Friday, October 19, 2012

लघु व्यंग्य- किसी गिरे हुए प्रधानमंत्री को उठाना !


'वक्त बलवान होता है'-  ज्ञानी बड़े-बुजुर्ग यह कहकर चले गए !  और  वो कुछ खूसट , जो न तो कुछ बोलते हैं और न ही वक्त को समझने की कोशिश  करते हैं, मुएँ यहीं सड रहे होते है ! ज्ञानी बुजुर्गों ने तो वक्त की नजाकत को समझा और फ़टाफ़ट चलते बने, क्योंकि वे जानते थे कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता ! कुटिल  इंसान भले ही दूसरों को धोखे में रख, खुद को सीधा, सच्चा और ईमानदार दिखाने की लाख कोशिश करे , खुद को लाख इस मुगालते में रखे कि वही एक अकेला हाई  क्वैलिटी का सैम्पल पीस है,  उसके बराबर जेंटलमैन इस दुनिया में कोई और है ही नहीं, मगर उसे वक्त ऐसा सबक सिखाता है कि एक पल में दुनिया की नजरों में बैठा वह शख्स  कब और कहाँ औंधे मुंह गिरा, उसे खुद को भी पता नहीं चल पाता! उसे इस बारे में  उसके द्वारा पाले गए बड़े-बड़े कुटिल अधिवक्ताओं...क्षमा करें... भविष्यवक्ताओं की फ़ौज भी कुछ नहीं बता पाती ! शो केश में सजाकर रखे उनके सारे पोथी-पातड़े बेकार साबित हो जाते है ! पब्लिक की गाढी कमाई के पैसों के बल पर हरवक्त अपने साथ दायें-बाएं, आगे-पीछे मौजूद रहने वाले काली वर्दी धारियों को भी तब ही इनके गिरने का अहसास हो पाता है जब धडाम की आवाज उसके कानो में पड़ती है, और तबतक जनाब धूल/ दूब चाट चुके होते है ! और किस्सा यहीं खत्म नहीं हो जाता, इसके आगे जो मानसिक ट्रेजडी उन साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों को झेलनी पड़ती है कि अब इस गिरे हुए महामहिम को  उठायें कैसे ? एक गुलाम सुरक्षाकर्मी अगर महामहिम को उठाने हेतु  छुंए तो कहाँ छुंए ? हाथ से उनके कौन से अंग को पकड़कर उठाये, ताकि उसके इस कृत्य से महामहिम अपनी किसी तरह की तौहीन न समझें .................इत्यादि-इत्यादि ! ये ऐसी अनेकों मानसिक प्रताड़नाये है जिन्हें वे "पूअर" सुरक्षाकर्मी झेलते है, और जिसे समझ पाना हर देशवासी  के बस की बात नहीं ! इस बाबत मुझे एक पुराना किस्सा भी याद आ रहा है, संक्षेप में सुनाये देता हूँ, वरना मेरा हाजमा खराब हो जाएगा ! किस्सा ये है कि एक छावनी में सेना के एक कप्तान साहब थे, काफी कड़क मिजाज....! एक बार एक सिपाहीं उन्हें सैल्यूट मारना भूल गया तो उन्होंने उस सिपाही को ऐसी सजा दी कि उसे नानी याद आ गई ! अब एक बार रात को उसकी गार्ड ड्यूटी आर्मी के आफिसर मेस में  लगी थी तो तभी उसने बचाओ..बचाओ की आवाज सुनी ! दौड़कर गया तो देखा कि नशे में धुत कोई शख्स हाथो से कुंए की मेंड़ को पकडे गहरे कुंएं में लटक रहा है, उसने झट से उसे बाजुओं से पकड़कर ऊपर उठाया तो उसे खम्बे की रोशनी में उस शख्स के कन्धों पर चमकते तीन स्टार नजर आये..... अरे यह तो वही कप्तान साहब है जिन्होंने एक रोज सैल्यूट न मारने की मुझे कठोर सजा दी थी... वह बडबडाया  और  उसने तुरंत उन कप्तान साहब के बाजुओं को छोड़ा और झट से एक जोरदार सैल्यूट मारा, लेकिन उसका मारा हुआ वह शानदार सैल्यूट देखता कौन ? इतनी देर में बेचारे कप्तान साहब तो कुंए मे  समा गए थे ! 

