बडी शिद्दत से उछाला था हमने
दिल अपना उनके घर की तरफ,
लगा,जाहिर कर देंगे वो अपनी मर्जी,तड़पकर उछले हुए दिल पर हमारे।
रात भर ताकते रहे यही सोचकर,
सिरहाने रखे हुए सेलफोन को,
सहमे से सुर,फोन करेंगे और कहेंगे,
कुछ गिरा तो है दिल पर हमारे।
मुद्दत गुज़र गई, दिल को न सुकूं आया,
दीवानगी का वो सफर 'मुकाम-ए-परचेत',
कारवां जिगर का भटका वहीं पर कहीं जहां,
लगी 'तंगदिल' की मुहर नरमदिल पर हमारे।
वाह
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Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 07 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteलजबाव
ReplyDeleteनर्म दिल फिर भी सह लेता है मार
ReplyDeleteनरमी को किसी भी शक्ल में ढालना होता आसान ।
सख़्त दिल टूट कर बिखर जाते हैं, जैसे ही होता वार।
खूब कहा !