हालाँकि द्रुतगामी-उन्नति को यथार्थ के धरातल पर उचित ढंग से परिभाषित करना अभी बाकी है, किन्तु इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपना देश तेजी से प्रगति कर रहा है। और इसी प्रगति की एक झलक आपको आज से दिल्ली के प्रगति मैदान में शुरू हुए कारों और वाहनों के महाकुम्भ में देखने को मिल जायेगी। पब्लिक पागल हुए जा रही है, नई-नई कारों के माडलों को देखने और खरीदने के लिए। सुनने में आया है कि एक निर्माता तो ऐसी गाडी भी प्रदर्शित कर रहा है जिसमे कि आपको घर का मजा भी मिलेगा और दफ्तर का भी,यानि सड़क पर ही घर भी और दफ्तर भी।
दश्त-ओ-सहरा में वाहन-ऐ- कतार आ रही है,
चाल में घोंघे-कछ्वों की भी रफ़्तार आ रही है।
खिलाने-पहनाने को यथेष्ठ यद्यपि न हो घर में,
कर्ज लेकर के किस्तों में ऑडी -कार आ रही है।
तड़क-भड़क ने यों इसकदर मंथर बना दिया,
हैं घर में चार-जने तो गाडी भी चार आ रही है।
तमाम शिशिर गुजार दी अर्ध-आस्तीन में ही,
और नए नए मॉडल देख मुंह में लार आ रही है।
बावले दृश्यदर्शियों को देख सोचता है 'परचेत',
गुलिस्तां में ये कैसी रौनक-ऐ-बहार आ रही है।
यह सच है कि एक अदद घर और कार हर इन्सान का सपना होता है, लेकिन यह भी सच है कि सपनो और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क होता है। क्या हमने कभी सोचा है कि अगर इस देश की कुल आवादी (१२२ करोड़ ) में से करीब 5० करोड़ लोग भी अपनी-अपनी गाड़ियां खरीदकर सड़कों पर चलाने लगे तो चलाएंगे कहाँ ? ज्यादा दूर क्यों जाएँ, दिल्ली जो कि इस देश की धड़कन है इसका ही एक उदाहरण लेकर हकीकत से वाकिफ हो लिया जाए;
गत वर्ष के आंकड़ों के मुताविक दिल्ली की कुल सड़कों की लम्बाई लगभग ३२००० किलोमीटर है। और ऐसा अनुमान है कि दिल्ली की कुल आवादी लगभग २ करोड़ है (एनसीआर से रोज यहाँ आने वाले लोगो की तादाद मिलाकर)। तकरीबन एक करोड़ वाहन (निजि एवं सार्वजनिक ) दिल्ली में रजिस्टर्ड है, जिनमे से आधे दिल्ली की सड़कों पर औसतन रोज चलते है। ये तो सिर्फ अंदाजन आंकड़े मैंने यहाँ प्रस्तुत किये मगर जो मुख्य बात अब मैं कहने जा रहा हूँ, वह यह कि मान लीजिये कि कुल आवादी के सौ प्रतिशत लोग यानि अपनी कारें खरीद लें, और औसतन प्रति कार की लम्बाई साढ़े तीन मीटर है तो दो करोड़ गाड़ियों की कुल लम्बाई हुई, सात करोड़ मीटर अगर एक हजार से इसे विभाजित करें तो कुल कारों की लम्बाई आई 70 हजार किलोमीटर, इसके अलावा सार्वजानिक वाहनों और अन्य राज्यों से आने वाले वाहनों की लम्बाई अलग से मान लीजिये कि २० हजार कलोमीटर है तो कुल लम्बाई हो गई ९०००० कलोमीटर और यदि सड़क पर हर जगह तीन लेन मौजूद है, कुल सड़कों की लम्बाई हुई ९६००० किलोमीटर, यानि ९०००० किलोमीटर लम्बी गाड़ियों के लिए चलने का स्थान बचा मात्र ६००० किलोमीटर।
तो क्या करोगे सरकार,
कहाँ चलाओगे तुम अपनी कार ?
कहाँ चलाओगे तुम अपनी कार ?
