Wednesday, December 19, 2012

दीन हम, दयनीय हमारी प्राथमिकताएं !


जीवन-जगत को देखने, परखने और भोगने का इंसान का दृष्टिकोण, व्यवस्था के प्रति उसका रुख, जीवन में सफलताएँ हासिल करने हेतु प्राथमिकताओं का चयन और उन पर उचित समय में क्रियानवन, न सिर्फ उस इंसान बल्कि जिस समाज और देश में वह रहता है, उसका भी भविष्य निर्धारित करता है। आज जो कुछ हमारे आस-पास घटित हो रहा है,सभ्यता, तरक्की और विकास के नाम पर जो कुछ हम कर रहे है, उनको देखकर लगता है कि न सिर्फ नीयत ही हमारी डोल गई है अपितु, अपनी प्राथमिकताये तय करते वक्त हमसे जाने-अनजाने कहीं बहुत बड़ी गड़बड़ भी हो गई है। 

और इन गड़बड़ियों की एक मुख्य वजह यह भी है कि हम लोग संकीर्ण स्वार्थों में इस कदर डूब गए है कि दीर्घकाल में उसका हम पर, हमारे समाज पर और हमारे देश पर क्या असर पड़ने वाला है, उसकी हम लेशमात्र भी चिंता नहीं करते। हाँ, परम्परानुसार दिखावे के लिए अर्थी को कन्धा देते वक्त दो-चार घडियाली आंसू बहाना हम हरगिज नहीं भूलते। किसी भी प्राथमिकता के प्रति प्रतिबद्धता, सम्बद्धता और आबद्धता तो हमारे लिए मानो दूर की कौड़ी बनकर रह गई है। उत्थान की बात जब हमारे जहन में आती है तो हमें यह नही भूलना चाहिए कि प्रगतिशीलता का आधार सतत जागरूकता है। जागरूक हुए बगैर शायद प्रगतिशीलता का भ्रम पालना हमारी सबसे बड़ी मूर्खता कहा जाएगा। और, यह भी एक निर्विवाद सत्य है कि जहां सतत जागरूकता रहती है, उस समाज में सतत परिवर्तनशीलता का गुण भी अवश्य पाया जाता है। 

अभी हाल में हमने देखा कि देश में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की भागीदारी हेतु क़ानून बनाने के लिए हमारी सरकर ने क्या एड़ी-चोटी का जोर लगाया। अभी कल ही एक खबर पर नजर गई कि अमेरिकी कृषि व्यवसाय से जुड़े एक बड़े व्यावसायिक घराने, कारगिल इंक(Cargill inc ) ने घोषणा की है कि वह भारत के गुजरात, महाराष्ट्र और ओरिसा राज्यों में मौजूद अपने तीन खाद्य तेल संयंत्रों में उत्पादन क्षमता विस्तार एवं एक नई मक्का मिलिंग इकाई में 500 करोड़ रुपए का निवेश करने जा रही है। इसके लिए 134 अरब डॉलर की यह अमेरिकी कंपनी, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य-प्रसंस्करण और विनिमय व्यापार इकाइयों में सुमार है, भारत के कर्नाटक राज्य जोकि मक्का उत्पादक राज्यों में शीर्ष पर है, उसके देवनगिरि में इसके लिए जमीन प्राप्त कर रही है, जिसमे वे 800 से 1000 टन क्षमता वाली High fructose corn syrup (HFCS )मक्की मिल लगायेंगे। आप शायद इस बात से वाकिफ होंगे कि कारगिल इंडिया पहले से ही यहाँ पर रथ, नेचर फ्रेस और पूरिता इत्यादि बाजार ब्रांडों के साथ वनस्पति तेल का उत्पादन और व्यापार कर रही है। 

यह खबर निश्चित तौर पर मंदीग्रस्त सरकार और उसके अर्थव्यवस्था एवं जनता, खासकर कर्नाटक के उन लोगो के लिए एक उत्साह्वर्दक खबर हो सकती है, जो कि सिर्फ इस सीमित नजरिये से इस खबर को देख रहे है कि इससे उनके देश, राज्य में विदेशी निवेश आ रहा है, और साथ ही रोजगार के अवसर उनके लिए उत्पन्न होने जा रहे है। और यह सच भी है किन्तु इस सुखद सच के पीछे का जो भयावह अनूठा सच है, उसे शायद हम या तो देख नहीं पा रहे या फिर तात्कालिक जरूरतों के आगे हमने उस दीर्घकालिक सच को सिरे से नजरअंदाज कर दिया है। और वह सच क्या है, आइये अब उसकी विस्तार से चर्चा करते है ;

