साल ख़त्म होने को आया, दुनिया बहुत बोल चुकी। यूं समझिये कि साल भर बोलती रही इसलिए अब मैं क्या बोलू, और सिर्फ मेरे बोलने भर से होगा भी क्या ? वैसे भी मुहंफट हूँ। कुछ ऐसा-वैसा बोल गया जो चाचा कुदाल-सब्बल अथवा अंग्रेजन माई की शान में गुस्ताखी हो तो खामखा इस बुढापे में काला पानी की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। मजाक नहीं कर रहा, जो कुछ दृष्ठि-गौचर इस पूरे साल के दरमियाँ हुआ उससे तो यही आभास मिलता है कि एक अघोषित तानाशाही में जी रहे है। जैसा तीसरा चश्मदीद तैयार हुआ चौथा भी हो जाएगा। बहुत ज्यादा मुश्किल काम थोड़े ही है, कम से कम हमारे इस महान लोकतांत्रिक देश में तो।
खैर, छोडिये, जब सब कुछ भगवान् भरोसे छोड़ ही दिया गया है तो अरदास, कीर्तन-भजन, कब्बाली और कैंडल मार्च में ही भलाई है। वैसे आपको बताता चलू कि अभी कल-परसों मैंने जब कहीं पर पढ़ा था कि हालिया बलात्कार की जांच के सम्बन्ध में जो आयोग बैठाया गया है उसने इ-मेल के जरिये जनता के सुझाव मांगे है। इस कबाड़ी माइंड में भी एक तथाकथित धाँसू आइडिया आया था, सोचता हूँ कि वहां भेजने से बेहतर आप लोगो से ही शेयर कर लेता हूँ।
हाँ, तो वो धाँसू आइडिया ये था कि बजाये किसी तथाकथित सख्त क़ानून बनाने के पचड़ो में पड़ने से बेहतर मेरी राय में ये होता कि सिर्फ एक संसोधन संविधान में और एक संशोधन दंड सहिता में किया जाता। संविधान में यह संसोधन किया जाता कि वकील और जज के लिए किसी भी मुक़दमे को स्थगित करने और मुक़दमे का निपटारा करने की समय सीमा तय करने की व्यवस्था होती। यानि की एक जज अथवा वकील चार से अधिक स्थगन और अगली तारिख नहीं ले सकता। जो भी करना हो अधिकतम चार तारीखों और इन तारीखों की एक निश्चित समय सीमा में ही करना होगा। आजकल देखा यह जा रहा है कि जुडीशियरी काम के लोड का बहाना करके और वकील अपने मुवक्किल से अधिक पैसे ऐंठने के चक्कर में तारीख पे तारीख लिये और दिए जाते है।
अब आती है बात दंड-सहिता में सशोधन की; तो सिर्फ इतना संसोधन किया जाता कि देश के चिड़िया घरों में तीन और पिंजडा- ब्लोकों की व्यवस्था का प्रावधान होता; 1) आदम-खोर ब्लोंक 2) मल-खोर ब्लोंक और 3) घूस-खोर ब्लॉक !
आदम-खोर पिंजड़े में बलात्कारियों और जघन्य अपराध करने वाले दरिंदो (राजनीतिक दरिंदो सहित) को कम से कम एक साल तक रखने की वयवस्था होती। इसी तरह मल-खोर पिंजड़े में घोटालेबाजों को और घूस-खोर में बड़े घूसखोरों को रखने की व्यवस्था होती। प्रत्येक ब्लोंक के पिंजरे के आगे उसमे रखे जाने वाले नर-पशु का काला चिट्ठा उसकी प्रोफाइल (जीवनी) भी पर्दर्शित की जाती और आम जनता के लिए चिड़ियाघर में सशुल्क प्रवेश हफ्ते में सातों दिन उपलब्ध रहता।
चलिए, अब आप मेरे उपरोक्त सुझाव पर मनन कीजिए और नए साल के सुअवसर पर मेरा यह पुराना री-मिक्स गुनगुनाइए;
करवा लो जितनी जांचे,
आयोग जितने बिठा ले,
नए साल में फिर से करेंगे,
मिलकर नए घोटाले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!
आज पुराने हथकंडों को छोड़ चुके है,
क्या देखे उस लॉकर को जो तोड़ चुके है,
हर कोई जब लूट रहा है देश-खजाना,
बड़े ठगों से हम भी नाता जोड़ चुके हैं,
नया जूनून है, नई उमंग है ,
सब हैं कारनामे काले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!
अभी लूटने है हमको कई और खजाने,
भ्रष्टाचार के दरिया है अभी और बहाने,
अभी तो हमको है समूचा देश डुबाना,
धन- दौलत के नए हमें हैं खेल रचाने,
आओ मेहनतकश पर मोटा टैक्स लगाए,
नेक दिलों को भी खुद जैसा बेईमान बनाए,
वो दिन भी अब दूर नहीं जब
पड जाएँ ईमानदारी के लाले !
हम भारत वाले--- हम भारत वाले !!
कर लो जितनी जांचे,
आयोग जितने बिठा ले,
नए साल में फिर से करेंगे,
मिलकर नए घोटाले !
हम भारत वाले---हम भारत वाले !!
जय हिंद !
बहुत सशक्त।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
घोटाले नही करेंगे तो ये भारतवाले कैसे कहलायेंगे? इनके नाम को बट्टा अन्ही लग जायेगा क्या? बेहद सटीक.
ReplyDeleteरामारम.
एक दम धुआंधार -- लेख भी और कविता भी।
ReplyDeleteसाल नया, हर चाल नयी हो,
ReplyDeleteभूल गयी हर बात गयी जो।