Thursday, September 10, 2020

कोरी ऐंठन

 हो चाहे जितनी भी मुहब्बत 

तुझको संजय रौत से,

करे जितनी भी नफ़रत 

तू कगंना रणौत से, 

देखना,सत्ता का ये गुरूर, 

तुम्हें ले डूबेगा हुजूर ।

2 comments:

  1. कौन डूब रहा है हजूर? :) हवा भरे भी डूबे हैं कभी ?

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मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...