400 करोड़ की लागत से कारगिल इंक कर्नाटक में जो मक्का मिल लगाने जा रही है उसमे उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (HFCS )का उत्पदान किया जाएगा। क्या है यह उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (HFCS) ? FRUCTOSE, यानि प्राकृतिक चीनी जोकि शहद और पके हुए फलों को खाने से नेचुरल रूप में हमें मिलती है उसे अंगरेजी की वैज्ञानिक भाषा में  Fructose (फलशर्करा) कहा जाता है। उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (एचऍफ़सीएस) एक कैलोरी प्रदान करने वाला मीठा पदार्थ है जिसे खाद्ध्य-पदार्थों और पेय-पदार्थों में मीठास उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। विशेष रूप से संसाधित और खाद्य पदार्थों और संचयित पदार्थों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसे 1960 के दशक में सर्वप्रथम जापान में उत्पादित किया गया था, और आगे चलकर यह यूरोप और अमेरिका की प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की रीढ़ बन गया। आज इसे तमाम शीतल पेय, सलाद ड्रेसिंग, चटनी, जैम, सॉस, आइसक्रीम और ब्रेड सहित खाद्य उत्पादों की किस्म में पाया जा सकता है। आज खाद्य पदार्थों में पाये जाने वाले उच्च fructose कॉर्न सिरप के दो प्रकार होते हैं:
1) एचएफसी 55 (मुख्य शीतल पेयों में इस्तेमाल फार्म) में 55% और 45% fructose ग्लूकोज है। 
2) एचएफसी 42 (मुख्य सिरप, आइसक्रीम, डेसर्ट, और पके हुए माल में डिब्बाबंद फल में इस्तेमाल प्रपत्र) 42% और 58% fructose ग्लूकोज शामिल हैं।


उपरोक्त विवरण से आप यह तो समझ ही गए होंगे कि  उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (HFCS) किसे कहते है और यह किस काम आता है। अब चलते है इसके दुष्प्रभावों की ओर,  आज जहां एक और हमारे समक्ष वक्त के साथ चलने की चुनौती है, वहीं कृत्रिम खाद्य-पदार्थों के इस्तेमाल से व्यक्ति और समाज विशेष को होने वाले शारीरिक नुक्शानो का मडराता ख़तरा भी है। आज जहां आधुनिक शहरी रहन-सहन, मिलावटी खाद्य-पदार्थों और फास्ट-फ़ूड की वजह से हमारी वर्तमान और भावी पीड़िया उच्च रक्तचाप, मधुमेह,  शारीरिक अक्षमता और दिल के खतरों से पहले ही जूझ रही है, वहीं  समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, हृदय दोष, प्रजनन मुद्दों, और तमाम विफलताओ जैसे कई विकास दोष, मिर्गी, पाचन मुद्दों और ऊपरी श्वसन क्रिया,पाचन कैंसर, आत्मकेंद्रित, बचपन का मोटापा, इत्यादि का कामयाब होने का श्रेय काफी हद तक एचऍफ़सीएस को जाता है। 

15-20 साल पहले तक  तो शायद, एचएफसी सिर्फ खाने के लिए ठीक था, किन्तु आज  इसका सेवन एक गैर-जरूरी स्तर पर  खतरनाक हो सकता है। क्योंकि आज यह खाद्य-पदार्थ फसलों के नवाचार या उच्च उपज फसलों के नाम में आनुवंशिक परिवर्तन (genetically modified foods आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों) के द्वारा बनाये जा रहे है। इससे ग्रस्त मरीजो पर स्वास्थ्य सेवाओं में भी इसके लिए  उसकी असहनीयता  (इनटॉलेरेंस) की माप के लिए एक परीक्षण किया जाता है जिसको  Fructose Hydrogen Breath test कहा जाता है। और जिसमे अक्सर यह पाया गया है कि इसके 80% मरीजों में  असहिष्णुता अथवा असहनीयता बहुत अधिक मात्रा में पाई  जाती है।  अत: आप यह मानकर चलिए कि यह उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (HFCS) मनुष्य के स्वास्थ्य का दुश्मन है। क्योंकि यह  एक सुपर संसाधित रसायन है और आनुवंशिक रूप से संशोधित किये गए  खाध्य-पदार्थ में कीटनाशक के इस्तेमाल की भी पूरी गुंजाईश रहती है। और आज यह हमारे  किन-किन खाद्य-पदार्थो में सम्मिलित है, पता लगा पाना एक टेडी खीर है। 

