छंट गया धरा से
शिशिर का सघन कुहा ,
शिशिर का सघन कुहा ,
सितारों से सजीला
तिमिर में गगन हुआ।
तिमिर में गगन हुआ।
भेदता है मधुर
कुहू-कुहू का गीत कर्ण,
कुहू-कुहू का गीत कर्ण,
आतप मंदप्रभा का
हो रहा अपसपर्ण।
हो रहा अपसपर्ण।
लाली ने छोड़ दी
अब ओढ़नी पाख्ली,
अब ओढ़नी पाख्ली,
मधुकर ने फूल से
मधु-सुधा चाख ली।
मधु-सुधा चाख ली।
डाल-पल्लव कोंपलों के
रंग प्रकीर्ण है,
रंग प्रकीर्ण है,
छटा-सौन्दर्य से
हर चित माधुयीर्ण है।
हर चित माधुयीर्ण है।
जोत ने धारण किया
सरसों के हार को,
सरसों के हार को,
उऋर्ण कर दिया अब
शीत ने तुषार को।
शीत ने तुषार को।
भावे मन अमवा,
महुआ की इत्रमय बयार,
महुआ की इत्रमय बयार,
सजीव बन गए सभी
जवां और बूढ़े दयार।
जवां और बूढ़े दयार।
विभूषित वसुंधरा
बिखेरती पुरातन सुवर्ण,
बिखेरती पुरातन सुवर्ण,
कश्मीर से केरला,
मणिपुर से मणिकर्ण।
मणिपुर से मणिकर्ण।
तज सभी उद्वेग-रंज,
खुशियाँ अनंत लाया,
खुशियाँ अनंत लाया,
करने पूरी मुराद
ऋतुराज वसंत आया।।
ऋतुराज वसंत आया।।
शब्दार्थ: आतप मंद्प्रभा = सूरज की मंद किरणे, सघन कुहा= घना कुहरा,
अपसपर्ण=विस्तारण , पाख्ली = गर्म शॉल, प्रकीर्ण= भिन्न-भिन्न,
माधुयीर्ण=प्रमोद से भरा, उऋर्ण=भारमुक्त, तुषार= ओंस
छवि गुगुल से साभार !
कंपकपाती ठण्ड में तुम
ReplyDeleteदिनकर से भिड़ना नहीं,
दिल्ली वालों !
मेरी कविता पढ़कर चिढना नहीं !!
एक दिन वसंत भी जरूर आयेगा :)
यह ठंड बीते तो बसंत की सोची जाये
ReplyDeleteक्या बात है क लम्बे अरसे के बाद आपको पढ़ा बहुत अच्छा लगा। कैसे हैं आप?
ReplyDeleteसादर
शानू
ati uttam.....utkrisht
ReplyDeleteअभी तो यहां शरद ही चल रहा है, कोयल के कूक की प्रतिक्षा है:)
ReplyDeleteअवश्य आएगा इस ठण्ड के बाद .......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ... इस बार तो सर्दी बहुत दिनों तक रहने वाली है ..बसंत भी शायद सर्द ही रहे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteनर्म शब्दों का कलकल निर्झर संगीत,वाह !!!
ReplyDeleteऋतुराज का सुन्दर स्वागत...
ReplyDeleteअभी से मन पुलकित है ..
सादर...
कडाके की ठण्ड में वसंत आगमन की कल्पना से ही मन प्रसन्न होने लगा |
ReplyDeleteअच्छी रचना |
आशा
सुनीता जी की हलचल से यहाँ आना हुआ.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति पढकर मन प्रसन्न हो गया.
बहुत बहुत आभार जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
आज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
डाल-पल्लव कोंपलों के रंग प्रकीर्ण है,
ReplyDeleteछटा-सौन्दर्य से हर चित माधुयीर्ण है...
बहुत ही अनुपम ... सुन्दर शब्दों से प्रकृति का चित्रण किया है ...
तज सभी उद्वेग-रंज, खुशियाँ अनंत लाया,
ReplyDeleteकरने पूरी मुराद ऋतुराज यह वसंत आया।।
utkrisht ...sunder rachna ...
आदरणीय सुनीता जी, देर से दी गई टिपण्णी के लिए क्षमा चाहता हूँ क्योंकि शुक्रवार शाम से ही दिल्ली से बाहर था ! मैं ठीक हूँ और आपका आभार व्यक्त करता हूँ की आपने मेरी कविता को हलचल पर जगह दी !
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