Friday, January 20, 2012

ऋतुराज वसंत आया !


छंट गया धरा से 
शिशिर का सघन कुहा ,
सितारों से सजीला 
तिमिर में गगन हुआ।


भेदता है मधुर 
कुहू-कुहू का गीत कर्ण,
आतप मंदप्रभा का 
हो रहा अपसपर्ण।


लाली ने छोड़ दी 
अब ओढ़नी पाख्ली,
मधुकर  ने फूल से 
मधु-सुधा चाख ली।


डाल-पल्लव कोंपलों के 
रंग प्रकीर्ण है,
छटा-सौन्दर्य से 
हर चित माधुयीर्ण है।


जोत ने धारण किया 
सरसों के हार को,
उऋर्ण कर दिया अब 
शीत ने तुषार को।


भावे मन अमवा,
महुआ की इत्रमय बयार,
सजीव बन गए सभी 
जवां और बूढ़े दयार।


विभूषित वसुंधरा 
बिखेरती पुरातन सुवर्ण,
कश्मीर से केरला, 
मणिपुर से मणिकर्ण।


तज सभी उद्वेग-रंज, 
खुशियाँ अनंत लाया,
करने पूरी मुराद 
ऋतुराज वसंत आया।।



शब्दार्थ: आतप मंद्प्रभा = सूरज की मंद किरणे, सघन कुहा= घना कुहरा,
अपसपर्ण=विस्तारण , पाख्ली = गर्म शॉल, प्रकीर्ण= भिन्न-भिन्न,
माधुयीर्ण=प्रमोद से भरा, उऋर्ण=भारमुक्त, तुषार= ओंस

छवि गुगुल से साभार !


17 comments:

  1. कंपकपाती ठण्ड में तुम

    दिनकर से भिड़ना नहीं,

    दिल्ली वालों !

    मेरी कविता पढ़कर चिढना नहीं !!

    एक दिन वसंत भी जरूर आयेगा :)

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  2. यह ठंड बीते तो बसंत की सोची जाये

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  3. क्या बात है क लम्बे अरसे के बाद आपको पढ़ा बहुत अच्छा लगा। कैसे हैं आप?
    सादर
    शानू

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  4. अभी तो यहां शरद ही चल रहा है, कोयल के कूक की प्रतिक्षा है:)

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  5. अवश्य आएगा इस ठण्ड के बाद .......

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  6. बहुत सुन्दर रचना ... इस बार तो सर्दी बहुत दिनों तक रहने वाली है ..बसंत भी शायद सर्द ही रहे

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  8. नर्म शब्दों का कलकल निर्झर संगीत,वाह !!!

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  9. ऋतुराज का सुन्दर स्वागत...
    अभी से मन पुलकित है ..
    सादर...

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  10. कडाके की ठण्ड में वसंत आगमन की कल्पना से ही मन प्रसन्न होने लगा |
    अच्छी रचना |
    आशा

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  11. सुनीता जी की हलचल से यहाँ आना हुआ.
    आपकी प्रस्तुति पढकर मन प्रसन्न हो गया.
    बहुत बहुत आभार जी.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  12. आज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  13. डाल-पल्लव कोंपलों के रंग प्रकीर्ण है,
    छटा-सौन्दर्य से हर चित माधुयीर्ण है...

    बहुत ही अनुपम ... सुन्दर शब्दों से प्रकृति का चित्रण किया है ...

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  14. तज सभी उद्वेग-रंज, खुशियाँ अनंत लाया,

    करने पूरी मुराद ऋतुराज यह वसंत आया।।
    utkrisht ...sunder rachna ...

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  15. आदरणीय सुनीता जी, देर से दी गई टिपण्णी के लिए क्षमा चाहता हूँ क्योंकि शुक्रवार शाम से ही दिल्ली से बाहर था ! मैं ठीक हूँ और आपका आभार व्यक्त करता हूँ की आपने मेरी कविता को हलचल पर जगह दी !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।