इतिहास गवाह है, और इसमें कोई दो राय भी नहीं कि इस समूची धरा पर संकीर्ण स्वार्थवाद, क्षेत्रवाद, रंगभेद, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरवाद ने जब-जब उसे मौक़ा मिला, मानवता का निर्ममता से खून बहाया! लेकिन साथ ही यह भी सत्य है कि इस खून-खराबे की सिर्फ इतनी ही ज्ञांत वजहें नहीं है! कई बार इससे थोड़ा भिन्न वजहें भी होती है, जो इस तरह के खून खराबे को जन्म देती हैं, और उसमे से एक वजह है, अस्तित्व की लड़ाई! हालांकि यह जुनून और इंसानी पागलपन भी रंगभेद, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरवाद से ख़ास भिन्न नहीं होता है किन्तु, हम यह भी अनदेखा नहीं कर सकते कि आंतरिक शान्ति की दशा से अलग, एक सभ्य समाज से सम्बद्ध होते हुए भी युद्ध के मैदान में एक सैनिक की मानसिकता होती है, दुश्मन को मारो अन्यथा वह तुम्हें मार डालेगा!
गत रविवार को अमेरिका के विस्कोन्सिन स्थित मिल्वाउकी के उपनगरीय इलाके ऑक क्रीक में स्थित गुरूद्वारे में सिख समुदाय को निशाना बनाकर जो गोलीबारी की गई, हालांकि अभी उसके निष्कर्षों पर पहुंचना मैं समझता हूँ शायद जल्दबाजी होगी ! लेकिन शुरुआती तौर पर उसे वहाँ की पुलिस की ओर से भी ‘घरेलू आतंकवाद’ की कार्रवाई करार दिया गया है! खून-खराबे के बाद अक्सर जो सवाल हमेशा पीछे छूट जाते है, वे है कि आखिर यह सब हुआ क्यों ? और यही सवाल आज ऑक क्रीक का गुरुद्वारा भी पूछ रहा है ! गहन बातों पर पर्दा डालने के लिए यह कह देना कि अमुक हत्यारा ९/११ का टैटो लिए हुए था, अत: सिखों को मुसलमान समझकर उसने यह जघन्य अपराध किया होगा, एक सरलतम निष्कर्ष कहा जा सकता है! इसकी वजह यह है कि हत्यारा एक अनुभवी पूर्व अमेरिकी सैनिक था, और आज के इंटरनेट के युग में यह कह देना कि उसे सिख और मुसलमान की ठीक से पहचान नहीं थी, कुछ हास्यास्पद सा लगता है !
आज जिस द्रुतगति से इंसानी आबादी बढ़ रही है, और धरा पर संसाधनों की निरंतर कमी होती जा रही है, वह इस पूरी मानव सभ्यता के लिए एक खतरे की घंटी है ! जल और जमीन की कमी आज हर क्षेत्र, प्रांत और देश की समस्या बन गई है! असम में भी आजकल जो कुछ हो रहा है, उसे भी इसी नजरिये से भिन्न नहीं देखा जा सकता ! आज भले ही अल्पसंख्यक समुदाय का फैक्ट फाइंडिंग मिशन आदतन यह कहे कि असम की हिंसा अवैध आप्रवासियों का मुद्दा नहीं है, यह तो बीजेपी और मीडिया के एक वर्ग द्वारा उत्पन्न की गई भ्रान्ति है, लेकिन सच्चाई यही है कि इस आप्रवासी समस्या ने बोडो आदिवासियों को अस्तित्व की चिंता में डाल दिया है !
आठ नवम्बर, १९९८ को असम के तत्कालीन गवर्नर, लेफ्ट. जन. रिटायर्ड (PSVM ) की देश के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन को लिखी गई वह चिट्ठी इस बात की गवाह है कि असम में अवैध आप्रवासी बांग्लादेशी समस्या कितना विकराल रूप धारण कर चुकी थी ! इस पत्र में इस बात का विस्तृत उल्लेख है कि किस तरह बांग्लादेश से आये घुसपैठियों ने इस पूरे परदेश के समीकरण को बदल डाला है ! ज़रा इस तालिका पर एक नजर दौडाए जिससे यह साबित होता है कि १९७१ से १९९१ के बीच असम में मुस्लिम आवादी ७७.४२ प्रतिशत बढी जबकि वहाँ की कुल हिन्दू आवादी में ४१.८९ % का ही इजाफा हुआ ;
Community-wise growth:
Year | Assam | All India | ||
Hindus | Muslims | Hindus | Muslims | |
(i) 1951-1961 | 33.71 | 38.35 | 20.29 | 25.61 |
(ii) 1961-1971 | 37.17 | 30.99 | 23.72 | 30.85 |
(iii) 1971-1991 | 41.89 | 77.42 | 48.38 | 55.०४ |
इस तालिका को देखने पर इस फैक्ट फाइंडिंग मिशन के दावे खोखले साबित होते है ! यह इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि तुच्छ राजनीतिक आकांक्षाओं, उदासीनता और चाटुकारिता ने यहाँ के मूल निवासियों के हितों की अनदेखी की है ! क्या यह उन लोगो का दोगलापन नहीं है जो एक तरफ तो यह कहते है कि बिहार,झारखंड, उदीशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का अपना अस्तित्व बचाने के लिए हथियार उठाना तो उचित है किन्तु बोडो आदिवासी ऐसा नहीं कर सकते ?
