Saturday, December 1, 2012

नहीं मालूम, कौन सही है, कौन गलत !


कल  जब निम्नांकित खबर पर नजर गई तो  मेरे अंतर्मन से जो शब्द रूपी पुष्प छूटे वे ये थे कि इन फिरंगियों ने अपनी औलादे तो बिगडैल और निकम्मी बना ही डाली है, अब ये भारतियों  के पीछे पड़ गए है कि अगर इनके बच्चे अनुशासित निकले तो आगे चलकर ये हमारे बच्चों पर राज करेंगे, इसलिए इनके बच्चों को भी बिगाड़ो ;   

ओस्लो: नॉर्वे में बाल शोषण के कथित मामले के तहत गिरफ्तार भारतीय दंपति पर उनके बच्चे के साथ ‘निरंतर बुरा बर्ताव’ करने का आरोप लगाया गया है. इसके लिए अभियोजन पक्ष ने माता-पिता के लिए कम से कम 15 महीने की कैद की मांग की है. आंध्रप्रदेश के चंद्रशेखर वल्लभानेणि एक सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं और उनकी पत्नी अनुपमा भारतीय दूतावास में एक अधिकारी हैं. इन दोनों को ही ओस्लो की पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। इनका कुसूर यह था की इनके 7 साल के बच्चे ने अपने स्कूल की बस में पैंट में ही पेशाब कर दिया था, जिसकी जानकारी उसके पिता को की गई तो बच्चे के पिता ने उसे धमकाया कि अगर उसने ऐसा दोबारा किया तो वह उसे भारत वापस भेज देंगे।




मगर, वक्त का जबाब देखिये, आज की निम्नांकित खबर पढ़कर सोचता हूँ कि शायद हमारे ही संस्कारों में कहीं खोट है। वे तो हमें आइना दिखा रहे है ;  

विशाखापत्तनम:  6 साल की बेटी पर कपबोर्ड से दस रूपये   चुराने   के शक में एक माँ ने न सिर्फ उसे बुरी तरह से पीटा, बल्कि उसपर गर्म फ्राईपेन से वार कर उसके चेहरे को जलाया भी। इस बात का पता तब चला जब बृहस्पतिवार को वह बच्ची चाइल्डलाइन नामक एनजीओ ने देखी। 

आप भी चिंतन कीजिये !


9 comments:

  1. देश में बाल शोषण बहुत कॉमन है। इनमे यौन शोषण और शारीरिक शोषण सबसे ज्यादा होते हैं। अफ़सोस, दोनों ही करीबी रिश्तेदारों द्वारा किये जाते हैं।

    ReplyDelete
  2. वक्त ही है गोदियाल जी जो सबके भ्रम दूर करता है।

    ReplyDelete
  3. सभी समाजों की अपनी अपनी मान्‍यताएं हैं क्‍या कीजि‍ए

    ReplyDelete
  4. काजल कुमार जी ये मान्यताओं वाली बात नहीं है...

    ReplyDelete
  5. गहरा चिंतन का विषय तो है ही | प्रवर्तमान समय के सक्रीय मातापिता का वर्ग (आयु ३० से ४५ के बिच के) अगर सीमारेखा और संस्कारों के ग्रहण और वहन के लिए चिंतन से ऊपर कुछ व्यवहारु अनुशासन स्वयं के ऊपर जब तक नहीं लगायेंगे, एक ओर बेदरकारी के प्रतिबिंब बढ़ते जायेंगे और दूसरी ओर फ्रस्ट्रेशन रिएक्शन और डिक्टेशन का सिलसिला चलता ही रहेगा |

    वैसे पुरे विश्व में और ख़ास कर भारत जैसी सभ्यता एक क्रिटिकल ट्रांजिशन तले है, बहुआयामी नकारात्मकता का बोलबाला है - और सत्व शांत रह कर भी स्थापित होकर रहेगा |

    कोई परफेक्ट नहीं है, कोई अमर नहीं है, गुणदोष सब में है, श्रद्धा गँवाए बिना, फिलहाल तो लगे रहते है!

    ReplyDelete
  6. दोनों ही स्थानों पर अतिप्रतिक्रिया है..

    ReplyDelete
  7. सुन्दर बात

    ReplyDelete
  8. ऎसी अज्ञानी, मूर्ख माँ को mental हॉस्पिटल में भर्ती कर देना चाहिए !

    ReplyDelete
  9. विशाखापट्टनम और नार्वे की घटनाओं मे काफी अंतर है, हम आँख मूंदकर विशाखापट्टनम की घटना की निंदा कर सकते हैं किन्तु नार्वे की घटना की हकीकत को जाने समझे किसी भी प्रकार की टिपण्णी जल्दबाजी होगी ....

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।