Saturday, August 15, 2009

सूक्ष्म व्यंग्य- "कमीने" देखने की ख्वाइश !

स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी है ! सुबह सबेरे बिस्तर से खडा हुआ.. नहा-धोकर तैयार हो गया! मेरी इस तत्परता पर बीबी ने आर्श्चय व्यक्त करते हुए आँखे तरेरी और पूछा क्यों जनाव, जब दफ्तर जाना हो तो दस बार उठाना पड़ता है कि देर हो रही है, खड़े हो जावो ! और आज जबकि छुट्टी है तो इतनी जल्दी तैयार हो गए, आखिर जाना कहां है ? मैंने सूक्ष्म सा जबाब दिया. कमीने देखने, कल से दिखने शुरू हो गए है! वह बोली, तुम्हे क्या जरुरत आन पडी कमीने देखने की ? बीबी के इस व्यंग्य पर मै अन्दर ही अन्दर तिलमिला गया था! उसने फिर कहा तो बाहर जाने की जरुरत क्या है, बारिश का मौसम है, भीग जावोगे! आराम से बैठो,. थोड़ी देर बाद टीवी पर ही दिख जायेंगे! मैंने भी एक बारी नजर आसमा की तरफ उठाई और महसूस किया कि वह ठीक ही कह रही है ! फिर बैठे-बैठे मैं सोच रहा था कि कितनी समानता है हम दोनों पति-पत्नी की सोच में ! वह कितनी जल्दी समझ गई कि मैं क्या देखने की ख्वाइश रखता हूँ ! किसी ने ठीक ही कहा "राम मिलाये जोड़ी, एक अंधा, एक कोडी" !

5 comments:

  1. 'थोड़ी देर बाद टीवी पर ही दिख जायेंगे'
    ha! ha! ha!
    yah "सूक्ष्म '' magar teekha vyangy hai

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  2. अरे भैया, कमीने तो कहीं भी दिख जाएंगे:)

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  3. क्या बात है...कम शब्दों में बहुत कुछ कह गए भाई...वाह...
    नीरज

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  4. सच में बहुत कुछ कह दिया आपकी में ने.............

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।