Wednesday, August 26, 2009

लोकतंत्र का वादा- सुप्त प्रशासन, भयमुक्त समा/// क्षमा करे, अपराध जगत और जटिल न्याय प्रणाली !

हमारे इस लोकतंत्र ने लोगो को भले ही और कोई बढिया सौगात दी हो, या न दी हो, लेकिन अपराध जगत के लिये एक जीवन दाइनी घुट्टी जरूर दी है कि “ जब तक दोष साबित न हो, आप पापी को पापी नही ठहरा सकते” ! और किसी आरोपी पर दोष साबित करने वाली हमारी कानून और न्याय व्यवस्था का हाल क्या है, यहां बयां करने की शायद जरुरत नही है ! मेरा यह मानना है कि ’मुजरिम’, ’मुलजिम’ की मां होती है, क्योंकि एक मुजरिम अन्य अनेकों मुजरिमो को जन्म देता है! लेकिन हमारे इस महान लोकतंत्र मे मुजरिम की पैरवी के लिये वो तमाम सुविधायें मौजूद है, जिनका भरपूर फायदा उठाकर वह एक मुल्जिम के खिताब से नवाजे जाने से हमेशा बचता है ! देखा जाये तो यह कितनी हास्यास्पद बात है कि हमारे लोक्तंत्र की लचकदार व्यवस्थाओं का सहारा लेकर एक उस मुजरिम को भी, जिसे पुलिस ने समाज मे किसी गम्भीर अपराध को अन्जाम देते हुए रंगे हाथों गिरफ़्तार किया हो, जब उसे जनता और समाज के समक्ष पेश किया जाता है तो उसे अपना वह कुल्शित चेहरा छुपाने या ढकने का पूरा अधिकार है, जिसे कि कायदे से पूरे समाज के समक्ष बेनकाब किया जाना चाहिये था, ताकि लोग उसे पहचान सके, और उससे बचकर रह सके ! लेकिन यहां तो आप तब तक सरे-आम उसका चेहरा नही देख सकते, जब तक कि उसे कोई अदालत अपराधी न साबित कर दे, और अपनी अदालतों का हाल यह है कि उसे अपराधी घोषित करने मे युग बीत जाते है, और तब तक वह अपराधी और न जाने कितने अपराधो को अंजाम दे चुका होता है !




यह भी सच है कि हमारे इस लोकतंत्र की पुलिस भी भ्रष्ट तरीके अपनाना जानती है और अपनी पीठ थपथपाने के लिए किसी निर्दोष को दोषी करार देकर मीडिया के समक्ष प्रस्तुत कर दे ! लेकिन अगर ऐसा होता है तो उसके लिए भी यह कानून हो कि यदि किसी निर्दोष को दोषी बताकर गलत तरीके से फसाया गया हो तो यह मालूम पड़ने पर कि वह निर्दोष है, वही प्रक्रिया अपनाकर मीडिया और संचार माध्य्मो के जरिये उसके निर्दोष होने की बात जनता तक पहुचाई जाए ! और इसकी संख्या का अगर हम आंकलन करे तो १०० में से ५ % केस ही ऐसे सामने आते है ! इसका जो हवा खडा किया गया है वह उन्ही अपराधी तत्वों और अपराध जगत से जुड़े लोगो ने किया है, जो अपने फायदे के लिए इन कानूनों का बेजा इस्तेमाल करते है ! इसी का परिणाम है कि अपराधी आज बेखौफ होकर घूम रहे है ! पुलिस का मनोबल गिर रहा है, इमानदार पुलिस अफसर अपना फर्ज अदा करने से कतराते है, क्योंकि उन्हें भी अपने बीबी-बच्चे पालने होते है ! और इसके लिए भ्रष्ट नेतावो और अफसरों के साथ-साथ मीडिया एवं संचार माध्यम भी उतने ही जिम्मेदार है, जोकि ऐसी स्थिति में जबकि पुलिस किसी अपराधी को गिरफ्तार करती है अथवा मुठभेड़ में मार गिराती है ( कुछ अपवादों को छोड़कर जिनमे मीडिया की भूमिका सराहनी कही जा सकती है ) लोगो तक समाचार पहुँचाने की भुमिका में कम और जांच ऐजेंसी की भुमिका में अधिक नजर आने की कोशिश हरदम करते रहते है !

आज जरुरत इस बात की है कि हमारे मौजूदा कानूनों में मूलभूत परिवर्तन किये जाए, ताकि आम नागरिक सुरक्षित महसूस कर सके, न कि अपराधी !

3 comments:

  1. अब तो हर मुजरिम पुलिस हिरासत में भी मुस्कुराता/हंसता दिखाई देता है। बरी हुआ तो नेता बन जाता है और कानून बनाता है। तो कानून से क्या उम्मीद करें?????

    ReplyDelete
  2. बात आपकी बिल्कुल सही है, लेकिन कानून व्यवस्था बदलना इतना आसान नही है।

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।