गले लगाया है तेरी जुल्फो़ंं की मोहब्बत ने,
जबसे तन्हाइयों को,
गाहक मिलने ही बन्द हो गये, 'परचेत'
तमाम शहर के नाइयों को।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना, कि...
वाह
ReplyDeleteवाह-वाह...जवाब नहीं आपका।
ReplyDeleteआभार आप सबका🙏
ReplyDeleteमन की बात
ReplyDeleteक्या कटाक्ष मारा है।
😂😂
नई रचना आत्मनिर्भर
हा हा सही कहा है आपने ... डर लगता है नाइयों के पास जाने में अब ....
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