अभी तक मैं इसी मुगालते में जी रहा था
सांसों को पिरोकर जिंदगी मे सीं रहा था,
जो हो रहा पहाड़ो पर, इंद्रदेव का तांडव है,
सुरा को यूं ही सोमरस समझकर पी रहा था।
किंतु अब जाके पता चला कि तांडव-वांडव कुछ नहीं ,
विकास-ए-परती धरा ये, स्वर्ग वालों को खटी जा रही,
ये तो "ऋतु बरसात' इक बहाना था बादल फटने का,
नु पता आपरेशन सिंदूर देख, इंद्रदेव की भी फटी जा रही।
सुन्दर
ReplyDelete🙏🙏
Deleteहा हा
ReplyDelete🙏🙏
Deleteऔर अब तो कोलकाता में भी बादल फट गया है
ReplyDelete