Tuesday, February 5, 2013

ये ख्याल अच्छा है !

















व्यथित भीगी सी डगर, 
कुछ हर्षौल्लास लेते है, 
कोई परेशानी, कोई और 
झमेला तलाश लेते हैं।  

महसूस न हो संघर्ष के 
पथरीले रास्तों की तंगी,
चलो, कोई और पर्वत, 
कोई शिला तराश लेते हैं। 

पथिक लेता क्षणिक सुख,
देख महुए की तरुणाई,   
किंतु कुसुम सुहास तो गमहर,
तेंदू,पलाश लेते है। 
    
उठान भरी राह कहीं 
बोझ न बन जाये जिन्दगी, 
क्यों न 'परचेत' इसको 
कुछ यूं ही खलाश लेते है।    

20 comments:

  1. चार-शेरी ग़ज़ल पढ़कर मजा आ गया!
    आभार!

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  2. वाह वाह वाह-
    बड़े तराशे शब्द हैं, सुन्दर भाव तलाश |
    जब पलाश खिलते मिलें, हो बसंत उल्लास ||

    बधाई भाई जी ||

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  3. पर्बत से ऊँचा ,,,खुबसूरत ख्याल भाई जी .....
    महसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
    चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।
    वाह!

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  4. जी हां ख्याल वाकई अच्छा है.

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  5. भावपूर्ण तरासे शब्दों की बहुत उम्दा गजल,,,बधाई

    RECENT POST बदनसीबी,

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  6. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल।

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  7. अप्रतिम शब्द संरचना! अत्यधिक सुन्दर भाव! अतुलनीय रचना!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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  8. महसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
    चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं। ..

    बहुत खूब ... अपने आप बनाया रास्ता संघर्ष नहीं लगता ...

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  9. क्या शिला तलाशी है !
    बेहतरीन।

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  10. महसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
    चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।
    ये पंक्तियाँ ख़ास लगीं!
    अच्छी कविता.
    ..
    चित्र भी हट कर ही है और डरावना भी!क्या वाकई ऐसी कोई जगह है?

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  11. आपका लेख/आपकी कविता निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।

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  12. अल्पना जी, चित्र में मौजूद शिला का निचला हिसा तो असली है किन्तु ऊपरे हिसा ( जिसमे मंदिर है ) नकली है !

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  13. कुछ कर ले जाने के जज्बे से भरपूर बहुत ही सुन्दर
    ग़ज़ल ! शुभकामनाएं !

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  14. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है

    ....
    आज की हलचल में .... गलतियों को मान लेना चाहिए ..... संगीता स्वरूप

    .

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  15. 'चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।'
    विशाल शिलाखंड के नीचे यह आश्रय-स्थल.तराशने की कल्पना शायद यहीं से आई है !

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  16. खुबसूरत ग़ज़ल, सुन्दर भाव

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।