Tuesday, August 21, 2012

विश्व बंधुत्व की एक मिशाल

दैनिक हिन्दुस्तान से साभार !



वाह-वाह-वाह ... माशाल्लाह, इसे कहते है विश्व बंधुत्व की मिशाल.... ! इस नेक कार्य के लिए इन सरदार बूटासिंह जी को कोटिश धन्यवाद ! ये कही वो ही वाले बूटा सिंह जी तो नहीं है जो कभी देश के गृहमंत्री और फिर बिहार के राज्यपाल हुआ करते थे? खैर, ये सज्जन जो भी "बूटा सिंह " हो, मगर इन्हें साम्प्रदायिक सौहार्दता की यह मिशाल पेश करने के लिए नोबेल भले ही न मिले, स्व० इंदिरा गांधी अथवा राजीव गांधी वाले कोई पुरूस्कार तो मिलने ही चाहिए ! 

यह जानकार प्रसंता हुई कि इन बड़े दिल वाले बूटा सिंह जी की वजह से कम से कम हमें यह जानने का तो मौक़ा मिला कि जोशीमठ ( जिसे बद्रीनाथ और हेमकुंठ साहिब के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है ) पर इन तंग-दिल सनमों ने अपनी एक अच्छी खासी उपस्थिति दर्ज करा ली है ! मुझे उम्मीद है कि स्थानीय हिन्दुओं की कृपा से इन बूटा सिंह जी ने तो गुरुद्वारे के लिए काफी पहले ही जमीन हथिया ली होगी, अत:अब उन्हें चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके, बूटा सिंह जी के साथ मिलकर वहाँ किसी मंदिर अथवा इसी गुरुद्वारे के आस-पास एक मस्जिद के लिए भी जगह ढूढकर उसे बनाने में अपना भरपूर सहयोग करें ! इससे 

आगे चलकर कई और फायदे नजर आयेंगे, मसलन मस्जिद बन जाने से हमारे ये अल्पसंख्यक समुदाय के जो भाई लोग अभी म्यांमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान की वजह से मजबूर होकर इस बड़े दिल वालों के देश में घुसते है, या असम जैसी जगहों से जिन्हें इधर-उधर भागना पड़ता है, उन्हें भी यहाँ पहुंचकर बरसात में छत नसीब हो जायेगी और जब इन तंगदिल सनमो की तादाद इस इलाके में भी खासी बढ़ जायेगी तो यहाँ भी साम्प्रदायिक सद्भाव और ज्यादा बढेगा! और जैसा कि मैंने अभी कुछ समय पहले अपने एक लेख "उत्तराखंड में पैर पसारते वाइज" में बताया था कि किस तरह ईसाई मिशनरिया भी वहाँ दूर-दराज के पिछड़े और दलित गावो में धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहे है, और पसारते -पसारते वे भी एक दिन जोशीमठ तक पहुँच ही जायेंगे ! अत: दूरदर्शिता का परिचय देते हुए थोड़ी सी जमीन इन स्थानीय ब्रोड-माइंड-डेड हिन्दुओं को अभी से उनके चर्च के लिए भी सुरक्षित रखनी चाहिए, ताकि आगे चलकर उन्हें भी रविवार के दिन बारिश के मौसम में खुले में प्रेयर न करनी पड़े!

हाँ, तो मैं इसके फायदे गिना रहा था, तो देखिये न, जब इस जोशीमठ में भी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के अनुयायियों की एक उचित अनुपात में उपस्थिति दर्ज हो जायेगी तो वहाँ का वह पहाडी खुशनुमा और स्वच्छ वातावरण और भी खुशनुमा हो जाएगा...........आहा !... वो किसी शायर ने कहा हैं न कि हमी हम है तो क्या हम है?......तब पूरे भारत देश की झलक उस एक छोटे से पहाडी प्रदेश में ही नजर आ जायेगी ! विविधता में एकता......वैसे भले ही एकता न भी रहे तो क्या, कहने को तो कम से कम हो ही जाएगा न ! मस्जिद बन जायेगी तो इन आलसी पहाडी हिन्दुओं को जिन्हें सुबह आठ बजे से पहले उठने की आदत नहीं है, मुल्ला जी मेहरबानी कर रोज चार बजे ही उठा देंगे ! और ये जल्दी उठेंगे तो काम ज्यादा करेगे, काम ज्यादा करेगे तो क्षेत्र का विकास होगा, क्षेत्र का विकास होगा तो राज्य का विकास होगा, राज्य का विकास होगा तो देश का विकास होगा....वाह...क्या फंडा पाया है यार हमने देश के सर्वांगीण विकास का ! इन तंग-दिल सनमो के लिए भी एक तात्कालिक फायदा मुझे नजर आ रहा है ! इन्हें जब कभी बदरीनाथ-ऋषिकेश हाइवे जाम करना हो तो इन्हें सोढ़े की बोतलें और ईंट इकठ्ठा कर रखने की जरुरत नहीं है,उस पहाडी इलाके में छोटे-बड़े हर प्रकार के पत्थर बड़ी तादाद में उपलब्ध हैं !

