Friday, August 10, 2012

फ़साने निकल आते है....



छुपाकर हासिल होगा न कुछ भी, दास्ताँ को जमाने से,
फ़साने कई-कई निकल आते है, अक्सर इक फ़साने से।

जिक्र आएगा भरी महफ़िल, जुबां पर जब भी तुम्हारा,
लफ्ज़ रोके न रुक पाएंगे मुहब्बत की दास्तां सुनाने से।

पलकों के उठते-गिरते ही, नयन बयाँ कर देते है सब,
निहारो हमें दिल खोलकर, फायदा क्या नजर चुराने से।

फितना-ए-अक्ल भले ही,  दिखाने के काबिल न रही,
किन्तु तुम्हें पाकर ही जाकर लगेगी, कहीं ठिकाने से।

कदम जिन्हें हम 'परचेत',रखते थे बालिस्तों से नापकर,
तुम्हें देखकर यूं लड़खड़ाते है,निकले हों ज्यूँ मयखाने से।

9 comments:

  1. शुभकामनायें सर जी-
    अच्छी रामायण-
    मैं लिख देता हूँ -
    महाभारत वो भी-

    कृष्णा काले क्यूँ कठिन, कलाबाजियां खाय |
    गम राधा बाधा हृदय, आधा हो हो जाय |

    आधा हो हो जाय, सहे मीरा दीवानी |
    देती पर समझाय, गोपिका बड़ी सयानी |

    यह कृष्णा अति धूर्त, मूर्त राधा की रक्खे |
    देखे सगुन मुहूर्त, सुंदरी नव सौ चक्खे ||

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  2. आज तो ड्राई डे है ना !:)

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  3. ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
    !!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
    !!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
    ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं

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  4. पैमाना भर चुका है बस छलकने की देर है अब क्या छुपाना रह गया ज़माने से

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  5. गज़ब फ़साने निकाल लाये गोदियाल जी|

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  6. वाह जी वाह ... मस्त रामायण है आज के दौर की ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।