छुपाकर हासिल होगा न कुछ भी, दास्ताँ को जमाने से,
फ़साने कई-कई निकल आते है, अक्सर इक फ़साने से।
जिक्र आएगा भरी महफ़िल, जुबां पर जब भी तुम्हारा,
लफ्ज़ रोके न रुक पाएंगे मुहब्बत की दास्तां सुनाने से।
पलकों के उठते-गिरते ही, नयन बयाँ कर देते है सब,
निहारो हमें दिल खोलकर, फायदा क्या नजर चुराने से।
फितना-ए-अक्ल भले ही, दिखाने के काबिल न रही,
किन्तु तुम्हें पाकर ही जाकर लगेगी, कहीं ठिकाने से।
कदम जिन्हें हम 'परचेत',रखते थे बालिस्तों से नापकर,
तुम्हें देखकर यूं लड़खड़ाते है,निकले हों ज्यूँ मयखाने से।
वाह /:-)
ReplyDeleteशुभकामनायें सर जी-
ReplyDeleteअच्छी रामायण-
मैं लिख देता हूँ -
महाभारत वो भी-
कृष्णा काले क्यूँ कठिन, कलाबाजियां खाय |
गम राधा बाधा हृदय, आधा हो हो जाय |
आधा हो हो जाय, सहे मीरा दीवानी |
देती पर समझाय, गोपिका बड़ी सयानी |
यह कृष्णा अति धूर्त, मूर्त राधा की रक्खे |
देखे सगुन मुहूर्त, सुंदरी नव सौ चक्खे ||
आज तो ड्राई डे है ना !:)
ReplyDeleteஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
ReplyDelete!!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
!!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं
पैमाना भर चुका है बस छलकने की देर है अब क्या छुपाना रह गया ज़माने से
ReplyDeleteगज़ब फ़साने निकाल लाये गोदियाल जी|
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब..
ReplyDeleteवाह जी वाह ... मस्त रामायण है आज के दौर की ...
ReplyDeleteवाह!
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