Friday, November 26, 2010

'कर' खा गए !

भूखे-नंगे,लालची,हरामखोर 
परजीवी, 'पेट-भर' खा गए,
जो 
मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

टूजी, सीडब्ल्युजी, बैंक,एलआइसी,

आदर्श 'हर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कोड़ा, कोयला,क्वात्रोची,

आइपीएल,चारा और हवाला,
तेलगी, हर्षद, केतन, सत्यम, 

दामाद जमीन घोटाला,

और तो और ये 

कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कुल २० हजार खरब खा चुके, 

वुभुक्षित कितना खाते है,
कर्म से तो हैं ही, 

शक्ल से भी चोर नजर आते है,

घोटाले-कर करके 

जुगाली में ही देश  चबा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

20 comments:

  1. टीस और पीडा का व्यंगात्मक चित्रण बेहद उम्दा।

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  2. और तो और ये कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
    जो मेहनत का अपनी भरा था मैने, वो 'कर' खा गए !!

    बहुत ही सही कहा है इन पंक्तियों में ........

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  3. और तो और ये कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
    जो मेहनत का अपनी भरा था मैने, वो 'कर' खा गए !!
    सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना मन की पीडा दर्शाती है।
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  4. गोदियाल जी
    नमस्कार !

    आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

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  5. और तो और ये कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
    जो मेहनत का अपनी भरा था मैने, वो 'कर' खा गए !!

    गोदियाल जी
    नमस्कार !

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  6. वो दिन दूर नहीं जब अधपचा उगलना पड़ेगा, धन्यवाद

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  7. लालच महामारी की तरह बढ़ रही है । शायद ही कोई उपाय हो बचने का।

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  8. भूखे-नंगे,लालची,हरामखोर परजीवी, 'पेट-भर' खा गए,
    गोदियाल जी , हम तो यही समझते हैं कि एक दिन इस पंक्ति में सिर्फ ---गए ---रह जायेगा ।
    बस यह बात थोड़ी देर से समझ आती है ।

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  9. जी हाँ कर (टैक्स ) हर ईमानदार आदमी को खा जाते हैं और बेईमानों का सही खाका आपने दिखा ही दिया है.
    आपने अभी पूर्ण स्वस्थ न होने का ज़िक्र मेरे ब्लाग पर किया था ,उस पर मैंने आपको शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु एक स्तुति भेजना चाह था ;यदि आप प्रयोग करना चाहें तो अपना ई .मेल एड्रेस मेरे ई .मेल पर भेज दें.

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  10. सामयिक और सुन्दर रचना

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  11. एक कसक को दर्शाती रचना ...

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  12. बहुत सटिकता से सच को उकेर डाला इस रचना में. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  13. ‘वो 'कर' खा गए ’

    अरे भैया, अच्छा है, सी ड्ब्ल्यू जी में तो खर खा गए:)

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  14. और तो और ये कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
    जो मेहनत का अपनी भरा था मैने, वो 'कर' खा गए !!
    --
    हकीकत से रूबरू कराते सभी अशआर बहुत उम्दा हैं!

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  15. अब पानी सर तक आ पहुंचा है, अब तो कुछ न कुछ कर-ना ही पड़ेगा... कर में कुछ लेकर..

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  16. बहुत अच्छे ,सबको निशाने पर लिया ।

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  17. आज का सच...... यही तो जो मेहनत का अपनी भरा था मैंने वो 'कर' खा गये.......बेहद संजीदा सवाल और पीढादायक वर्णन.

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  18. बहुत मोटी चमड़ी के हैं ... सब कुछ खा कर डकार भी नही मारेंगे ... गज़ब का लिखा है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।