व्यथित भीगी सी डगर,
कुछ हर्षौल्लास लेते है,
कुछ हर्षौल्लास लेते है,
कोई परेशानी, कोई और
झमेला तलाश लेते हैं।
झमेला तलाश लेते हैं।
महसूस न हो संघर्ष के
पथरीले रास्तों की तंगी,
पथरीले रास्तों की तंगी,
चलो, कोई और पर्वत,
कोई शिला तराश लेते हैं।
कोई शिला तराश लेते हैं।
पथिक लेता क्षणिक सुख,
देख महुए की तरुणाई,
देख महुए की तरुणाई,
किंतु कुसुम सुहास तो गमहर,
तेंदू,पलाश लेते है।
तेंदू,पलाश लेते है।
उठान भरी राह कहीं
बोझ न बन जाये जिन्दगी,
बोझ न बन जाये जिन्दगी,
क्यों न 'परचेत' इसको
कुछ यूं ही खलाश लेते है।
कुछ यूं ही खलाश लेते है।
bahut sunder prastuti...
ReplyDeleteचार-शेरी ग़ज़ल पढ़कर मजा आ गया!
ReplyDeleteआभार!
वाह वाह वाह-
ReplyDeleteबड़े तराशे शब्द हैं, सुन्दर भाव तलाश |
जब पलाश खिलते मिलें, हो बसंत उल्लास ||
बधाई भाई जी ||
पर्बत से ऊँचा ,,,खुबसूरत ख्याल भाई जी .....
ReplyDeleteमहसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।
वाह!
बहुत खूब रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
ReplyDeleteजी हां ख्याल वाकई अच्छा है.
ReplyDeleteभावपूर्ण तरासे शब्दों की बहुत उम्दा गजल,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST बदनसीबी,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteअप्रतिम शब्द संरचना! अत्यधिक सुन्दर भाव! अतुलनीय रचना!
ReplyDeletehttp://voice-brijesh.blogspot.com
वाकई खयाल अच्छा है ...
ReplyDeleteमहसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
ReplyDeleteचलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं। ..
बहुत खूब ... अपने आप बनाया रास्ता संघर्ष नहीं लगता ...
क्या शिला तलाशी है !
ReplyDeleteबेहतरीन।
महसूस न हो संघर्ष के पथरीले रास्तों की तंगी,
ReplyDeleteचलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।
ये पंक्तियाँ ख़ास लगीं!
अच्छी कविता.
..
चित्र भी हट कर ही है और डरावना भी!क्या वाकई ऐसी कोई जगह है?
आपका लेख/आपकी कविता निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
ReplyDeleteअल्पना जी, चित्र में मौजूद शिला का निचला हिसा तो असली है किन्तु ऊपरे हिसा ( जिसमे मंदिर है ) नकली है !
ReplyDeleteकुछ कर ले जाने के जज्बे से भरपूर बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteग़ज़ल ! शुभकामनाएं !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की हलचल में .... गलतियों को मान लेना चाहिए ..... संगीता स्वरूप
.
'चलो, कोई और पर्वत, कोई शिला तराश लेते हैं।'
ReplyDeleteविशाल शिलाखंड के नीचे यह आश्रय-स्थल.तराशने की कल्पना शायद यहीं से आई है !
खुबसूरत ग़ज़ल, सुन्दर भाव
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