Friday, August 21, 2009

हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !



डूबता सूरज है , वक्त-ए-शाम देख,
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !
राह अनजानी , अनजाना है कारवां,
तू अपनी मंजिल देख , मुकाम देख !!

रुख फ़िज़ाओं का बदला-बदला है ,

जमाने के ढंग देख, इल्जाम देख !
पास आती  निशा के पैगाम देख ,
हुश्न वाले, हुश्न का अंजाम देख !!

2 comments:

  1. एक दम सही अभिव्यक्ति...हुस्न वाले अगर ऐसा अंजाम देखने लगे तो हुस्न बदनाम न हो

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  2. लाजवाब अभिव्यक्ति है… सुन्दर रचना के लिये बधाई.

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।