Tuesday, February 12, 2013

मुफलिसी के इस दौर मे, मगज भी सटक गए।



शायद बहुत समय नहीं गुजरा जब अपने इस देश में कुछ हलकों में ये आवाजें उठी थी कि सिंध को अपने राष्ट्र-गान से अलग किया जाए। मेरा यह मानना है कि कुछ स्थान, वस्तु और प्राणी या तो हमेशा से सौभाग्यशाली होते है या फिर निरंतर दुर्भाग्यशाली। और इसी आधार  पर मैं यह मानता हूँ कि अखंड भारत का सिंध क्षेत्र, जोकि अब पाकिस्तान में है, वह भी हमेशा से  दुर्भाग्यशाली ही रहा है।आप इतिहास उठाकर देख लीजिये, इस अभागे प्रदेश ( यहाँ मैं सिर्फ धरा के उस भू-भाग  की ही बात कर रहा हूँ) ने सदियों से सिर्फ और सिर्फ कष्ट ही सहे हैं।

आज एक समाचार पढ़ रहा था जिसके अनुसार पाकिस्तान की सिंध प्रांत की एसेम्बली ने उस प्रस्ताव का पास कर दिया जिसमें  सिंध(Sindh ) का नाम अब सिर्फ सिंद (Sind ) करने की व्यवस्था है । इसके पीछे का पाकिस्तानी राजनेताओं, जोकि इस किस्म की महानताओं की परिपाटी में हमारे नेताओं से ख़ास कुछ भिन्न नहीं हैं,  का मत यह है कि सिंध शब्द Indus नदी की वजह से संस्कृत के शब्द सिन्धु अथवा हिन्दू धर्म का द्योतक है, जबकि सिंद एक अरबी शब्द है, या यूं कहें कि अरब के मुस्लिम आक्रान्ताओं  ने इस क्षेत्र को "अल सिंद" कहकर संबोधित किया था। वैसे सन 1990 से पहले भी पाकिस्तानी इसे सिंद ही लिखते थे, लेकिन 1990 के दौर में वहाँ की सरकार  ने इसे ठीक किया था।  इसका जो संक्षिप्त इतिहास है वह यह है कि जब यह एक सिन्धु ( हिन्दू) देश हुआ करता था, तब इस पर राजा दहीर का शासन था, जिस पर बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला कर अपने हिसाब से तोड़ा- फोड़ा। 

अफ़सोस कि आज न सिर्फ हमारे पड़ोस में, अपितु हमारे खुद के देश में कट्टरवाद का कुछ ऐसा ही माहौल खडा हो रहा है या यूं कहें कि सुनियोजित ढंग से शने:-शने: खड़ा किया जा रहा है। वह चाहे हमारी कमजोरियों की वजह से हो, हमारी सरकारों की  अकर्मण्यता की वजह से  हो रहा हो, लेकिन यह है सर्वथा चिंताजनक। एक आतंकवादी, जिसे हमारी न्यायपालिका ने भी काफी समय पूर्व ही दोषी करार दिया था, उसपर न सिर्फ 12 वर्षों तक राजनीति की कुटिल छाया ही फायदा लेने की कोशिश करती रही,  अपितु आज इस देश के शिक्षित और तथाकथित उच्च शिक्षित युवा वर्गके मध्य भी इसपर राजनीति हो रही  है। जो आगे चलकर इस देश के लिए एक घातक बिंदु बन सकता है। ऐसा लगता है कि स्वार्थ परायणता और मंदी के इस दौर में रोजमर्रा की जिन्दगी की खीज ने हमारे विवेक को कहीं कैद कर लिया है। हम सिर्फ और सिर्फ अपने तात्कालिक फायदे से हटकर कुछ नहीं देख पा रहे है। कश्मीर के हालात, अलीगढ मुस्लिम विश्व विद्यालय  के छात्रों का हंगामाँ  इस बात के द्योतक है।  ऊपर वाले से बस यही दुआ की हमें सद-बुद्धि दे !

                              
शील दम घुटने लगे, सच हलक में अटक गए हैं ,
 अनुचर देवदूत के, खुदा की राह से टक गए हैं ।   
दे रहा है आभास हमको  ऐंसा यह मजहबी जूनून , 
कि मुफलिसी के दौर मे, मगज भी सटक गए हैं । 

7 comments:

  1. भगवान् सद्बुद्धि दे।

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. देशीय भावनाओं का माखौल उड़ाने वालों को कभी कभी स्पष्ट बताना होता है...वह दिन भी शीघ्र आयेगा।

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  4. शायद धैर्य ही एक सहारा है अब तो.

    रामराम.

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  5. इतिहास ऐसे ही बदल जाते हैं ... जो विदेशों में है उनका तो कुछ नहीं कर सकते .. पर समय रहते देश वालों को होश आ जाए तो बात है ...

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  6. यह समाचार जब सुना था तब इस परिवर्तन का कारण समझ नहीं आया था। सच है कि सिंध प्रांत ने सातवी शताब्‍दी से ही दुख झेले हैं।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।