इसकदर भी हमपे ये बेरहमी न होती,
ऐ अहबाब, अगर तुम बहमी न होती।
कथा मुहब्बत की पिपासा न बनती,
दिल दिलाने की दिलासा न बनती,
ये नजर इनायत की जह्मी न होती,
ऐ अहबाब,अगर तुम बहमी न होती।
चेहरे पे निशां बदग़ुमानियों के पूरे,
ख्वाहिशों के दामन में ख्वाब अधूरे,
ख्वाहिशों के दामन में ख्वाब अधूरे,
मगर हर गुजारिश अहमी न होती,
ऐ अहबाब,अगर तुम बहमी न होती।
ऐ अहबाब,अगर तुम बहमी न होती।
उम्मीदों के नभ अब निराशा के घन,
भरमा रही पग-पग यकीं को उलझन,
भरमा रही पग-पग यकीं को उलझन,
हर ख्वाइश हमारी यूं सहमी न होती,
ऐ अहबाब, अगर तुम बहमी न होती।
अहबाब =माशूक (Darling)
छवि गूगल से साभार !
जितनी चाह उठती है, मन में उतने गहरे कुछ धँस जाता है..
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ReplyDeleteबढ़िया गीत है भाई साहब .बेहतरीन रूपकात्मक्ता लिए हुए .
मनचाहा सब हो जाता तो न जाने क्या होता ...
ReplyDeleteदोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं
वक़्त की बात है क्या होना था क्या हो गया मैं
(~ शहरयार)
वाह, बहुत लाजवाब भाव.
ReplyDeleteरामराम.
वाह ... जो हुवा खुद की बेरहमी से ही हुवा ...
ReplyDeleteये सच भी है ... खुद ही जिमेवार होता है इंसान ...
शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए बेहतीन गीत के लिए .
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