Sunday, September 27, 2020

आओ, तुमको कथा सुनाऊं

मोदीजी सुनाते मन की बात, 

और मैं मन की व्यथा सुनाऊंं, 

सुनो ऐ प्यारे हिन्द वासियों,

आओ, मैं तुमको कथा सुनाऊं।


एक सूखी डंठल, जड़ मजीठ का,

किंतु, कथावाचक हूँ व्यास पीठ का,

छै महिने लॉकडाउन, बंद कमरे मे

कितना इस मन को मथा सुनाऊं।


बताओ, वाचन करुं मैं शुरू कहाँ से,

राजा यथा सुनाऊं या प्रजा तथा सुनाऊं?

सुनो ऐ प्यारे हिन्द वासियों,

आओ, मैं तुमको कथा सुनाऊं।।


3 comments:

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।