फिर धीरे -धीरे जिस तरह देश के उस अंतिम छोर पर बर्फीले प्रदेश में अभी सिर्फ हिन्दुओं का बद्रीनाथ मंदिरऔर सिखों का हेम-कुंठ साहिब गुरद्वारा ही मौजूद है, फिर वहाँ एक मक्का मस्जिद और एक जीसस चर्च भी बन जायेगी...वाऊ कितना मजा आयेगा चारो धर्मों के तीर्थस्थलों को एक ही जगह पर देखकर... दुनिया में एक मिशाल बन जाएगा वह इलाका ! छिटपुट नुकशान यह है कि आगे चलकर हिन्दुओं और सिक्खों को अपने बदरीनाथ और हेम-कुंठ साहिब धामों को घूमने के लिए परमिट अथवा वीसा भी लेना पड़ सकता है, जोशीमठ में तब के बहुसंख्यक समुदाय के तंगदिल सनमो से उन्हें बदरीनाथ जाने के लिए रास्ता देने की गुहार भी लगानी पड़ सकती है..... मगर क्या पाकिस्तान में गुरुद्वारों में जाने के लिए हमारे सिख भाई अभी यह सब नहीं करते क्या ? क्या हम अभी कश्मीर में बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए जाने के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराते, क्या हम कैलाश मान सरोबर जाने की चीन सेअनुमति नहीं लेते क्या ? ये हमारे लिए बहुत छोटी-मोटी बातें है,हम ब्रोड-माइंड-डेड लोग इसकी कतई परवाह नहीं करते ! यह देश सबका है किसी एक के बाप की बपौती नहीं ! वो बात और है कि बाद में थोड़ी से शब्द इन शब्दों में और जुड़ते हुए दिख जाएँ कि है तो सबका, किन्तु रहना इसमें तुम्हे एक ख़ास धार्मिक क़ानून के हिसाब से ही पडेगा !

7 comments:

  1. वाह जी !!"विश्व बंधुत्व की एक मिशाल"

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  2. सब कुछ ईश्वर को सौंप बैठे हैं..

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  3. अगर सब लोग ऐसे हो जाएँ तो बात ही बन जाए ... सब लोगों से मतलब .. हर धर्म के लोग ...

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  4. एक कवि की panktiyan याद आ रही हैं --

    हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
    वैसे तो हर जगह लड़ाई
    पर हाइवे पर भाई भाई .

    बहुत तीखा !

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  5. मिले सुर मेरा तुम्हारा,
    तो............

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  6. आपकी चिंता जायज है. मै भी अपने मित्रों से यही चर्चा कर रहा था, कि जोशीमठ में जो हुआ ठीक नहीं कहा जा सकता, यह सहिष्णुता वो लोग क्यों नहीं दिखाते. कश्मीर में अपनी आँखों से देखा मैंने. सारा हिंदुस्तान जानता है कि कश्मीर की वादियों में रहने वाले लाखों हिन्दू अपने सेब, अखरोट, केशर के बगीचों से, चिनार की छांव से, डल, वुलर आदि झीलों, गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि के सौंदर्य से विमुख कर दिए गए हैं और दशकों से जम्मू, दिल्ली आदि शहर के किसी शरणार्थ शिविर में जीवन यापन कर रहे हैं....... यही सहिष्णुता पृथ्वीराज चौहान ने भी दिखाई थी.... अन्यथा हिंदुस्तान का इतिहास आज कुछ और होता. यही सच्चाई है.

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  7. इस तरह की सहिष्णुता क्या मुसलमान या इस्लाम दिखा सकता है ??? क्याये कभी मस्जिद मे गुरुवाणी कहने दे सकते है ??? नहीं कभी नहीं , तब इनके इस्लाम की अम्मा मर जाती है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।