Wednesday, November 28, 2012

नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।











तनिक तुम अगर अपना गुरुर छोड़ देंगे,
हम ये गंवारू समझ और शऊर छोड़ देंगे। 

न सिर्फ तुम्हारी नापसंद,बल्कि जहां सारा, 
इक इशारे पे तुम्हारे, हम हुजूर छोड़ देंगे। 

तृष्णा न बची बाकी,क्या सखी,क्या साकी, 
संग-कुसंगती का हम, हर सुरूर छोड़ देंगे। 

सर पे 
रखके हाथ, न खिलाया करो कसमे, 
मद्यपान न सही धुम्रपान जुरूर छोड़ देंगे। 

बसाना ही है 'परचेत', तो दिल में बसाओ, 
नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।


छवि गुगुल से साभार  !

11 comments:

  1. चित्र ने तो शब्दों को हिलाकर रख दिया है..बहुत खूब..

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  2. बसाना ही है 'परचेत', तो दिल में बसाओ,
    नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।
    वाह! भाई जी वाह! सही कहा..आपने!

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  3. नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे।
    sunder prastuti....aajkl net ki problem se do-chaar hun....
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    पी .एस .भाकुनी
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  4. गजब की पंक्तियाँ ! Very impressive creation.

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  5. आपकी रचनायें बहुत कुछ कह जाती है भाई। आभार।

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  6. हाथ सर पे रखके, न खिलाया करो कसमे,
    मद्यपान न सही, धुम्रपान जुरूर छोड़ देंगे।

    हा हा हा ,,,दिल से जज्बाती ,,लेकीन अपनी हरकतो से ना बाज आने वाले हम जैसे लोगो के बारे ये बहुत हि सटीक लिखा है ,,,मजा आ गया ...


    कभी पधारे यहा भी -
    http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/11/blog-post_27.html

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  7. बहुत बढिया


    साथ जो मिले तुम्हारा
    हम तकरार का ये रास्ता ही छोड़ देंगे |:)))

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  8. Unity in diversity!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।