा की जिन्दगी अब एंजियोग्राम,एंजियोग्राफी,एंजियोप्लास्टी,हार्ट अटैक, स्टेंटिंग प्रोसेस एवं बाई पास सर्जरी जैसे शब्दों पर आकर सिमट गई थी, कि तभी एक दिन एक ख़ास मरीज ने उनके अस्पताल में दस्तक दी.....।

मंगलवार का दिन, जेनी की अस्पताल की नौकरी का साप्ताहिक छुट्टी का दिन.....जूली भी जेनी के संग उसी घर में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी। जेनी कुछ दिनों से उदास सी चल रही थी, अत: उसकी माँ इस बाबत उससे और जूली से सुबह से तीन बार पूछ चुकी थी कि उसका चेहरा इतना मुरझाया क्यों है? मगर उसे न तो संतोषप्रद जबाब न जूली से मिला था और न ही जेनी से। फिर माँ ने उसे मूली के परांठो का नाश्ता खिलाकर यह प्रस्ताव उसके समक्ष रख ही रही थी कि क्यों न आज हम सभी अभिलाषा के घर चलें, बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई और साथ ही जेनी का मूड भी कुछ सुधर जाएगा...कि तभी एक लम्बी होंडा एकोर्ड घर के बाहर रुकी। ड्राइवर ने तेजी से अपनी सीट से उतरकर कार के पीछे से घूमकर आकर बांई तरफ का पिछली सीट का दरवाजा खोला। सुप्रियो आहिस्ता-अहिस्ता गाडी की सीट से नीचे उतरा और घर के दरवाजे से कमरे की तरफ बढ़कर जेनी की माँ से मुखातिव हुआ। उसने सलीके से माँ के पैर छुए और फिर सीधा खडा होकर उसने दोनों हाथ जोड़ लिए। जेनी की माँ ने चेहरे पर बिना कोई भाव प्रकट किये उसे सामने पड़े सोफे पर बैठने का इशारा किया।

मगर सुप्रियो सोफे पर बैठने के बजाये माँ के चरणों में गिर पडा और गिडगिडाने लगा; आप और जेनी मुझे माफ़ कर दो माँ, बस, मुझे मेरा प्रायाश्चित करने का सिर्फ और सिर्फ एक मौक़ा और दे दो। मैं जेनी की हर ख्वाइश पूरी करने का भरसक प्रयत्न करूंगा, जेनी की खुशियों के लिए मैं नशा क्या हर व्यसन छोड़.... ! जेनी सुप्रियो संग जाने के लिए तैयार हो रही थी और जूली उसे कुहनी मारकर कनखियों से निहारते हुए चिढाने की कोशिश करते हुए कह रही थी... देखा तूने, आखिरकार माँ का बोला हुआ ही सच निकला न कि उसने तेरे लिए प्यार अपने दिल में छुपाकर  रखा है ...................अब उसे दुबारा पिचकाकर बाहर निकालने की कोशिश मत करना ।

इतश्री !











 
























11 comments:

  1. अजब गज़ब तरीका प्यार ढूँढने का .. रोचक

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  2. यह कहानी है या हँसी का सैलाब। ऐसी कहानी तो पहले कभी नहीं पढी। बस हंसे जा रहे हैं।

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  3. आ हा हा हा …………क्या प्यार है ………अब तो हम सबको ऐसा ही करके देखना पडेगा कम से कम पता तो चले प्यार है या नही …………:))))))))))

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  4. अजीत गुप्ता जी , यह कहानी डाक्टरी पेशे से जुड़े लोगो के लिए नहीं है, वो तो ओबियस्ली इसे पढ़कर हंसेगे ही ! :) :) वैसे बहुत समय से कोई कहानी नहीं लिखी थी इसलिए बस सिर्फ हाथ जमाने की कोशिश कर रहा था ! और इस यह मोड़ देने का एक कारण यह भी था की पिछली बार मैंने जब कहानी लिखी थी तो एक मित्र ने मुझसे सवाल किया था की तुम्हारे कहानियों का हमेशा दुखद अंत क्यों होता है सो यहाँ पर उसके उलट सुखद अंत दिखने की कोशिश कर रहा था ! वैसे, ऐसे भी तो हो सकता है न, जैसे मेरी इस कहानी में हुआ :)?

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  5. गोदियाल जी , दिल पर घूँसा मार कर तो हमने भी मरीज़ बचाए हैं. :)

    लेकिन फाड़कर ! ये तो कमाल हो गया .

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  6. भाई जी , आप की मुबारक कबूल :-)
    आज की पोस्ट पर भी आप ने हास्य रस का सही अंधड चलाया है ..मुबारक हो ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।