आ जाए बस कोई इक यार बनके,
रहन - कश्ती का खेवनहार बनके,
बस मेरा किरदार बनके इक अनूठा, चलेगा।
फहर फर-फर सावन फुहार छनके ,
प्रीत में झनक झन रूह-तार झनके,
प्रेम सच्चा करे हमसे या झूठा-मूठा, चलेगा।
खनन खन-खन सागर द्वार खनके,
साहिलों से टकराके पतवार खनके,
दिल भले साबूत मिले या टूटा-फूटा, चलेगा।
सुघड सज-धज बन बार-बार ठनके,
ठुमकठम-ठुमकियाँ देह-धार ठनके,
खुश रहे पल-पल सदा या रूठा-रूठा, चलेगा।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteचलेगा नहीं दौड़ेगा.
ReplyDeleteबहुत खूब, सुन्दर ...
ReplyDeleteआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 8 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
ReplyDeleteआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteवाह ख़्वाहिश तो बढ़िया है
ReplyDeleteअनूठी दुनिया में सब ठूँठ से अचम्भित खड़े हैं।
ReplyDeleteफोटो में पीछे दिखने वाला यार बहुत खतरनाक है। :)
ReplyDeleteखनन खन-खन सागर द्वार खनके,
ReplyDeleteसाहिलों से टकराके पतवार खनके,
दिल भले साबूत मिले या टूटा-फूटा,चलेगा।,,,,
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,अजी,,बिलकुल चलेगा,,,
RECENT POST शहीदों की याद में,
बेहतरीन प्रस्तुति......
ReplyDeleteफहर फर-फर सावन फुहार झनके,
ReplyDeleteप्रीत में झनक झन रूह-तार झनके,
प्रेम सच्चा करे हमसे या झूठा-मूठा, चलेगा ..
बिलकुल चलेगा ... बस एहसास तो हो ...
nice :-)
ReplyDeleteवाह लाजवाब ख्वाहिश. पर ताऊ इतना शरीफ़ सा क्य़ूं बैठा है?
ReplyDeleteरामराम.