Tuesday, December 18, 2012

मर्जी के मालिक कारिंदे है।














आबरू बचाते कुछ मर गये, कुछ जिंदे है,
दरख़्त की शाख पर बैठे, डरे-डरे परिंदे है

खौफजदा है सभी यहां,निवासी  शहर के , 
क्योंकि बेख़ौफ़  घूमते फिर रहे दरिंदे है।
  
इस कदर फैला है  दहशत का ये आलम,,     
दरवान सोये है, और सरपरस्त उनींदे है।

शर्म से सर हिन्द का,झुक रहा बार-बार,
बेशर्म बने बैठे सब सरकारी नुमाइन्दे है।
    
फरियाद करें भी तो करें किससे 'परचेत', 
मर्जी के मालिक, हो गए सब कारिंदे है।
    

7 comments:

  1. सटीक .... कृत्य कोई कर और शर्मिंदा सबको होना पड़ जाता है ।

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  2. "दर्द तो हज़ारों हैं, फ़रियाद करें तो करें किस से " एक शर्मसार कर देने वाली घटना ने दिल्ली को विदेशों में 'Rape City' के नाम से नवाजा है .. क्या हमें ये नाम कबूल हैं क्यूंकि हमारे नेतिये तो मस्त होकर नज़ारे देख रहे है। :(

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  3. खौफजदा नजर आता है, हर सरपरस्त शहर का,
    क्योंकि बेख़ौफ़ सड़कों पे घूमते फिर रहे दरिंदे है ..

    सच कहा है ... आज दरिंदों का राज है ... शर्म से झुक जाता है सर ...

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  4. अपने इस दर्द के साथ यहाँ आकर उसे न्याय दिलाने मे सहायता कीजिये या कहिये हम खुद की सहायता करेंगे यदि ऐसा करेंगे इस लिंक पर जाकर

    इस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
    http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#

    कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं

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  5. बहुत दुखद व शर्मनाक स्थिति .....

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।