और मैं समझ सकता हूँ कि ऐसी ही विकट समस्या का सामना विगत १७ अक्तूबर को  "पूअर"  उन सुरक्षा कर्मियों को भी करना पडा होगा जो राजघाट पर भारत दौरे पर आई आस्ट्रेलिया की प्रधान-मंत्री, महामहिम (सुश्री ) जूलिया गिल्लार्ड की सुरक्षा में तैनात थे, और प्रेस वालों को संबोधित करने हेतु जाते हुए अचानक वो  औंधे मुह वहीं  गिर पडी थी,  और फिर किसी तरह उन सुरक्षा कर्मियों को उन्हें उठाना पडा ! शुक्र था भगवान् का कि उन्हें कोई चोट नहीं आई !  बाद में  एक पुरुष पत्रकार के सवाल का उत्तर देते हुए उन्होंने जो  गूढ़ बात कही, मै समझता हूँ कि उस पर  सभी महिलाओं को मनन करना चाहिए ! उन्होंने कहा "For men who get to wear flat shoes all day, every day, if you wear a heel it can get embedded in soft grass, and then when you pull your foot out, the shoe doesn't come, and then the rest of it is as you saw." खैर, ऊँचे लोग हैं तो ऊंची ही बात करेंगे ! लेकिन मैं  उन बेचारे सुरक्षाकर्मियों की दिक्कतों के मद्देनजर ऊपर वाले से यही दरख्वास्त करता हूँ कि हे भगवान्  ! , हे खुदा  !, हे रब ! ओ गॉड  !......आइन्दा इस देश में  कोई और महामहिम, कोई और प्रधानमंत्री इसतरह न गिरे !  

9 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ! नमस्ते जी!

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  2. सही फ़रमाया आपने सुन्दर प्रस्तुती
    बधाई स्वीकारें।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति !!

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  4. गिरे हुये जमीर को कैसे उठाया जा सकता है.

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  5. पब्लिक की गाढी।।।।।।।।।(गाढ़ी )........ कमाई के पैसों के बल पर हरवक्त अपने साथ दायें-बाएं, आगे-पीछे मौजूद रहने वाले काली वर्दी धारियों को भी तब ही इनके गिरने का अहसास हो पाता है जब धडाम।।।।।।।(धड़ाम ).......... की आवाज उसके कानो।।।।।(कानों )........... में पड़ती है, और तबतक जनाब धूल/ दूब चाट चुके होते है !(हैं ).........हैं .

    ये ऐसी अनेकों मानसिक प्रताड़नाये।।।।।।(प्रताड़नाएँ )......... है।।।।।।हैं ....... जिन्हें वे "पूअर" सुरक्षाकर्मी झेलते है(हैं ),....... और जिसे समझ पाना हर देशवासी के बस की बात नहीं
    आर्मी के आफिसर मेस में लगी थी तो तभी उसने बचाओ..बचाओ की आवाज सुनी ! दौड़कर गया तो देखा कि नशे में धुत कोई शख्स हाथो।।।।।।।(हाथों )......... से कुंए की मेंड़ को पकडे गहरे कुंएं में लटक रहा है, उसने झट से उसे बाजुओं से पकड़कर ऊपर उठाया तो उसे खम्बे की रोशनी में उस शख्स के कन्धों पर चमकते तीन स्टार नजर आये..... अरे यह तो वही कप्तान साहब है(हैं )...........
    . वह बडबडाया (बड़बड़ाया ) और उसने तुरंत उन कप्तान साहब के बाजुओं को छोड़ा और झट से एक जोरदार सैल्यूट मारा, लेकिन उसका मारा हुआ वह शानदार सैल्यूट देखता कौन ? इतनी देर में बेचारे कप्तान साहब तो कुंए में समा गए थे !

    आई आस्ट्रेलिया की प्रधान-मंत्री, महामहिम (सुश्री ) जूलिया गिल्लार्ड की सुरक्षा में तैनात थे, और प्रेस वालों को संबोधित करने हेतु जाते हुए अचानक वो औंधे मुह (मुंह )वहीं गिर पडी।।।।।।(पड़ी )........ थी, और फिर किसी तरह उन सुरक्षा कर्मियों को उन्हें उठाना पडा ! शुक्र था भगवान्।।।।।।।(भगवान)......... का कि उन्हें कोई चोट नहीं आई !

    , हे रब ! ओ गौड़ ...(गॉड )...आइन्दा इस देश में इसतरह कोई और महामहिम, कोई प्रधानमंत्री न गिरे !

    बिलकुल अभिनव अंदाज़ लिए है आपकी पोस्ट विषय भी अछूता .


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  6. @Virendra Kumar Sharma ji;

    आभार आपका सर इस टंकण सुधार हेतु ! कोशिश तो मैं भी काफी करता हूँ कि व्याकरण सम्बन्धी गलतियां जितनी कम हो उतना बेहतर किन्तु एक तो गूगल ट्रांसलिट्रेशन पर निर्भरता और ऊपर से समयाभाव.............. खैर, आपका पुनश्च: आभार !

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  7. लेकिन जो जानबुझकर गिर गया हो या गिरना चाहता है उसे गिरने देना ही बेहतर होगा.......व्यंग चौतरफा मार करंता प्रतीत होता है....
    बेहतरीन प्रस्तुति.......

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  8. गोदियाल जी बढ़िया व्यंग लिखा है

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  9. घास में ऊँची हील, गिरने का यही कारण है।

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