Saturday, September 12, 2020

मुखबंदी

 चम्मचे-ए-खास अभी अभी गये,

मुंह खोला तो गुलाम नबी गये।।😀😀

2 comments:

  1. जंगल में बदलते चले जाइये उदबिलावों को
    चूहे अब शेर की प्लेट में ही रहेंगे कई सालों।

    ReplyDelete

दास्तां!

जिंदगी पल-पल हमसे ओझल होती गई, साथ बिताए पलों ने हमें इसतरह रुलाया, व्यथा भरी थी हर इक हमारी जो हकीकत , इस बेदर्द जगत ने उसे इत्तेफ़ाक बताया...