डिस्क्लेमर: इस आलेख को लिखने का अर्थ यह कतई न लगाया जाए कि  चूंकि कारगिल इंक इसके लिए भारत में प्लांट लगा रही है अत : उसके विरोध स्वरुप मैंने यह सब लिखा है। मुझे नहीं मालूम कि उक्त कंपनी किस उद्देश्य से और किस प्रक्रिया के तहत इसमें अपना उत्पादन करेगी और कहाँ उसका इस्तेमाल करेगी। मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठक -वर्ग को उच्च फलशर्करा मक्की शरबत (HFCS) से उत्पन्न होने वाले खतरों से अवगत कराना मात्र है, अत: यह  कारगिल इंक के प्रति किसी भी दुर्भावना से प्रेरित होकर नही लिखा गया है। यदि मेरी कोई दुर्भावना है तो वह सिर्फ अपने उन लोगो और सरकार के प्रति हो सकती है, जो एक तरफ तो नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति घडियाली आंसू बहाते है, नशा मुक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते है  और दूसरी तरफ विकास के नाम पर  इस तरह के पदार्थों के इस्तेमाल का दायरा बढाते है। अगर हम  गौर फरमाएं तो अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा पिछले चार सालों में कई बार यह दोहरा चुके है की 30-35 तक की उम्र का उनका युवा वर्ग चीन और भारत के युवाओं से पिछड़ रहा है। इसकी एक ख़ास वजह HFCS का अधिक सेवन भी है, जिससे उनका ज्यादातर युवावर्ग शाररिक रूप से असंतुलित हुए जा रहा है। एक सवाल यह भी उठता है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद ये कंपनिया यैसे प्लांट अपने देश में लगाने की बजाये हमारे जैसे देशों में ही लगाने के क्यों इतने उत्सुक है ?

अब चलते-चलते एक छोटी सी मन की भड़ास: जब से यह दिल्ली की छात्रा के साथ दरिंदगी का मामला प्रकाश में आया है, संसद, विधान सभाओं, खबरिया माध्यमो और टीवी चैनलों पर खूब घडियाली आंसू बहाए जा रहे है। और उन्हें सुनकर , पढ़कर मैं पके जा रहा हूँ  क्योंकि एक भी  के  ने यह सवाल नहीं उठाया कि  जनता की सेक्योरिटी के लिए जो सुरक्षाबल थे, उन्हें तो इन घडियाली आंसू बहाने वालों ने   हड़प रखा है, जनता तो असुरक्षित होगी ही ! आप देखें की एक तथाकथित वीआइपी जो एयर पोर्ट आ -जा रहा हो, आपने भी गौर फरमाया होगा कि उसको प्राप्त ब्लैक कमांडो के अलावा भी एयर पोर्ट से नै दिल्ली के हर चौराहे पर सफ़ेद वर्दी वाले 5-5 ट्राफिक पुलिस के जवान और एक से दो जिप्सिया खडी  रहती है, जबकि बाकी दिल्ली में कई जगहों पर ट्रैफिक लाईट पर एक भी ट्रैफिक कर्मी नहीं होता और लोग खुद ही घंटों जाम में जूझ रहे होते है।  ये हाल तो सिर्फ दिल्ली का बया कर रहा हूँ ! इसलिए यही कहूंगा कि  जागो...... राजनीतिक  स्वार्थ के लिए दूसरों पर ये कितनी  जल्दी आरक्षण थोंपते है लेकिन एक महिला आरक्षण बिल  संसद में कब से धूल  फांक रहा है, अगर वह समय पर पास हुआ होता  और संसद में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व होता तो क्या वे महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कोई सख्त क़ानून नहीं बनाते?   इसलिए बस, अब जागो वरना   कश्मीर के मशहूर उर्दू कवि वृज नारायण चकबस्त जी का यह  शेर सही सिद्ध हो जाएगा - "मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी, तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी।"                              

4 comments:

  1. भविष्य ही बतायेगा कि क्या प्रभाव पड़ेगा।

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  2. बेहतर लेखनी !!!

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  3. https://www.facebook.com/avinashvachaspati यहां पर है आपकी यह ब्‍लॉग पोस्‍ट। मतलब कतरन है एक अखबार की, जिसमें यह प्रकाशित हुआ है। आपका मेल पता मिले तो भेजूं।

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  4. आभार वाचस्पति साहब इस जानकारी हेतु !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।