सूबे-मुल्क की राजधानी में ,
हुमायु के मकबरे के पास,
माली के छोटे से उपवन में
बैठी थी एक कली उदास !
कली खिलकर किसी भी पल
फूल बनने के कगार पर खड़ी थी,
भवितव्यता चिंता की लकीरें
तमाम उसके माथे पर पडी थी !
पूछा जो उलझन का सबब,
वो बोली भाव-विभोरकर,
मुझे बलि चढ़ाया जाएगा
संभवतया अगली भोर पर !
मृत्यु-शय्या पर है शठ नेता,
कुटिल जुट रहे उसकी गेह पर,
मैं गिरना नहीं चाहती मगर
भ्रष्ट सियासतदानों की देह पर !
अच्छी कविता है भाई... बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteDhanyvaad, Yogender ji
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता लिखते हैं आप. गलतियों पर ध्यान नही दें, बस रचना सुन्दर होनी चाहिए. बधाई आपको.
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