तनिक तुम अगर अपना गुरुर छोड़ देंगे,
हम ये गंवारू समझ और शऊर छोड़ देंगे।
न सिर्फ तुम्हारी नापसंद,बल्कि जहां सारा,
इक इशारे पे तुम्हारे, हम हुजूर छोड़ देंगे।
तृष्णा न बची बाकी,क्या सखी,क्या साकी,
संग-कुसंगती का हम, हर सुरूर छोड़ देंगे।
सर पे रखके हाथ, न खिलाया करो कसमे,
मद्यपान न सही धुम्रपान जुरूर छोड़ देंगे।
बसाना ही है 'परचेत', तो दिल में बसाओ,
नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।
छवि गुगुल से साभार !
चित्र ने तो शब्दों को हिलाकर रख दिया है..बहुत खूब..
ReplyDeleteबसाना ही है 'परचेत', तो दिल में बसाओ,
ReplyDeleteनयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।
वाह! भाई जी वाह! सही कहा..आपने!
नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।
ReplyDeletesunder prastuti....aajkl net ki problem se do-chaar hun....
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पी .एस .भाकुनी
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बहुत बढ़िया ||
ReplyDeleteगजब की पंक्तियाँ ! Very impressive creation.
ReplyDeleteआपकी रचनायें बहुत कुछ कह जाती है भाई। आभार।
ReplyDeletegajal dil me utar gayi
ReplyDeleteहाथ सर पे रखके, न खिलाया करो कसमे,
ReplyDeleteमद्यपान न सही, धुम्रपान जुरूर छोड़ देंगे।
हा हा हा ,,,दिल से जज्बाती ,,लेकीन अपनी हरकतो से ना बाज आने वाले हम जैसे लोगो के बारे ये बहुत हि सटीक लिखा है ,,,मजा आ गया ...
कभी पधारे यहा भी -
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/11/blog-post_27.html
बहुत बढिया
ReplyDeleteसाथ जो मिले तुम्हारा
हम तकरार का ये रास्ता ही छोड़ देंगे |:)))
bahut khoob ...
ReplyDeleteUnity in diversity!
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