सुविधा हेतु मिलता -जुलता अंग्रेजी अनुवाद :
Those were the days,
when diligent people used to
colonized in their heart
their darling saize.
Now a days,
we sluggish use zuckerberg's
'app' " facebook" to record
ours any charming image .
तरस आता है कभी-कभी अपनी जिन्दगी जुझारू पे,
सुबह को दवा पे जीते हैं, और शाम को दारू पे।
अपने विकास के एजेंडे को
अपने ही पास रखो, मोदी जी ,
लाइट आ गई, लाइट आ गई......
दिन में १० बार यह दोहराने से
जिस ख़ुशी का एहसास मिलता है ,
अरे, वो तुम का जानो। :-):-)
प्यार-मुहब्बत में शक-शुबहा की ये मदें क्यों हैं,
परस्पर दिलों में दूरी नहीं, फिर ये सरहदें क्यों है,
उम्र गुजर गई है सारी, इसी जुस्तजू में, ऐ दोस्त,
कि जिंदगी के हर मोड़ पर इतनी मयकदें क्यों है।
है दुआ रब से बस इतनी कि तुम्हारी हर इक मुराद पूरी हो,
हमने तो जिन्दगी मे ऐ यार, कभी कोई आरजू ही नही की ।
यूं अब तक जिये तो किसी और के रहमोंकरम पर ही हम,
किंतु ऐ हुजूर, खुद के लिए मांगी हुई दुआ सदा बेअसर ही गई । :-)
कोशिश तो हमने भी बहुत की थी, ऐ साकी
कि अपने सारे गम, तेरे परोसे हुए जाम मे
डुबो-डुबो कर मार दू, मगर, वाह रे किस्मत,
वो कमबख्त, मुझसे भी बडे तैराक निकले ।
साकी, ऐ दोस्त,
कल जो मैंने अपना इक गम
तेरे परोसे हुए जाम में डुबोया था,
वाह रे नसीबा, कमबख्त वो,
तेरे आज वाले में भी
स्वीमिंगपूल के लुत्फ़ उठाता हुआ मिला।
कभी एक जमाने मे, बडी अच्छी दोस्ती थी, अपने और यमराज के बीच,
जमाना गुजरा तो 'दगाबाज खुदगर्ज' दोस्ती भूल, फर्ज की दुहाई देने लगा ।
फ़क़त नौकरी बदलने से फजीहत कम नहीं होती,
मगर फिर भी नौकरी की अजीयत कम नहीं होती। अजीयत=परेशानी
जहां भी चले जाओ, सब के सब लाले एक जैसे है,
जितना भी नफ़ा दे दो इनकी नीयत कम नहीं होती।
मैं दायरों में रहूँ या फिर दायरों से निकलू,
मेरे ख्यालात,मेरे जज्बात सिर्फ तुम से है ,
तुम साथ हो तो मुकद्दर पे हुकूमत अपनी,
मेरे हर रिश्ते की सौगात, सिर्फ तुम से है।
ख़ुशी हुई यह जानकार
कि मोदी जी शीघ्र ही
"स्मार्ट सिटी" लॉंच करेंगे,
मगर मन में सवाल ये है
कि वाशिंदे तो
अपने ही देश के लोग होंगे न ???
इसबार ख़्वाबों ने
मन की मुराद पूरी कर दी,
'कल्पना' हमसफ़र बनी
तो पंखों ने भी
उड़ान लम्बी भर दी।
रोज सुबह, दुआ मांगता हूँ कि मैं, रास्ता भूल जाऊं मैखाने का ,
और शाम ढले, मौका-ए-लुत्फ़, हिसाब भूल जाता हूँ पैमाने का।
कितनी ही बार खुद को समझाया,
साक़ी को भी खूब धमकाया
कि कल से हमारी-तुम्हारी दोस्ती ख़त्म,
मगर आजतक वो कमबख्त 'कल ' नहीं आया।
अब भला और किस नाम से ताबीर करे इस रुत को ,
बगिया बदहाल है और माली के सिर पर बहार आई है। :-) जय केजू की
Dekha Kalyug ka ye kaisa asool,
fool ke sar par bhi khil gaye phool :-)