जीवन रहन गमों से अभिभारित,
कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी,
मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा,
किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी,
तकाजों का टिफिन पकड़ाकर भी,
हमें रह गई बस गिला इतनी तुमसे,
ऐ जिन्दगी, तूने दर्द ज्यादा दवा कम दी।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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