पेट खराब हो जाए और
मैदान आ रहा हो बारम्बार तो
मैदान आ रहा हो बारम्बार तो
इमरजेंसी हेतु खरीद लाने पड़ेगे
कुछ पन्निया और जार,,(सड़क पर गाडी छोड़कर भी नहीं जा सकते :) )
कुछ पन्निया और जार,,(सड़क पर गाडी छोड़कर भी नहीं जा सकते :) )
बेवक्त और बिना मौसम ही
गाना पडेगा राग मल्हार !!!
गाना पडेगा राग मल्हार !!!
सोचो-सोचो ! कहीं फिर ऐसा न हो कि एक दिन पूरा देश ही जाम होकर रह जाए।
सुदृढ़ अर्थव्यवस्था अपनी,ऐसे ये सरकार कर रही है,
तंग गलियों को भी वाहनों से गुलजार कर रही है।
मेरी राय में होना यह चाहिए था कि सरकार सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुदृढ करती और निजी वाहन के लिए किसी भी प्रकार के लोन लेने को प्रतिबंधित करती। दूसरी तरफ इस प्रगति के साथ-साथ प्रकृति की दुर्गति अलग। जिस तरह के जाम लगते हैं, अभी तो फ्लाय-ओवर नए है , मगर ज्यों-ज्यों पुराने होते चले जायेंगे, उनकी भार सहन क्षमता कमजोर होती जायेगी, और भगवान न करे कभी भयंकर जाम के बीच कोई पुल बैठ गया तो ..... सोचो-सोचो....!
इसलिए अंत में परिवहन-नियोजन की अपील के साथ यही कहूँगा कि;
पंगु न हो पथ-परिचालन लच्छा,
हर घर में एक ही वाहन अच्छा !
जय हिंद !
छवि गूगल से साभार !
दश्त-ओ-सहरा में वाहन-ऐ- कतार आ रही है,
ReplyDeleteचाल में घोंघे-कछ्वों की भी रफ़्तार आ रही है।
खिलाने-पहनाने को यथेष्ठ यद्यपि न हो घर में,
कर्ज लेकर के किस्तों में गाडी-कार आ रही है।
...bahut umda prastuti..
पंगु न हो पथ-परिचालन लच्छा,
हर घर में एक ही वाहन अच्छा !
.... bahut sarthak sandesh ...
..samay rahte n chete to haal bura hona avsambhavi hain..
बहुत ज्वलंत समस्या है गोदियाल जी ।
ReplyDeleteज़रुरत तो परिवहन नियोजन और परिवार नियोजन --दोनों की है ।
बढ़ती जनसंख्या का नतीजा.
ReplyDeleteमै आपसे सहमत हूँ गोदियाल जी, जिस तरह सड़कों पर वाहन बढ़ रहे हैं चिंतनीय है........ आपने अच्छा सुझाव दिया है................ उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है. सही है. परन्तु कारों के मामले में मेरा मानना है कि ;
ReplyDelete-खरीददार से घर का नक्सा भी माँगा जाना चाहिए कि उसके घर में कार रखने लायक जगह है भी या नहीं.
-खरीददार से पिछले पांच वर्षों की इनकम टैक्स रिटर्न की डिटेल मांगी जानी चाहिए.
-खरीददार से उसके आय के स्रोत तथा nature of job की जानकारी भी मांगी जानी चाहिए. और, और......
बहुत ही सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति डॉ सहाब की बात से सहमत हूँ जरूरत तो परिवाहन नियोजन और परिवार नियोजन दोनों की है। :)
ReplyDeleteयही प्रक्रिया हम बंगलोर में भी लगाते हैं, कुछ भी जगह न बचे संभवतः..
ReplyDeleteहाल ही के दिनों में मेरा दिल्ली जाना हुआ था.. मैं देख कर दंग रहा गया कारों की भीड़.. कुछ कालोनी में तो कार रखे तक की जगह नहीं दिख रही थी... उफान पर आये नाले में जैसे कचरा बहता है सड़कों पर वैसे कारें बह रहीं थी....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति|
ReplyDeleteहमारे सेकुलर मित्रों को समझना चाहिए कि परिबहन नियोजन के लिए परिवार नियोजन कितना जरूरी है।
ReplyDeleteगोदियाल जी आपने ज्वलंत बिषय उठाया है।