न सिर्फ देश बल्कि देश के पड़ोस में भी आज हालात बेकाबू होते जा रहे है, म्यांमार से भगाए गए आप्रवासी बांग्लादेशी मूल के लोग भी आगे चलकर हमारे देश के लिए घुसपैठ की एक गंभीर समस्या उत्पन्नं कर सकते है ! उधर लम्बे ना-नुकुर के बाद इस साल मार्च में, चीन के Vice-Premier (and likely premier in 2013) ली केक्वेंग ने स्टेट काउन्सिल की एक मीटिंग में कहा कि सूखा और पानी की कमी उत्तरी चीन ( जहां चीन की सबसे बड़ी आवादी बसती है ) की आर्थिक प्रगति को रोक रही है, जिसके परिणाम स्वरुप उन्होंने कहा कि दक्षिण-उत्तर डाईवर्सन प्रोजक्ट (South-North diversion project जिसमे ब्रह्मपुत्र के बहाव को उत्तरी चीन ले जाने की योजना है ) अत्यंत आवश्यक हो गया है ! यह उसी प्रोजक्ट की बात कर रहे थे, जिसपर ब्रहमपुत्र नदी पर यहाँ लगाए गए चित्र के समीप चीन अपना गुपचुप निर्माणकार्य शुरू कर चुका है ! अब ज़रा सोचिये कि यह अस्तित्व की लड़ाई जो हम देश के अन्दर देख रहे है यदि उसने सीमाएं पार की तो वह कितनी भयावह होगी ? ज्ञांत रहे कि दुनिया की कुल मानव आवादी का लगभग आधा हिस्सा इन्ही दो पड़ोसियों के पास है! साथ ही दाद देनी पड़ेगी चीनी नेतृत्व की कि उसने १९५० के दशक में ही यह भांप लिया था कि आगे चलकर तिब्बत उसके लिए कितना अहम् हो सकता है !
कोई निश्चित दिशा, कोई निश्चित समाधान अब तक नहीं दिख रहा है।
ReplyDeleteअसम में यह तो होना ही था यदि हम बिच्छू पलेगे तो अवसर पाने पर वह कटेगा ही आज असम में वही हो रहा है बंगलादेशी घुसपैठिये प्रभावशाली हो गए है हिन्दू अल्पमत होता जा रहा है हमला तो होना ही था हिन्दू तो ख्वाब में जी रहा है अब पुरे भारत में यदि मुसलमान हिन्दुओ पर आक्रमण करे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा आज सभी जगह लव जेहाद से हजारो हिन्दू लडकियों को मुसलमान भगाकर ले जा रहा है अब केवल हमला बाकी है और सेकुलर नेता उनकी ही तरफदारी करेगे.
ReplyDeleteदीर्घतमा जी का कथन बिल्कुल सही है कि वह दिन दूर नहीं जब हिन्दू हिन्दुस्तान में ही अल्पसंख्यक हो जायगा. कश्मीर से हिन्दुओं का सफाया लगभग हो चुका है. आसाम में शुरुआत हो चुकी है अन्य प्रदेशों के हाल से सारा हिंदुस्तान वाकिफ है. आगे सब राम भरोशे है.
ReplyDeleteवोटों के लालच में हमारे नेता अंधे हो चुके है और इनके कुकर्मों की सजा आमजन भुगत रहे है !!
ReplyDeleteभारत में सरकारों के पास सत्ता में बने रहने के अलावा कोई नीति नहीं है
ReplyDeleteआँकड़ों के साथ बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषणात्मक लेख .
ReplyDeleteअक्सर आपकी सोच काफी सटीक होती है .
चिरकुट नेता समस्या का समाधान होने नहीं देंगे. इतना ही नहीं तथाकथित सेकूलर लोग भी सच पर पर्दा डालते रहते हैं. सच तो यही है कि अवैध बंगलादेशी ही हिंसा का कारन हैं
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