डूबता सूरज है , वक्त-ए-शाम देख,
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !
राह अनजानी , अनजाना है कारवां,
तू अपनी मंजिल देख , मुकाम देख !!
रुख फ़िज़ाओं का बदला-बदला है ,
जमाने के ढंग देख, इल्जाम देख !
पास आती निशा के पैगाम देख ,
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !!
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !
राह अनजानी , अनजाना है कारवां,
तू अपनी मंजिल देख , मुकाम देख !!
रुख फ़िज़ाओं का बदला-बदला है ,
जमाने के ढंग देख, इल्जाम देख !
पास आती निशा के पैगाम देख ,
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !!
एक दम सही अभिव्यक्ति...हुस्न वाले अगर ऐसा अंजाम देखने लगे तो हुस्न बदनाम न हो
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति है… सुन्दर रचना के लिये बधाई.
ReplyDelete