प्रणय-धड़कन का दिल में बसने,
जीवन के सहभागी बनने हेतु
रिश्तों की बुनियाद में
यकीन नाकाफी क्यों?
दो दिलों के इकरारनामे को मुद्रांकित
करवाने की हठ-धर्मिता कैंसी?
तुम जानती हो कि
अनुबंध असीम नहीं होते,
और मैं पंजीकृत पट्टानुबंध के तहत
सिर्फ तयशुदा वक्त के लिए ही
एकनिष्ठता की कोमल डोर को
रहन पर नहीं रख सकता ,
क्योंकि मियाद खत्म होने के बाद
यह मुसाफिर तन्हा ही फिर से
दश्त का वीरान सफ़र तय नहीं कर पायेगा।
तुम जानती हो कि
ReplyDeleteअनुबंध असीम नहीं होते,
और मैं पंजीकृत पट्टानुबंध के तहत
सिर्फ तयशुदा वक्त के लिए ही
एकनिष्ठता की इस कोमल डोर को
रहन पर नहीं रखना चाहता,
गहन अभिव्यक्ति ..सीमित अनुबंधों में फंसे सिवाय कुंठाओं के कुछ नहीं मिलता
वाकई गहन है..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
धड़कन का दिल में बसने,
ReplyDeleteजीवन के सहभागी बनने हेतु
रिश्तों की बुनियाद में
यकीन नाकाफी क्यों?... bilkul nahi... bahut achhi baat kahi
अंतिम पाँच पंक्तियाँ रिश्तों की गहनता को परिभाषित कर गईँ !
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteआपके इस रचना की चर्चा कल के चर्चा मंच पे की जायेगी ..
ReplyDeleteसादर
कमल
गहन अभिव्यक्ति.... बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत ही नाजुक होते हैं रिश्ते..
ReplyDelete//क्योंकि मियाद खत्म होने के बाद
ReplyDeleteयह मुसाफिर तन्हा ही फिर से
दश्त का वीरान सफ़र तय नहीं कर पायेगा!
bahut hi gehra khayaal sir..
bahut sundar rachna .. :)
मुहर तो हृदय की लगती है..
ReplyDeleteअब तो पंडित-मुल्ला के दिन गए... बस करारनामे पर सारे रिश्ते टिके हैं :)
ReplyDeleteवाह! ज़बरदस्त लिखा है..
ReplyDeleteबेहद गहन भाव्।
ReplyDeleteतुम जानती हो कि
ReplyDeleteअनुबंध असीम नहीं होते,
और मैं पंजीकृत पट्टानुबंध के तहत
सिर्फ तयशुदा वक्त के लिए ही
एकनिष्ठता की इस कोमल डोर को
रहन पर नहीं रखना चाहता,
वाह गहन अभिव्यक्ति ... भाषा में नवीनता लिए ... पर यस सच है अनुबंध असीम नहीं होता ...
ओह...क्या लिखा है आपने...गोदियाल जी
ReplyDeleteबेहतरीन रचना!
गहन अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteशानदार |
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